Muria Aur Unka Ghotul : Vol 1-2

Author: Veriar Elwin
Translator: Prakash Parihar
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Muria Aur Unka Ghotul : Vol 1-2
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मुरिया और उनका घोटुल-1 के इस भाग में बस्तर के मुरिया आदिवासियों के जीवन से जुड़े उन सभी आयामों को रेखांकित किया गया है जिनसे अभी तक हम अनभिज्ञ थे। यहाँ घोटुल है जिसका उद्गम स्रोत है।

लिंगो पेन देवता। यह गाँव के बच्चों और युवाओं का निवास स्थान है। कबीले के हर अविवाहित लड़के और लड़की को इसका सदस्य बनना पड़ता है। घोटुल की सदस्यता मात्र मन-बहलाव का साधन नहीं है बल्कि धार्मिक आस्थाओं से जुड़ी एक सामाजिक परम्परा है। इस परम्परा को कड़े नियमों द्वारा नियन्त्रित किया जाता है।

यहाँ लड़कों को चेलिक और लड़कियों को मुटियारी कहा जाता है। लड़कों का नेता सरदार है तो लड़कियों की नेता बैलोसा है। मुरिया जीवन के आर्थिक, सामाजिक, धार्मिक पहलुओं का वर्णन करता हुआ घोटुल सिर्फ़ एक रात्रि क्लब है, दिन में इसके सदस्यों को खाने की व्यवस्था, खेती, शिकार, मछली पकड़ना, शहद एकत्रित करना व सागो ताड़ का रस तथा ईंधन जुटाने में व्यस्त कर दिया जाता है।

मुरिया जीवन को खोलती इस पुस्तक में मुरिया समुदाय के जीवन के हर पहलू, उनकी आजीविका, कबीले का संगठन, बचपन, युवावस्था, धर्म और उनके देवताओं का वर्णन विस्तार से प्रामाणिक ढंग से किया गया है।

More Information
Language Hindi
Format Hard Back
Publication Year 2008
Edition Year 2022, Ed. 4th
Pages 885p
Translator Prakash Parihar
Editor Not Selected
Publisher Rajkamal Prakashan
Dimensions 22 X 14.5 X 7
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Veriar Elwin

Author: Veriar Elwin

वेरियर एलविन

सन् 1902; डोवर, इंग्लैड में जन्म।

वेरियर एलविन जब ऑक्सफ़ोर्ड में छात्र थे, तब उन्होंने भारतीय संस्कृति में गहरी रुचि दिखाई थी। वह एक धर्मनिष्ठ ईसाई थे और उन्होंने एक मिशनरी के रूप में औपचारिक प्रशिक्षण प्राप्त किया था। वे 1927 में एक मिशनरी के रूप में भारत आए तथा पुणे में क्रिश्चियन सर्विस सोसाइटी में शामिल हुए।

एलविन इंग्लैंड से भारत मुख्यतः मिशनरी कार्य के लिए आए थे मगर अपने अन्तर्द्वन्‍द्वों, गांधी जी के विचारों और सान्निध्य, जनजातियों की स्थिति, मिशनरियों के कार्यों के तरीक़ों को देखकर उनके विचार बदल गए। फिर उन्होंने जनजातियों के बीच रहकर उनकी शिक्षा और स्वास्थ्य के लिए काम करने का निश्चय किया और इसी दौरान अपने विख्यात मानवशास्त्रीय शोध-कार्य किए।

अपने शोध-कार्यों के कारण वह भारतीय जनजातीय जीवन-शैली और संस्कृति के क्षेत्र में बड़े विद्वानों में से एक बन गए, ख़ासकर गोंडी लोगों के बीच बहुत मशहूर हुए। उन्होंने 1945 में मानव विज्ञान सर्वेक्षण के उप-निदेशक के रूप में भी कार्य किया। स्वतंत्रता के बाद उन्होंने भारतीय नागरिकता ले ली। तत्कालीन प्रधानमंत्री पं. नेहरू ने उन्हें उत्तर-पूर्वी भारत के आदिवासी मामलों के सलाहकार के रूप में नियुक्त किया और बाद में वे नेफा जिसे अब अरुणाचल प्रदेश के नाम से जाना जाता है, वहाँ की सरकार के एंथ्रोपोलॉजिकल सलाहकार बनाए गए। भारत सरकार ने उन्हें 1961 में पद्मभूषण से सम्मानित किया। उनकी आत्मकथा ‘द ट्राइबल वर्ल्ड ऑफ़ वेरियर एलविन’ के लिए मरणोपरान्त उन्हें 1965 का ‘साहित्य अकादेमी पुरस्कार’ दिया गया।

प्रमुख कृतियाँ—‘हत्या और आत्महत्या के बीच मारिया’, ‘एक गोंड गाँव में जीवन’, ‘अगरिया’, ‘जनजातीय मिथक : उड़िया आदिवासियों की कहानियाँ’, ‘महाकोशल अंचल की लोककथाएँ’ आदि।

22 फ़रवरी, 1964; दिल्‍ली में निधन।

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