प्रेम में होना सिर्फ़ हाथ थामने का बहाना ढूँढ़ना नहीं होता। दो लोगों के उस स्पेस में बहुत कुछ टकराता रहता है। लप्रेक उसी कशिश और टकराहट की पैदाइश है।
–रवीश कुमार
गिरीन्द्र नाथ झा के लेखन में शहर और गाँव दोनों अपनी वास्तविकता में एक साथ दिखाई देते हैं। 21वीं सदी में जिस तरह वे आंचलिक जीवन की कथा कहते हैं, वह रेणु की परम्परा को आगे बढ़ानेवाला है। रेणु के उपन्यास ‘मैला आँचल’ के मेरीगंज की तरह गिरीन्द्र का गाँव चनका भी इस किताब में पूरी तरह दिखाई पड़ता है।
– इयान वुल्फ़ोर्ड, ‘द हिन्दू’
Language | Hindi |
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Binding | Hard Back, Paper Back |
Translator | Not Selected |
Editor | Not Selected |
Publication Year | 2018 |
Edition Year | 2022, Ed. 3rd |
Pages | 88p |
Price | ₹175.00 |
Publisher | Sarthak (An imprint of Rajkamal Prakashan) |
Dimensions | 17.5 X 12 X 1 |