प्रकृति एक न्यायपूर्ण और समानता–आधारित समाज की स्थापना के लिए प्रेरणा और आधार प्रदान करती है। सभ्यता के तक़ाज़े जहाँ विभाजन और असमानता को बढ़ावा देते हैं, प्रकृति का मूल स्वर साहचर्य और जोड़ने का होता है। विश्व के जिन हिस्सों में प्रकृति अपने अक्षत रूप में आज भी हमें आश्वस्ति देती है, उनमें एक कैरेबियाई क्षेत्र भी है। हज़ारों किलोमीटर के क्षेत्र में फैली अनछुई, अक्षत प्रकृति समुद्र तट, पर्वत, झरने, नदियाँ, जंगली वृक्ष और पशु–पक्षी।

सूरीनाम में प्रवास के दौरान कवयित्री पुष्पिता की रची गई ये रचनाएँ इसी छवि का अन्वेषण करती हैं। साथ ही कैरेबियाई देशों का वह मानवी पक्ष भी इनमें ध्वनित होता है जिसके कारण इस क्षेत्र की

विश्व में अलग पहचान है। दुनिया के लगभग हर क्षेत्र के लोग यहाँ आकर बसे हैं एशियाई, अफ्रीकी, यूरोपीय और लैटिन अमेरिकी। विश्व की मानवशास्त्रीय विविधता का एक लघु संस्करण आप यहाँ पा सकते हैं।

कैरेबियाई देशों के लम्बे प्रवास के दौरान रची गई ये कविताएँ इस क्षेत्र के समूचे प्राकृतिक, सामाजिक और मानवीय वैशिष्ट्य के प्रति प्रेमोद्गार के रूप में प्रकट हुई हैं। कवयित्री ने इन पंक्तियों में उस वरदान की पुनर्रचना की है जो प्रकृति ने इस क्षेत्र को दिया है।

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Language Hindi
Format Hard Back
Publication Year 2005
Edition Year 2005, Ed. 1st
Pages 225p
Translator Not Selected
Editor Not Selected
Publisher Radhakrishna Prakashan
Dimensions 22 X 14.5 X 1.5
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Pushpita Awasthi

Author: Pushpita Awasthi

प्रो. पुष्पिता अवस्थी

जन्म : कानपुर, उत्तर प्रदेश (भारत)। राष्ट्रीयता : नीदरलैंड।

शिक्षा : एम.ए. (हिन्दी) व शोध (आधुनिक काव्यालोचन की भाषा)।

2001-2005 तक सूरीनाम स्थित भारतीय राजदूतावास की प्रथम सचिव एवं ‘भारतीय संस्कृति केन्द्र’, पारामारिबो में हिन्दी प्रोफ़ेसर। इसके पूर्व बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय के बसंत कॉलेज फ़ॉर वुमेन में हिन्दी विभागाध्यक्ष। 2006 से नीदरलैंड स्थित ‘हिन्दी यूनिवर्स फ़ाउंडेशन’ की निदेशक। 2010 में गठित ‘अन्तरराष्ट्रीय भारतवंशी सांस्कृतिक परिषद’ की महासचिव।

प्रकाशन व प्रसारण : ‘गोखरू’, ‘जन्म’ (कहानी-संग्रह); ‘अक्षत’, ‘शब्द बनकर रहती हैं ऋतुएँ’, ‘ईश्वराशीष’, ‘हृदय की हथेली’, ‘अन्तर्ध्वनि’, ‘देववृक्ष’, ‘शैल प्रतिमाओं से’ (कविता-संग्रह); ‘आधुनिक हिन्दी काव्यालोचना के सौ वर्ष’ (आलोचना); ‘संस्कृति,  भाषा और साहित्य’ (प्रो. विद्यानिवास मिश्र से साक्षात्कार); ‘श्रीलंका वार्ताएँ’, ‘स्कूलों के नाम पत्र’—भाग 2 (जे. कृष्णमूर्ति), ‘काँच का बक्सा’ (नीदरलैंड की परीकथाएँ) (अनुवाद); ‘कविता सूरीनाम’, ‘कथा सूरीनाम’, ‘दोस्ती की चाह के बाद’, ‘जीत नराइन की कविताएँ’, ‘दादा धर्माधिकारी की सूक्तियाँ’; ‘सर्वोदय दैनन्दिनी’; ‘परिसंवाद’ (कृष्णमूर्ति के दर्शन पर आधारित त्रैमासिक), ‘सर्वोदय’ (सम्पादन)। सूरीनाम में ‘हिन्दीनामा’ और ‘शब्द शक्ति’ पत्रिकाओं के प्रकाशन की शुरुआत व अतिथि सम्‍पादन।

सूरीनाम में ‘हिन्दीनामा प्रकाशन संस्थान’ तथा ‘साहित्य मित्र’ संस्था की स्थापना।

सम्मान व पुरस्कार : ‘भारतीय सामाजिक और सांस्कृतिक संस्थान’ द्वारा कविता के लिए पुरस्कृत (1987), अन्तरराष्ट्रीय ‘अज्ञेय साहित्य सम्मान’ (2002), ‘सूरीनाम  राष्ट्रीय  हिन्दी सेवा पुरस्कार’ (2002), कविता के लिए ‘शमशेर सम्मान’ (2008)।  

बांग्ला, फ़्रेंच, हिन्दी, संस्कृत, अंग्रेज़ी व डच भाषाओं की जानकार प्रो. पुष्पिता अवस्‍थी ‘एनसीईआरटी’ में पाठ्यक्रम निर्धारण समिति की सदस्य भी रही हैं।

 

सम्‍प्रति : निदेशक—‘हिन्दी यूनिवर्स फ़ाउंडेशन’, नीदरलैंड।

 

सम्‍पर्क : pushpita.awasthi@bkkvastgoed.nl, pushpita.awasthi@hindiuniverse.com, http://pushpitaawasthi.blogspot.in

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