Dharampur Lodge-Hard Back

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9789389742084
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उम्मीद, नाउम्मीदी से कहीं अधिक बड़ी होती है। नाउम्मीदी जब लोगों को बार-बार हराने का मंसूबा बनाती है तो लोग उसे पछाड़कर आगे बढ़ जाते हैं। यह उपन्यास ऐसे ही तीन लड़कों की कहानी है जो किशोर उम्र से जवानी की दहलीज़ पर आ खड़े होते हैं और उसमें तमाम रंग भरते, एक दिन उसे लाँघकर उम्र के अगले पड़ाव पर पहुँच जाते हैं। उनकी ज़‍िन्‍दगी उस धरातल पर चलती है जहाँ उनके गली-मोहल्ले के सुख-दु:ख हैं। जहाँ उन्हें लगता है कि बस इतना ही आकाश है उनका। वे एक ओर प्रेम का स्वप्निल संसार रचते हैं तो दूसरी ओर अपराध की नगरी उन्हें खींचती है। उनकी ज़िन्‍दगी वास्तविक कठोर धरातल पर तब आती है जब वे अपने इलाक़े के मज़दूरों से जुड़ते हैं, देश में आ रहे परिवर्तनों के गवाह बनते हैं। एक तरफ़ उदारीकरण की कवायद तो दूसरी तरफ़ साम्प्रदायिकता का उभार। एक तरफ़ समृद्धि के नए ख़ूबसूरत सपने और दूसरी तरफ़ बदहाली की बदसूरत तस्वीरें। ये दिल्ली के उस दौर की कहानी है जब शहर की आबोहवा सुधारने के लिए दिल्ली के कपड़ा मिलों में काम करनेवाले हज़ारों लोगों का रोज़गार एक झटके में ख़त्म कर दिया गया। कितनी ही ज़‍िन्‍दगियाँ तबाही की ओर धकेल दी गईं। उपन्यासकार ने समय की इसी इबारत को आपके सामने लाने की एक सार्थक कोशिश की है। पुरानी दिल्ली के इलाक़े क़‍िस्सागोई के अन्‍दाज़ में बयाँ हुए हैं।

More Information
Language Hindi
Binding Hard Back
Publication Year 2020
Edition Year 2020, Ed. 1st
Pages 232p
Price ₹500.00
Translator Not Selected
Editor Not Selected
Publisher Lokbharti Prakashan
Dimensions 22 X 14.5 X 1.5
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You're reviewing:Dharampur Lodge-Hard Back
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Pragya

Author: Pragya

प्रज्ञा

दिल्ली में जन्मी प्रज्ञा के ‘तक़सीम’, ‘मन्नत टेलर्स’, ‘रज्जो मिस्त्री’ तथा ‘मालूशाही...मेरा छलिया बुरांश’ शीर्षक से चार कथा-संग्रह हैं। ‘गूदड़ बस्ती’ और ‘धर्मपुर लॉज’ जैसे उनके दो बहुप्रशंसित उपन्यास हैं। तीसरा उपन्यास ‘काँधों पर घर’ आपके हाथों में है। उनके उपन्यास और कहानी संग्रह ‘मीरा स्मृति सम्मान’, ‘महेंद्रप्रताप स्वर्ण सम्मान’, ‘शिवना अन्तरराष्ट्रीय कथा सम्मान’, ‘प्रतिलिपि डॉट कॉम सम्मान’, ‘स्टोरी मिरर पुरस्कार’ से सम्मानित हुए हैं।

‘नुक्कड़ नाटक : रचना और प्रस्तुति’, ‘नाटक से संवाद’, ‘नाटक : पाठ और मंचन’, ‘कथा एक अंक की’ जैसी किताबें नाट्यालोचना के​न्द्रित हैं। उनके द्वारा सम्पादित बारह नुक्कड़ नाटक ‘जनता के बीच : जनता की बात’ किताब में शामिल हैं। ‘तारा की अलवर यात्रा’ बाल साहित्य की श्रेणी में प्रथम पुरस्कार, भारतेन्दु हरिश्चन्द्र पुरस्कार 2008 से पुरस्कृत है। वैचारिक लेखन से जुड़े लेख प्रज्ञा की किताब ‘आईने के सामने’ में संकलित हैं। लगभग ढाई दशक से प्रज्ञा दिल्ली विश्वविद्यालय के किरोड़ीमल कॉलेज में अध्यापन कर रही हैं। इस समय वे हिन्दी विभाग, किरोड़ीमल कॉलेज में प्रोफेसर के पद पर कार्यरत हैं।

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