Hindi Ka Vishva Sandarbha

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Hindi Ka Vishva Sandarbha

हिन्दी को वैश्विक सन्दर्भ प्रदान करने में विश्वभर में फैले हुए तीन करोड़ से ज़्यादा प्रवासी भारतीयों का विशेष प्रदेय है। वे हिन्दी के द्वारा अन्य भाषा-भाषियों के साथ सांस्कृतिक संवाद क़ायम करते हैं। आज हिन्दी विश्व के सभी महाद्वीपों तथा राष्ट्रों—जिनकी संख्या एक सौ चालीस से भी अधिक है—में किसी-न-किसी रूप में प्रयुक्त हो रही है। इस समय वह विश्व की तीन सबसे बड़ी भाषाओं में से है। वह विश्व के विराट फलक पर नवलचित्र के समान प्रकट हो रही है। वह बोलनेवालों की संख्या के आधार पर मन्दारिन (चीनी) के बाद विश्व की दूसरी सबसे बड़ी भाषा बन गई है, जबकि वह जिन राष्ट्रों में प्रयुक्त हो रही है, उनके संख्या-बल की दृष्टि से वह अंग्रेज़ी के बाद दूसरे क्रमांक पर है।

हिन्दी को वैश्विक परिदृश्य प्रदान करने में फ़िल्मों, पत्र-पत्रिकाओं, प्रकाशन संस्थानों, भारत सरकार के उपायों, उपग्रह चैनलों, विज्ञापन-एजेंसियों, बहुराष्ट्रीय निगमों, यांत्रिक सुविधाओं तथा शिक्षण प्रौद्योगिकी के अनुप्रयोग से प्रशिक्षित पेशेवर मानव संसाधन का विशिष्ट अवदान रहा है। इसके अलावा उसमें विकसित विश्वस्तरीय साहित्य तथा साहित्यकारों का आधारभूत प्रदेय तो सर्वविदित है। ऐसी स्थिति में विश्व व्यवस्था को परिचालित करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा करने तथा अन्तरराष्ट्रीय सम्बन्धों में प्रयुक्त होनेवाली विश्वभाषा के ठोस निकष एवं प्रतिमान पर हिन्दी का गहन परीक्षण सामयिक दौर की अपरिहार्य माँग है। इसी लक्ष्य को पाने तथा हिन्दी जगत को वैश्विक स्तर पर हिन्दी की शक्ति एवं सम्भावना से परिचित कराने के उद्देश्य को लेकर प्रस्तुत पुस्तक संकल्पित है।

यह पुस्तक विदेश यात्राओं से प्राप्त सूचना एवं अनुभव, अनवरत अध्ययन, भाषिक चिन्तन तथा हिन्दी के विकसनशील व्यक्तित्व के तमाम आयामों की वैचारिक फलश्रुति है जो ग्यारह अध्यायों में हिन्दी के विश्व सन्दर्भ के वस्तुनिष्ठ एवं तथ्यगत विश्लेषण के प्रयास की अभिव्यक्ति है। हमें विश्वास है कि यह पुस्तक हिन्दी जगत में आत्मविश्वास भरेगी और वह खुले मन से इस पुस्तक का स्वागत करेगा।

More Information
Language Hindi
Format Hard Back
Publication Year 2000
Edition Year 2024, Ed. 4th
Pages 188p
Translator Not Selected
Editor Not Selected
Publisher Radhakrishna Prakashan
Dimensions 22 X 14.5 X 2
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Karunashankar Upadhyay

Author: Karunashankar Upadhyay

करुणाशंकर उपाध्याय

डॉ. करुणाशंकर उपाध्याय का जन्म 15 अप्रैल, 1968 को घोरका तालुकदारी, शिवगढ़, प्रतापगढ़, उत्तर प्रदेश में हुआ। ‘पाश्चात्य काव्य चिन्तन के विविध आन्दोलन’ विषय पर उन्होंने पोस्ट डॉक्टरल किया है। उनकी प्रकाशित कृतियाँ हैं—‘सर्जना की परख’, ‘आधुनिक हिन्दी कविता में काव्य चिन्तन’, ‘मध्यकालीन काव्य : चिन्तन और संवेदना’, ‘पाश्चात्य काव्य-चिन्तन’, ‘विविधा’, ‘आधुनिक कविता का पुनर्पाठ’, ‘हिन्दी कथा साहित्य का पुनर्पाठ’, ‘हिन्दी का विश्व सन्दर्भ’, ‘आवाँ विमर्श’, ‘हिन्दी साहित्य : मूल्यांकन और मूल्यांकन’, ‘ब्लैकहोल विमर्श’, ‘सृजन के अनछुए सन्दर्भ’, ‘साहित्य और संस्कृति के सरोकार’, ‘पाश्चात्य काव्य चिन्तन : आभिजात्यवाद से उत्तर आधुनिकतावाद तक’, ‘अप्रतिम भारत’, ‘चित्रा मुद्गल संचयन’, ‘गोरखबानी’, ‘मध्यकालीन कविता का पुनर्पाठ’। उन्होंने ‘मानव मूल्यपरक शब्दावली का विश्वकोश’, ‘तुलनात्मक साहित्य का विश्वकोश’ का सहलेखन और कई पुस्तकों का सम्पादन किया है।
उन्हें महाराष्ट्र राज्य हिन्दी साहित्य अकादमी का ‘बाबूराव विष्णु पराडकर पुरस्कार’, ‘हिन्दी सेवी सम्मान’, ‘पं. दीनदयाल उपाध्याय आदर्श शिक्षक सम्मान’, ‘विश्व हिन्दी सेवा सम्मान’, ‘व्यंग्य यात्रा सम्मान’, ‘मध्य प्रदेश राष्ट्रभाषा प्रचार समिति सम्मान’, ‘विद्यापति कवि कोकिल सम्मान’, ‘साहित्य भूषण सम्मान’, महाराष्ट्र राज्य हिन्दी साहित्य अकादमी का ‘पद्मश्री अनन्त गोपाल शेवड़े सम्मान’, ‘पुस्तक भारती संस्थान’, कनाडा का ‘प्रो. नीलू गुप्ता सम्मान’ आदि कई सम्मानों से सम्मानित किया जा चुका है।
सम्प्रति : प्रोफ़ेसर एवं अध्यक्ष, हिन्दी विभाग, मुम्बई विश्वविद्यालय।
ई-मेल : dr.krupadhyay@gmail.com

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