रघुवीर सहाय विडम्बना के खोजी कवि हैं। समाज और उसके ऊपर-नीचे खड़ी-पड़ी तमाम संरचनाओं, यथा राजनीति, शासन-प्रशासन और ताक़त से बने या ताक़त से बिगड़े अनेक मूर्त-अमूर्त फ़ॉर्म्स को वे एक नई और असंलग्न निगाह से देखते हैं। इस बहुपठित-बहुचर्चित संग्रह की अनेक कविताएँ, जिनमें अत्यन्त प्रसिद्ध कविता, 'रामदास' भी है उनकी उसी असंलग्नता के कारण इतनी भीषण बन पड़ी है। वह असंलग्नता जो अपने समाज से बहुत गहरे, बेशर्त जुड़ाव के बाद किसी शुभाकांक्षी मन का हिस्सा बनती है।
वे इस समाज और उसको चला रही व्यवस्था को बदलने की इतनी गहरी आकांक्षा से बिंधे थे कि कविता भी उन्हें कवि न बनाकर एक चिन्तित सामाजिक के रूप में प्रक्षेपित करती थी। इसीलिए उनकी हर कविता अपनी पूर्ववर्ती कविता के विस्तार की तरह नहीं, एक नई शाखा की तरह प्रकट होती थी। यह संग्रह अपने संयोजन में स्वयं इसका साक्षी है कि हर कविता न तो शिल्प में, और न ही भाषा में अपनी किसी परम्परा का निर्माण करने की चिन्ता करती दिखती और न किसी और काव्य-परम्परा का निर्वाह करती। हर बार उनका कवि समाज नामक दु:ख के इस विस्तृत पठार में एक नई जगह से उठता दिखाई देता है और पीड़ा के एक नए रंग, नए आकार का ध्वज लेकर।
ये कविताएँ बार-बार पढ़ी गई हैं और बार-बार पढ़े जाने की माँग करती हैं। आज भी, क्योंकि, हमारे समूह-मन की जिन दरारों की ओर इन कविताओं ने संकेत किया था, आज वे और गहरी हो गई हैं।
Language | Hindi |
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Binding | Hard Back, Paper Back |
Translator | Not Selected |
Editor | Not Selected |
Publication Year | 2017 |
Edition Year | 2017, Ed. 1st |
Pages | 96p |
Publisher | Rajkamal Prakashan |