Malooshahi…Mera Chhalia Buransh

Author: Pragya
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Malooshahi…Mera Chhalia Buransh
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‘मालूशाही...मेरा छलिया बुरांश’ संग्रह की नौ कहानियाँ यथार्थ के विविध रूप हैं। कहीं अच्छे आदमी का अपने भीतर के बुरे को पहचाना जाना है तो कहीं प्रतिकूल समय की नब्ज़ को टटोलना है। कोई कहानी शिक्षा के दरीचे को पाठक के लिए नए सिरे से खोलती है तो कोई माटी का राग छेड़ देती है। यथार्थ के अन्तर्विरोधी स्वरों को पकड़ना हो या फिर उसके भीतर प्रवाहित छिपी हुई धवल लहर को देख पाना-कथाकार प्रज्ञा की कहानियाँ उसे पाठक के सामने लाती रही हैं। प्रज्ञा की कहानियों के विषय विविध हैं। श्रमशील वर्ग से लेकर मध्यवर्ग, शहर से लेकर गाँव और उसके सामाजिक-आर्थिक-राजनीतिक परिवर्तनों को पकड़ने की दृष्टि प्रज्ञा के पास है। उपेक्षित हाशिए के विविध चेहरों को, उनकी आवाज़ों को कथाकार ने बेहद मज़बूती के साथ दर्ज कराया है। उनकी कहानियाँ हों या उपन्यास यह ख़ासियत उनमें देखी जा सकती है। प्रज्ञा के रचे किरदार अनेक समस्याओं से जूझते हैं पर उम्मीद का दामन नहीं छोड़ते। प्रतिरोध की ताक़त और उत्कट जिजीविषा के साथ वे हौसले की डोर थामे रहते हैं। कई बार टूटते भी हैं पर जीवन से भागते नहीं। 

परिवेश, शिल्प और बारीक़ बुनावट ‘मालूशाही...मेरा छलिया बुरांश’ की कहानियों में देखी जा सकती है। स्वाभाविक की आशा और नियत की अनिश्चितता से प्रज्ञा अपनी कहानियों का संसार बुनती हैं। इसीलिए उनकी अधिकांश कहानियाँ रहस्य और जिज्ञासा से भरी होकर पाठक को उस अन्त पर ले जाकर खड़ा करती हैं जो उसकी चेतना में लगभग कल्पनातीत होता है। कथा-रस से भरपूर प्रज्ञा की कहानियाँ तेज़ी से भाग रहे समय को न सिर्फ़ ठहरकर देखती हैं बल्कि उनका घटनाक्रम समकाल के विविध ज्वलंत सवालों को साफ़गोई से सामने रखता है। एक दशक से अधिक की अपनी कथा-यात्रा में प्रज्ञा ने अपने समकालीन कथाकारों के बीच अपनी स्वतंत्र पहचान बनाई है।

More Information
Language Hindi
Format Hard Back, Paper Back
Publication Year 2022
Edition Year 2022, Ed. 1st
Pages 160p
Translator Not Selected
Editor Not Selected
Publisher Lokbharti Prakashan
Dimensions 22 X 14.5 X 1.5
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Pragya

Author: Pragya

प्रज्ञा

दिल्ली में जन्मी प्रज्ञा के ‘तक़सीम’, ‘मन्नत टेलर्स’, ‘रज्जो मिस्त्री’ तथा ‘मालूशाही...मेरा छलिया बुरांश’ शीर्षक से चार कथा-संग्रह हैं। ‘गूदड़ बस्ती’ और ‘धर्मपुर लॉज’ जैसे उनके दो बहुप्रशंसित उपन्यास हैं। तीसरा उपन्यास ‘काँधों पर घर’ आपके हाथों में है। उनके उपन्यास और कहानी संग्रह ‘मीरा स्मृति सम्मान’, ‘महेंद्रप्रताप स्वर्ण सम्मान’, ‘शिवना अन्तरराष्ट्रीय कथा सम्मान’, ‘प्रतिलिपि डॉट कॉम सम्मान’, ‘स्टोरी मिरर पुरस्कार’ से सम्मानित हुए हैं।

‘नुक्कड़ नाटक : रचना और प्रस्तुति’, ‘नाटक से संवाद’, ‘नाटक : पाठ और मंचन’, ‘कथा एक अंक की’ जैसी किताबें नाट्यालोचना के​न्द्रित हैं। उनके द्वारा सम्पादित बारह नुक्कड़ नाटक ‘जनता के बीच : जनता की बात’ किताब में शामिल हैं। ‘तारा की अलवर यात्रा’ बाल साहित्य की श्रेणी में प्रथम पुरस्कार, भारतेन्दु हरिश्चन्द्र पुरस्कार 2008 से पुरस्कृत है। वैचारिक लेखन से जुड़े लेख प्रज्ञा की किताब ‘आईने के सामने’ में संकलित हैं। लगभग ढाई दशक से प्रज्ञा दिल्ली विश्वविद्यालय के किरोड़ीमल कॉलेज में अध्यापन कर रही हैं। इस समय वे हिन्दी विभाग, किरोड़ीमल कॉलेज में प्रोफेसर के पद पर कार्यरत हैं।

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