Madhyakaleen Kavita Ka Punarpaath

Edition: 2021, Ed. 1st
Language: Hindi
Publisher: Radhakrishna Prakashan
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Madhyakaleen Kavita Ka Punarpaath
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मध्यकालीन साहित्य अपने व्यापक सन्दर्भों और उदात्त मूल्यबोध के कारण निरन्तर प्रासंगिक रहा है। दलितों, वंचितों, पीड़ितों, उपेक्षितों और स्त्रियों समेत जीवमात्र के प्रति गहरी सहानुभूति और संवेदनशीलता के रूप में लोकमंगल की जो भावना इसमें दिखाई पड़ती है, उसने इसको आज और अधिक प्रासंगिक बना दिया है। लेकिन मध्यकालीन साहित्य शास्‍त्रीय रूढ़ियों, सामाजिक वर्जनाओं, धार्मिक संकीर्णताओं आदि के विरुद्ध लोकचेतना के उन्मेष से उपजे इस साहित्य की अर्थवत्ता को वर्तमान सन्दर्भों में समझने-समझाने के लिए इस पर नए सिरे से दृष्टि डालना आवश्यक है। यह पुस्तक यही काम करती है।

पाठ केन्द्रित आलोचना पर ज़ोर देते हुए यह पुस्तक मध्यकालीन साहित्य को समाज, वस्तु, घटना, विचार, परिवर्तन, अन्तर्वृत्तियों और व्यक्तियों की सापेक्षता में विश्लेषित-मूल्यांकित करती है, ताकि उसका वस्तुनिष्ठ और मानक पाठ तैयार किया जा सके। यह सप्रमाण दिखलाती है कि सतर्क पाठ-विश्लेषण न केवल इस साहित्य के बहुस्तरीय और गहन अर्थ को उद्घाटित कर सकता है, बल्कि युग सापेक्ष दृष्टिबोध भी प्रस्तुत कर सकता है।

इसमें भक्ति साहित्य और रीति साहित्य, दोनों पर विचार किया गया है। मध्यकालीन साहित्य के कवियों की निजी अनुभूति के ‘स्व’ से ‘पर’ और ‘पर’ से ‘सर्व’ में रूपान्तरण और लोकसत्ता से एकाकार होकर सार्वभौम होने की प्रक्रिया का उद‍्घाटन इस पुस्तक की उल्लेखनीय विशेषता है।

निश्चय ही, यह पुस्तक मध्यकालीन साहित्य के अध्येताओं के साथ-साथ सामान्य पाठकों के लिए भी पठनीय और संग्रहणीय सिद्ध होगी।

More Information
Language Hindi
Binding Hard Back
Publication Year 2021
Edition Year 2021, Ed. 1st
Pages 264p
Translator Not Selected
Editor Not Selected
Publisher Radhakrishna Prakashan
Dimensions 22 X 14.5 X 2
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Karunashankar Upadhyay

Author: Karunashankar Upadhyay

करुणाशंकर उपाध्याय

डॉ. करुणाशंकर उपाध्याय का जन्म 15 अप्रैल, 1968 को घोरका तालुकदारी, शिवगढ़, प्रतापगढ़, उत्तर प्रदेश में हुआ। ‘पाश्चात्य काव्य चिन्तन के विविध आन्दोलन’ विषय पर उन्होंने पोस्ट डॉक्टरल किया है। उनकी प्रकाशित कृतियाँ हैं—‘सर्जना की परख’, ‘आधुनिक हिन्दी कविता में काव्य चिन्तन’, ‘मध्यकालीन काव्य : चिन्तन और संवेदना’, ‘पाश्चात्य काव्य-चिन्तन’, ‘विविधा’, ‘आधुनिक कविता का पुनर्पाठ’, ‘हिन्दी कथा साहित्य का पुनर्पाठ’, ‘हिन्दी का विश्व सन्दर्भ’, ‘आवाँ विमर्श’, ‘हिन्दी साहित्य : मूल्यांकन और मूल्यांकन’, ‘ब्लैकहोल विमर्श’, ‘सृजन के अनछुए सन्दर्भ’, ‘साहित्य और संस्कृति के सरोकार’, ‘पाश्चात्य काव्य चिन्तन : आभिजात्यवाद से उत्तर आधुनिकतावाद तक’, ‘अप्रतिम भारत’, ‘चित्रा मुद्गल संचयन’, ‘गोरखबानी’, ‘मध्यकालीन कविता का पुनर्पाठ’। उन्होंने ‘मानव मूल्यपरक शब्दावली का विश्वकोश’, ‘तुलनात्मक साहित्य का विश्वकोश’ का सहलेखन और कई पुस्तकों का सम्पादन किया है।
उन्हें महाराष्ट्र राज्य हिन्दी साहित्य अकादमी का ‘बाबूराव विष्णु पराडकर पुरस्कार’, ‘हिन्दी सेवी सम्मान’, ‘पं. दीनदयाल उपाध्याय आदर्श शिक्षक सम्मान’, ‘विश्व हिन्दी सेवा सम्मान’, ‘व्यंग्य यात्रा सम्मान’, ‘मध्य प्रदेश राष्ट्रभाषा प्रचार समिति सम्मान’, ‘विद्यापति कवि कोकिल सम्मान’, ‘साहित्य भूषण सम्मान’, महाराष्ट्र राज्य हिन्दी साहित्य अकादमी का ‘पद्मश्री अनन्त गोपाल शेवड़े सम्मान’, ‘पुस्तक भारती संस्थान’, कनाडा का ‘प्रो. नीलू गुप्ता सम्मान’ आदि कई सम्मानों से सम्मानित किया जा चुका है।
सम्प्रति : प्रोफ़ेसर एवं अध्यक्ष, हिन्दी विभाग, मुम्बई विश्वविद्यालय।
ई-मेल : dr.krupadhyay@gmail.com

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