Arthat-Hard Cover

Author: Raghuvir Sahay
ISBN: 9788171783762
Edition: 2008, Ed. 2nd
Language: Hindi
Publisher: Rajkamal Prakashan
Special Price ₹233.75 Regular Price ₹275.00
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9788171783762
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रघुवीर सहाय आधुनिक भारत के अन्तरराष्ट्रीय ख्यातिप्राप्त कवि तो थे ही,

इस दौर के एक सशक्त सम्पादक और समाजवादी विचारक भी थे। हिन्दी पत्रकारिता में उन्होंने संवाददाता, सम्पादक और स्तम्भ-लेखक के रूप में लम्बे समय तक महत्त्वपूर्ण भूमिका निबाही। ‘अर्थात्’ में संकलित लेख उन्होंने 1984 से 1990 के दौरान लिखे जो ‘जनसत्ता’ में नियमित स्तम्भ के तौर पर छपे।

प्रस्तुत पुस्तक में संकलित लेखों में रघुवीर सहाय की सामाजिक चिन्ताएँ, उनकी जीवन-दृष्टि और समाज विरोधी शक्तियों के विरुद्ध उनकी संघर्षशीलता परिलक्षित होती है। उनके इन लेखों से राजनीति, समाज, संस्कृति, भाषा, पत्रकारिता, संचार, रंगमंच, फ़िल्म, साहित्य, यात्रा

और संस्मरण जैसे विषयों पर समग्रता से विचार करने की पद्धति सीखने को मिलती है।

रघुवीर सहाय ने अपने इन लेखों में राजनीति में प्रबन्ध और साम्प्रदायिकता पर तीखे प्रहार किए हैं, पत्रकारिता और भाषा के सवालों पर गहराई से विचार किया है और समाज में न्याय, समता तथा स्वतंत्रता की धारणा प्रस्तुत की है।

यह पुस्तक रघुवीर सहाय के लेखन में रुचि रखनेवालों के लिए तो महत्त्वपूर्ण है ही,  समाजवादी विचारों से जुड़े व्यक्तियों और पत्रकारिता, साहित्य तथा संस्कृति के अध्येताओं के लिए भी विशेष उपयोगी है।

More Information
Language Hindi
Binding Hard Back
Translator Not Selected
Editor Not Selected
Publication Year 1994
Edition Year 2008, Ed. 2nd
Pages 255p
Price ₹275.00
Publisher Rajkamal Prakashan
Dimensions 22 X 14.5 X 2
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Raghuvir Sahay

Author: Raghuvir Sahay

रघुवीर सहाय

जन्म : 9 दिसम्बर, 1929; लखनऊ। शिक्षा : लखनऊ विश्वविद्यालय से 1951 में अंग्रेज़ी साहित्य में एम.ए.। समाचार जगत में ‘नवजीवन’ (लखनऊ) से आरम्भ करके पहले समाचार विभाग, आकाशवाणी, नई दिल्ली में और फिर ‘नवभारत टाइम्स’ नई दिल्ली में विशेष संवाददाता और फिर 1979 से 1982 तक ‘दिनमान’ समाचार साप्ताहिक के प्रधान सम्पादक रहे। उसके बाद अपने अन्तिम दिनों तक स्वतंत्र लेखन करते रहे। 1988 में ‘भारतीय प्रेस परिषद’ के सदस्य मनोनीत। साहित्य के क्षेत्र में ‘प्रतीक’ (दिल्ली), ‘कल्पना’ (हैदराबाद) और ‘वाक्’ (दिल्ली) के सम्पादक-मंडल में रहे। कविताएँ ‘दूसरा सप्तक’ (1951), ‘सीढ़ियों पर धूप में’ (1960), ‘आत्महत्या के विरुद्ध’ (1967), ‘हँसो, हँसो जल्दी हँसो’ (1975), ‘लोग भूल गए हैं’ (1982) और ‘कुछ पते कुछ चिट्ठियाँ’ (1989) में संकलित हैं। कहानियाँ ‘सीढ़ियों पर धूप में’, ‘रास्ता इधर से है’ (1972) और ‘जो आदमी हम बना रहे हैं’ (1983) में और निबन्‍ध ‘सीढ़ियों पर धूप में’, ‘दिल्ली मेरा परदेस’ (1976), ‘लिखने का कारण’ (1978), ‘ऊबे हुए सुखी’ और ‘वे और नहीं होंगे जो मारे जाएँगे’ (1983) में उपलब्ध हैं। इसके अलावा कई नाटकों और उपन्यासों के अनुवाद भी किए हैं। सम्पूर्ण रचनाकर्म ‘रघुवीर सहाय रचनावली’ में प्रस्तुत है। ‘लोग भूल गए हैं’ को 1984 का राष्ट्रीय ‘साहित्य अकादमी पुरस्कार’ मिला। मरणोपरान्‍त हंगरी के सर्वोच्च राष्ट्रीय सम्मान, बिहार सरकार के ‘राजेन्द्र प्रसाद शिखर सम्मान’ और ‘आचार्य नरेन्द्रदेव सम्मान’ से सम्मानित किया गया। निधन : 30 दिसम्बर, 1990

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