Hashiye Ki Ibaraten

Author: Chandrakanta
Edition: 2009, Ed. 1st
Language: Hindi
Publisher: Rajkamal Prakashan
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Hashiye Ki Ibaraten

चन्द्रकान्ता की कृतियाँ जहाँ सामयिक व्यवस्था के विद्रूपों एवं स्त्री-विमर्श की जटिलताओं की तहें खोलती हैं, वहीं सम्बन्धों के विघटन और मनुष्य के यांत्रिक होते जाने की विडम्बनाओं के बावजूद मूल्यों और विश्वासों की सार्थकता को नए आयाम देती हैं।

कश्मीर पर तीन महत्त्‍वपूर्ण उपन्यास लिखने के बावजूद चन्द्रकान्ता का लेखन समय के ज्वलन्त प्रश्नों एवं वृहत्तर मानवी सरोकारों से जुड़ा है।

प्रस्तुत है, स्त्रियों की सोच, आकांक्षाओं, स्वप्नों और संघर्षों की सच्चाइयों से साक्षात्कार करवानेवाली चन्द्रकान्ता की सद्य:प्रकाशित पुस्तक : ‘हाशिए की इबारतें’। अपने आत्मकथात्मक संस्मरणों के बहाने चन्द्रकान्ता ने स्त्री-मन के भीतर रसायन को खँगाला है। वहाँ अगर अँधेरे तहख़ाने हैं, तो रोशनी के गवाक्ष भी हैं; चाहों का हिलोरता सागर भी है और प्यास से हाँफता रेगिस्तान भी।

बकौल लेखिका : “मैंने इन संस्मरणों में स्त्री-समीक्षा नहीं की है, स्त्री-जीवन की भौतिकी, भीतरी कैमिस्ट्री की दख़लन्दाज़ी से बने गुट्ठिल व्यक्तित्व की कुछ गुत्थियों को खोलने की चेष्टा की है। बेटी, माँ, बहन, पत्नी, दादी, नानी के रोल निभाती स्त्री की सोच, आकांक्षाओं और स्वप्नों में सेंध लगाकर जानना चाहा है कि कई दशकों को पीछे ठेलते, प्रगति के तमाम सोपान पार करने के बाद, स्त्री से जुड़ी परिवर्तनकारी रीति-नीतियों और पुरुष वर्चस्व के अहम् पूरित सोच में कितना कुछ सार्थक बदलाव आ पाया है। घर-परिवार की धुरी स्त्री क्यों केन्द्र में क़दम जमाने से पहले ही बार-बार हाशिए पर धकेल दी जाती है? भूमंडलीकरण के इस दौर में भी क्या स्त्री के लिए कसाईघर मौजूद नहीं, जहाँ ख़ामोश, अपढ़ और बोलनेवाली तेज़-तर्रार, दोनों मिज़ाज की स्त्रियाँ, गाहे-बगाहे शहीद की जाती हैं?”

More Information
Language Hindi
Binding Hard Back
Publication Year 2009
Edition Year 2009, Ed. 1st
Pages 208p
Translator Not Selected
Editor Not Selected
Publisher Rajkamal Prakashan
Dimensions 22 X 14 X 2
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Chandrakanta

Author: Chandrakanta

चन्‍द्रकान्‍ता

3 सितम्बर, 1938 को श्रीनगर, कश्मीर में जन्म। बी.ए., बी.एड. तक की शिक्षा श्रीनगर से तथा बिड़ला आर्ट्स कॉलेज, पिलानी (राजस्थान) से हिन्दी साहित्य में एम.ए.। 

1967 से निरन्तर सृजनरत चन्द्रकान्ता के अब तक चौदह कहानी-संग्रह प्रकाशित हो चुके हैं। इनके अलावा चयनित एवं चर्चित कहानियों के नौ संकलन एवं समग्र कहानियाँ चार खंडों में प्रकाशित हैं। आपके प्रकाशित उपन्यास हैं—‘अन्तिम साक्ष्य’, ‘अर्थान्तर’, ‘बाक़ी सब ख़ैरियत है’, ‘ऐलान गली ज़िन्दा है’, ‘अपने-अपने कोणार्क’, ‘यहाँ वितस्ता बहती है’, ‘कथा सतीसर’, ‘समय-अश्व बेलगाम’। अन्य कृतियाँ हैं—‘यहीं कहीं आसपास’ (कविता-संग्रह); ‘हाशिए की इबारतें’ (आत्मकथात्मक संस्मरण); ‘मेरे भोजपत्र’ (संस्मरण एवं आलेख); ‘प्रश्नों के दायरे में’ (साक्षात्कार)।

चन्द्रकान्ता की कई कहानियों एवं उपन्यासों के विभिन्न भारतीय भाषाओं एवं अंग्रेज़ी में अनुवाद हो चुके हैं। आपकी रचनाएँ कई विश्वविद्यालयों के हिन्दी साहित्य के पाठ्यक्रम में शामिल हैं। दूरदर्शन के लिए कई कहानियों का फ़िल्मांकन तथा आकाशवाणी से कहानियों-उपन्यासों का धारावाहिक प्रसारण हुआ है।

आपको के.के. बिड़ला फाउंडेशन का ‘व्यास सम्मान’, हिन्दी अकादमी (दिल्ली) का ‘साहित्यकार सम्मान’, हरियाणा साहित्य अकादमी का ‘बाबू बालमुकुंद गुप्त पुरस्कार’, उ.प्र. हिन्दी संस्थान का ‘महात्मा गांधी सम्मान’, केन्द्रीय हिन्दी संस्थान (आगरा) का ‘सुब्रह्मण्यम भारती पुरस्कार’ आदि अनेक प्रतिष्ठित पुरस्कार एवं सम्मान मिले हैं। डी.एस.सी. साउथ एशियन लिटरेरी प्राइज़ की शॉर्टलिस्ट में ए स्ट्रीट इन श्रीनगर (ऐलान गली ज़िन्दा है का अंग्रेज़ी अनुवाद) और लॉन्गलिस्ट में द सागा ऑफ़ सतीसर (कथा सतीसर का अंग्रेज़ी अनुवाद) शामिल एवं पुरस्कृत।

ईमेल : chandrakanta39@gmail.com

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