दिनकर आधुनिक हिन्दी कविता के उत्तर–छायावादी व नवस्वच्छन्दतावादी दौर के सर्वश्रेष्ठ कवि थे। कवि–रूप में उनकी दो विशेषताएँ थीं। एक तो यह कि उनकी कविता के अनेक आयाम हैं और दूसरी यह कि उनमें अन्त–अन्त तक विकास होता रहा। ‘प्रण–भंग’ से लेकर ‘हारे को हरिनाम’ तक की काव्य–यात्रा जितनी ही विविधवर्णी है, उतनी ही गतिशील भी। दिनकर रचनावली के अवलोकन के बाद डॉ. नामवर सिंह ने उचित ही यह टिप्पणी की कि कुल मिलाकर दिनकर जी का रचनात्मक व्यक्तित्व बहुत कुछ निराला की तरह है।
दिनकर की कविता के उल्लेखनीय आयाम हैं राष्ट्रीयता, सामाजिकता, प्रेम और शृंगार तथा आत्मपरकता एवं आध्यात्मिकता। इन आयामों का अतिक्रमण करते हुए उन्होंने अच्छी संख्या में ऐसी कविताएँ लिखी हैं, जिन्हें किसी खाने में नहीं रखा जा सकता। वस्तुत: ऐसी कविताएँ ही उन्हें महान कवि बनाती हैं। सबसे ऊपर उनकी विशेषता है उनके व्यक्तित्व की ओजस्विता, जो उनकी प्रत्येक प्रकार की कविताओं में अभिव्यंजित होती है। स्वभावत: उनकी प्रेम–शृंगार और आध्यात्मिक कविताओं में जो लावण्य है, उसे एक आलोचक के शब्द लेकर ‘ओजस्वी लावण्य’ कहा जा सकता है।
‘नई कविता’ के दौर में दिनकर जी को वह सम्मान न मिला, जिसके वे अधिकारी थे। उन्हें वक्तृतामूलक और प्रचारवादी कवि कहा गया, जबकि सच्चाई यह है कि ये दोनों बातें स्वतंत्रता–आन्दोलन के प्रवक्ता कवि के लिए स्वाभाविक थीं, लेकिन ज्ञातव्य यह है कि उन्होंने श्रेष्ठ कविता का दामन कभी नहीं छोड़ा। दूसरे, समय के साथ उनकी कविता का तर्ज बदलता गया और वे भी ‘महीन’ कविताएँ लिखने लगे, जिनमें एक नई आभा है। निश्चय ही उनकी कविता हिन्दी की कालजयी कविता है, उसे नया विस्तार और तनाव देनेवाली।
Language | Hindi |
---|---|
Binding | Hard Back |
Publication Year | 2013 |
Edition Year | 2023, Ed. 2nd |
Pages | 180p |
Translator | Not Selected |
Editor | Not Selected |
Publisher | Rajkamal Prakashan |
Dimensions | 22.5 X 14.5 X 1.5 |