मन्नू भंडारी की अभी तक असंकलित कहानियों की यह प्रस्तुति पाठकों को एक बार फिर अपनी उस प्रिय कथाकार की जादुई क़लम की याद दिलाएगी जिसने नई हिन्दी कहानी, और आज़ादी बाद बनते नए भारतीय समाज में अपनी पहचान तलाशती स्त्री के मन को रूपाकार देने में निर्णायक भूमिका निभाई।
नई कहानी आन्दोलन के उन दिनों में जब हिन्दी की रचनात्मकता अपनी प्रयोगशीलता को लेकर न सिर्फ़ मुखर बल्कि वाचाल प्रतीत होती थी, मन्नू जी ने अत्यन्त संयम के साथ बहुत सार्थक, रुचिकर, पठनीय और लोकप्रिय कहानियों-उपन्यासों की रचना की। अपने लेखक-व्यक्तित्व को लेकर हमेशा संशय में रहनेवाली मन्नू जी ने अपनी रचना-यात्रा के किसी भी मोड़ पर अपने स्वभाव को न किसी फ़ैशन के लिए छोड़ा, न किसी उपलब्धि के लिए। उनका रचना-लोक उनकी अपनी आभा से परिपूर्ण, हर नई कृति के साथ एक नए क्षितिज को रचता रहा। उनकी रचनाओं ने लेखक और पाठक के बीच दोतरफ़ा और सजीव रिश्ता बनाया। न उनकी कहानियों ने, और न ही उपन्यासों या नाटकों ने कभी पाठक से माँग की कि वह साहित्य को पढ़ने, उसकी प्रशंसा करने, उसका आनन्द लेने का प्राकृतिक अधिकार नहीं रखता, कि इसके लिए उसे किसी विशेष प्रशिक्षण की आवश्यकता है। उनकी लिखी कथाएँ हर किसी को अपनी लगीं। और अपने अलावा सबकी भी। हिन्दी में ऐसे लेखकों की बहुतायत नहीं रही। न कभी पहले, न आज।
बाद के दिनों में मन्नू जी का लिखना बहुत कम हो गया था। ऐसे में उनकी ये कहानियाँ हमारे लिए अत्यधिक बहुमूल्य हो जाती हैं। इन कहानियों में से कुछ पत्र-पत्रिकाओं में आ चुकी हैं, जबकि कुछ पहली बार इस संग्रह में शामिल हैं।
Language | Hindi |
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Binding | Hard Back |
Publication Year | 2018 |
Edition Year | 2024, Ed. 3rd |
Pages | 104p |
Translator | Not Selected |
Editor | Not Selected |
Publisher | Radhakrishna Prakashan |
Dimensions | 22.5 X 14.5 X 1 |