‘दर्रा-दर्रा हिमालय’ एक परिवार की हिमालय पर घुमक्कड़ी का वृत्तान्त है। ऐसा परिवार जो फ़ुर्सत के क्षणों में विदेशों की सैर के बजाय बर्फ़ ढँके इन पहाड़ों को वरीयता देता है। इंदौर के अजय सोडानी को हिमालय की सर्द, मनोहारी और जानलेवा वादियों से गहरा अनुराग है। काल्पनिक से लगनेवाले सौन्दर्यशाली पहाड़ों पर सपरिवार चढ़ाई और बर्फ़ के गगनचुम्बी शिखरों को दर्रा-दर्रा महसूस करने के दौरान प्रकृति के मनोरम स्पर्श से भीगे तन-मन कई बार मौत के मुक़ाबिल भी रहे, लेकिन ज़िन्दगी के पन्ने पर हौसले की स्याही से साहस की गाथा रचनेवाले मौत की परवाह कहाँ करते। जनश्रुतियों और पौराणिक ग्रन्थों में चर्चित स्थलों और मार्गों की सत्यता को परखने, हिमालय और वहाँ के जनजीवन के विलुप्तप्राय सौन्दर्य को निहारने-समझने की उत्कंठा में क़रीब बीस हज़ार फ़ीट की ऊँचाई वाले कालिंदी खाल पास को लाँघते हुए भी मौत का भय बर्फ़ की तरह पिघलता रहा। हिमालय की घाटियों में विचरती वायु में जाने ऐसा क्या था कि अजय बार-बार वहाँ लौटे और हर बार हिमालय की दी हुई एक नई चुनौती को स्वीकार किया। 'दर्रा-दर्रा हिमालय' अपनी राष्ट्रीय धरोहरों और प्रतीकों के प्रति अनुरक्ति वाले मानस की साहसिक यायावरी की गाथा तो कहती ही है, साथ ही रोज़-ब-रोज़ बढ़ती प्रदूषण की समस्या और पर्यावरण संरक्षण पर उसकी चिन्ता से भी रू-ब-रू कराती है।
Language | Hindi |
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Binding | Hard Back, Paper Back |
Publication Year | 2014 |
Edition Year | 2024, Ed. 4th |
Pages | 160p |
Translator | Not Selected |
Editor | Not Selected |
Publisher | Rajkamal Prakashan |
Dimensions | 22.5 X 14.5 X 1 |