Ek Gond Gaon Me Jeevan

Author: Veriar Elwin
Translator: Narendra Vashishth
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Ek Gond Gaon Me Jeevan
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वेरियर एलविन एक युवा अंग्रेज़ थे जो मिशनरी बनकर भारत आए और बाद में भारत के एक महत्त्वपूर्ण मानव-विज्ञानी बने। गांधी जी की प्रेरणा और जमनालाल बजाज के मार्गदर्शन में वेरियर एलविन ने मैकाल पहाड़ी पर बसे एक गोंड गाँव करंजिया में बसने का निर्णय लिया और उस क्षेत्र के लोगों के कल्याण के लिए ख़ुद को समर्पित कर दिया। ‘एक गोंड गाँव में जीवन’ उनके करंजिया में बिताए 1932 से 1936 तक के जीवन का रोज़नामचा है जहाँ वे गोंड लोगों की तरह ही स्वयं और कुछ मित्रों की सहायता से बनाई गई एक झोंपड़ी में रहते थे। यह जीवन्त, मर्मस्पर्शी और उपाख्यानात्मक पुस्तक है जिसमें एलविन ने निरीक्षण की अपनी मानव-विज्ञानी क्षमता और स्वाभाविक विनोदप्रियता के संयोग से गोंड जीवन की बहुरंगी छवि और आश्रम, जिसमें हिन्दू मुसलमान, ईसाई, गोंड आदि सभी शामिल हैं, की आन्तरिक उपलब्धि का उत्कृष्ट वर्णन किया है।

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Language Hindi
Format Hard Back
Publication Year 2007
Edition Year 2024, Ed. 3rd
Pages 140p
Translator Narendra Vashishth
Editor Not Selected
Publisher Rajkamal Prakashan
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Veriar Elwin

Author: Veriar Elwin

वेरियर एलविन

सन् 1902; डोवर, इंग्लैड में जन्म।

वेरियर एलविन जब ऑक्सफ़ोर्ड में छात्र थे, तब उन्होंने भारतीय संस्कृति में गहरी रुचि दिखाई थी। वह एक धर्मनिष्ठ ईसाई थे और उन्होंने एक मिशनरी के रूप में औपचारिक प्रशिक्षण प्राप्त किया था। वे 1927 में एक मिशनरी के रूप में भारत आए तथा पुणे में क्रिश्चियन सर्विस सोसाइटी में शामिल हुए।

एलविन इंग्लैंड से भारत मुख्यतः मिशनरी कार्य के लिए आए थे मगर अपने अन्तर्द्वन्‍द्वों, गांधी जी के विचारों और सान्निध्य, जनजातियों की स्थिति, मिशनरियों के कार्यों के तरीक़ों को देखकर उनके विचार बदल गए। फिर उन्होंने जनजातियों के बीच रहकर उनकी शिक्षा और स्वास्थ्य के लिए काम करने का निश्चय किया और इसी दौरान अपने विख्यात मानवशास्त्रीय शोध-कार्य किए।

अपने शोध-कार्यों के कारण वह भारतीय जनजातीय जीवन-शैली और संस्कृति के क्षेत्र में बड़े विद्वानों में से एक बन गए, ख़ासकर गोंडी लोगों के बीच बहुत मशहूर हुए। उन्होंने 1945 में मानव विज्ञान सर्वेक्षण के उप-निदेशक के रूप में भी कार्य किया। स्वतंत्रता के बाद उन्होंने भारतीय नागरिकता ले ली। तत्कालीन प्रधानमंत्री पं. नेहरू ने उन्हें उत्तर-पूर्वी भारत के आदिवासी मामलों के सलाहकार के रूप में नियुक्त किया और बाद में वे नेफा जिसे अब अरुणाचल प्रदेश के नाम से जाना जाता है, वहाँ की सरकार के एंथ्रोपोलॉजिकल सलाहकार बनाए गए। भारत सरकार ने उन्हें 1961 में पद्मभूषण से सम्मानित किया। उनकी आत्मकथा ‘द ट्राइबल वर्ल्ड ऑफ़ वेरियर एलविन’ के लिए मरणोपरान्त उन्हें 1965 का ‘साहित्य अकादेमी पुरस्कार’ दिया गया।

प्रमुख कृतियाँ—‘हत्या और आत्महत्या के बीच मारिया’, ‘एक गोंड गाँव में जीवन’, ‘अगरिया’, ‘जनजातीय मिथक : उड़िया आदिवासियों की कहानियाँ’, ‘महाकोशल अंचल की लोककथाएँ’ आदि।

22 फ़रवरी, 1964; दिल्‍ली में निधन।

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