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अपने-अपने कोणार्क यानी कश्मीर से ओडिशा का सफ़र। कश्मीर की सरसब्ज़ वादी में जन्मी और पली-बढ़ी चन्द्रकान्ता को भारत के अनेक प्रान्‍तों में रहने-बसने का मौक़ा मिला। लेकिन ओडिशा में बिताए गए छह वर्ष उनकी सर्जनात्मकता के लिए अमूल्य बन गए। उन्होंने वहाँ की जीवन-शैली, लोक-रंगों और परम्पराओं की महक महसूस की है, जिसका जीवन्त प्रमाण है ‘अपने-अपने कोणार्क’।

ओडिशा की संस्कृति धरोहर—पुरी और कोणार्क, जीवन के दो पहलू; सम्पूर्ण जीवन का फ़लसफ़ा यहाँ मौजूद है, जिसे लेखिका ने ऐतिहासिक एवं भौगोलिक परिदृश्य के साथ वर्तमान की सच्चाइयों से जोड़कर देखा है। उपन्यास की नायिका कुनी के माध्यम से उन्होंने आम ओड़ि‍या जन को उसके विगत और वर्तमान के साथ प्रस्तुत किया है। 'मोर गौरव जगन्नाथ' में विश्वास करता आम ओड़ि‍या जन अपने परम्परागत आलोक से मुग्ध, रक्षणशील तथा संस्कारवान भी है और हम सबकी तरह अन्धविश्वासी और रूढ़ मानसिकता से ग्रस्त भी। कुनी इसी रक्षणशील परिवार की बड़ी बेटी है, हज़ारहा दायित्वों की साँकलों में क़ैद, गोकि वह उन्हें साँकलें समझती नहीं। वह अपनी लीक आप बनाती, वक्त की सच्चाइयों के रू-ब-रू होते अपने भीतर को जानने और पाने की कोशिश करती है। ओडिशा की पृष्ठभूमि में वहाँ के इन्द्रधनुषी रंगों को समेटे कुनी की यह कहानी सच की तलाश है।

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Language Hindi
Binding Hard Back, Paper Back
Translator Not Selected
Editor Not Selected
Publication Year 2006
Edition Year 2019, Ed. 2nd
Pages 202p
Price ₹199.00
Publisher Rajkamal Prakashan
Dimensions 21.5 X 14 X 1.5
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Chandrakanta

Author: Chandrakanta

चन्‍द्रकान्‍ता

3 सितम्बर, 1938 को श्रीनगर, कश्मीर में जन्म। बी.ए., बी.एड. तक की शिक्षा श्रीनगर से तथा बिड़ला आर्ट्स कॉलेज, पिलानी (राजस्थान) से हिन्दी साहित्य में एम.ए.। 

1967 से निरन्तर सृजनरत चन्द्रकान्ता के अब तक चौदह कहानी-संग्रह प्रकाशित हो चुके हैं। इनके अलावा चयनित एवं चर्चित कहानियों के नौ संकलन एवं समग्र कहानियाँ चार खंडों में प्रकाशित हैं। आपके प्रकाशित उपन्यास हैं—‘अन्तिम साक्ष्य’, ‘अर्थान्तर’, ‘बाक़ी सब ख़ैरियत है’, ‘ऐलान गली ज़िन्दा है’, ‘अपने-अपने कोणार्क’, ‘यहाँ वितस्ता बहती है’, ‘कथा सतीसर’, ‘समय-अश्व बेलगाम’। अन्य कृतियाँ हैं—‘यहीं कहीं आसपास’ (कविता-संग्रह); ‘हाशिए की इबारतें’ (आत्मकथात्मक संस्मरण); ‘मेरे भोजपत्र’ (संस्मरण एवं आलेख); ‘प्रश्नों के दायरे में’ (साक्षात्कार)।

चन्द्रकान्ता की कई कहानियों एवं उपन्यासों के विभिन्न भारतीय भाषाओं एवं अंग्रेज़ी में अनुवाद हो चुके हैं। आपकी रचनाएँ कई विश्वविद्यालयों के हिन्दी साहित्य के पाठ्यक्रम में शामिल हैं। दूरदर्शन के लिए कई कहानियों का फ़िल्मांकन तथा आकाशवाणी से कहानियों-उपन्यासों का धारावाहिक प्रसारण हुआ है।

आपको के.के. बिड़ला फाउंडेशन का ‘व्यास सम्मान’, हिन्दी अकादमी (दिल्ली) का ‘साहित्यकार सम्मान’, हरियाणा साहित्य अकादमी का ‘बाबू बालमुकुंद गुप्त पुरस्कार’, उ.प्र. हिन्दी संस्थान का ‘महात्मा गांधी सम्मान’, केन्द्रीय हिन्दी संस्थान (आगरा) का ‘सुब्रह्मण्यम भारती पुरस्कार’ आदि अनेक प्रतिष्ठित पुरस्कार एवं सम्मान मिले हैं। डी.एस.सी. साउथ एशियन लिटरेरी प्राइज़ की शॉर्टलिस्ट में ए स्ट्रीट इन श्रीनगर (ऐलान गली ज़िन्दा है का अंग्रेज़ी अनुवाद) और लॉन्गलिस्ट में द सागा ऑफ़ सतीसर (कथा सतीसर का अंग्रेज़ी अनुवाद) शामिल एवं पुरस्कृत।

ईमेल : chandrakanta39@gmail.com

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