Kuchh Pate Kuchh Chitthiyan

Poetry
Author: Raghuvir Sahay
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Kuchh Pate Kuchh Chitthiyan
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रघुवीर सहाय का यह पाँचवाँ कविता-संग्रह है। आमतौर पर हिन्दी का हर कवि उम्र के हर अगले पड़ाव पर थका, ऊबा और ठस जान पड़ता है लेकिन ‘कुछ पते कुछ चिट्ठियाँ’ का कवि इसका आश्चर्यजनक अपवाद है। काव्यानुभव और सामाजिक चेतना—इन दो को अलग-अलग खानों में न बाँटने और व्यक्ति और कवि को एक समग्र इकाई बनाने की पुरानी प्रतिज्ञा के अनुसार प्रस्तुत संग्रह तक कवि का विकास देखा जा सकता है।

इस कवि में प्रखर ऐन्द्रिक संवेदन प्रखर राजनीतिक-सामाजिक चेतना का आनुषंगिक है। इसलिए इसके यहाँ यथार्थ न कोरा सतही यथार्थ रहने पाता है, न नकारात्मकता का पर्याय बनने पाता है। प्रस्तुत कविता-संग्रह इस बात की याद फिर से दिलाएगा कि रघुवीर सहाय ने आग्रहपूर्वक सच्चाइयों की चिकनी ‘काव्यात्मक’ सतह को अस्वीकार किया है और जहाँ औरों को कविता नहीं दिखती, वहाँ कविता को पहचाना है।

यह संग्रह एक विशेष अर्थ में कवि की यात्रा के अगले दौर की पूर्वसूचना भी देता है। पहले की अपेक्षा इन कविताओं में तमाम मानवीय कार्यव्यापारों की अर्थ-छवियाँ अधिक विस्तृत भूमि पर फैली हैं और कवि का सम्बन्ध ठोस वस्तुगत संसार से प्रगाढ़तर है। अपने को निरन्तरता में नया करते जानेवाले अपनी रचना-प्रक्रिया के प्रति सजग और आत्मचेता इस कलाकार के “नागर मन की भावप्रवणता, सूक्ष्मदर्शिता और तटस्थ निर्ममता अब नए परिचय की मोहताज नहीं। सहज सौन्दर्य और सूक्ष्म अनुभूति से निर्मित रघुवीर सहाय का काव्य-संसार जितना निजी है उतना ही हम सबका है—एक गहरे और अराजनैतिक अर्थ में जनवादी। भीड़ से घिरा एक व्यक्ति जो भीड़ बनने से इनकार करता है और उससे भाग जाने को ग़लत समझता है, रघुवीर सहाय का साहित्यिक व्यक्तित्व है।’’

—भारतभूषण अग्रवाल की यह टिप्पणी आज भी उल्लेखनीय है।

जहाँ तक कवि का प्रश्न है, वह मानता है कि उसे यह जानने से शक्ति नहीं मिलती कि उसने अपने को कहाँ जोड़ा है। उसका सर्जनात्मक सुख यह जानने में है कि उसने अपने को कहाँ तोड़कर एक नई बस्ती बसाई है और कमोबेश वह यह भी दिखा सके कि वह नई सृष्टि उसकी पुरानी बस्ती को उजाड़कर बनी है तो क्या कहने।

More Information
Language Hindi
Format Hard Back
Publication Year 1989
Edition Year 2022, Ed. 3rd
Pages 88p
Translator Not Selected
Editor Not Selected
Publisher Rajkamal Prakashan
Dimensions 22 X 14.5 X 1
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Editorial Review

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Raghuvir Sahay

Author: Raghuvir Sahay

रघुवीर सहाय

जन्म : 9 दिसम्बर, 1929; लखनऊ। शिक्षा : लखनऊ विश्वविद्यालय से 1951 में अंग्रेज़ी साहित्य में एम.ए.। समाचार जगत में ‘नवजीवन’ (लखनऊ) से आरम्भ करके पहले समाचार विभाग, आकाशवाणी, नई दिल्ली में और फिर ‘नवभारत टाइम्स’ नई दिल्ली में विशेष संवाददाता और फिर 1979 से 1982 तक ‘दिनमान’ समाचार साप्ताहिक के प्रधान सम्पादक रहे। उसके बाद अपने अन्तिम दिनों तक स्वतंत्र लेखन करते रहे। 1988 में ‘भारतीय प्रेस परिषद’ के सदस्य मनोनीत। साहित्य के क्षेत्र में ‘प्रतीक’ (दिल्ली), ‘कल्पना’ (हैदराबाद) और ‘वाक्’ (दिल्ली) के सम्पादक-मंडल में रहे। कविताएँ ‘दूसरा सप्तक’ (1951), ‘सीढ़ियों पर धूप में’ (1960), ‘आत्महत्या के विरुद्ध’ (1967), ‘हँसो, हँसो जल्दी हँसो’ (1975), ‘लोग भूल गए हैं’ (1982) और ‘कुछ पते कुछ चिट्ठियाँ’ (1989) में संकलित हैं। कहानियाँ ‘सीढ़ियों पर धूप में’, ‘रास्ता इधर से है’ (1972) और ‘जो आदमी हम बना रहे हैं’ (1983) में और निबन्‍ध ‘सीढ़ियों पर धूप में’, ‘दिल्ली मेरा परदेस’ (1976), ‘लिखने का कारण’ (1978), ‘ऊबे हुए सुखी’ और ‘वे और नहीं होंगे जो मारे जाएँगे’ (1983) में उपलब्ध हैं। इसके अलावा कई नाटकों और उपन्यासों के अनुवाद भी किए हैं। सम्पूर्ण रचनाकर्म ‘रघुवीर सहाय रचनावली’ में प्रस्तुत है। ‘लोग भूल गए हैं’ को 1984 का राष्ट्रीय ‘साहित्य अकादमी पुरस्कार’ मिला। मरणोपरान्‍त हंगरी के सर्वोच्च राष्ट्रीय सम्मान, बिहार सरकार के ‘राजेन्द्र प्रसाद शिखर सम्मान’ और ‘आचार्य नरेन्द्रदेव सम्मान’ से सम्मानित किया गया। निधन : 30 दिसम्बर, 1990

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