इस पुस्तक में संकलित महाकोशल अंचल की लोककथाओं को मध्य प्रदेश के मंडला, सिवनी, बालाघाट, बिलासपुर एवं रायपुर ज़िलों और रीवा, कवर्धा, सारंगढ़ और बस्तर से एकत्र किया गया है। इन कहानियों को स्थानीय जनजातियों के लोगों से सुनकर और बातचीत कर यहाँ लिपिबद्ध किया गया है।
मध्यवर्ती भारत में प्रचलित कहानियों के अनेक रूप हैं। इनमें से कुछ को हम गद्य कह सकते हैं—सीधे–सीधे विवरण जिन्हें संकेतों और भंगिमाओं के माध्यम से सुनाया गया, फिर भी उनमें कोई विशेष परिवर्तन नहीं आया।
कुछ कहानियों में संवादों के अंशों को गाकर बताया गया था। सूक्तियाँ या पद्य लयबद्ध सरल धुनों में गाई गई थीं। किसी–किसी कहानी में सभी संवाद संगीत में नहीं थे। कुछ विशेष पद्य और भाव ही संगीत में थे। यह जानना दिलचस्प होगा कि कहानी का गाया हुआ अंश कहानी के साथ जुड़ा ही रहा जिससे इन कहानियों की आत्मीयता बनी रही।
प्रस्तुत पुस्तक आदिवासियों की कहानियों के ज़रिए हमें उनके नज़दीक ले जाती है। आदिवासियों के विभिन्न संस्कारों के साथ–साथ उनकी मासूमियत और भोलापन भी हमें इन कहानियों में देखने को मिलता है।
इसके अलावा इस पुस्तक को आनन्द के उद्देश्य से पढ़ा जाए तो यह और मनोरंजक तथा सरस लगेगी।
Language | Hindi |
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Binding | Hard Back |
Translator | Dinesh Mishra |
Editor | Not Selected |
Edition Year | 2018, Ed. 2nd |
Pages | 391p |
Publisher | Rajkamal Prakashan |
Dimensions | 22 X 14.5 X 2.5 |