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Anandmath-Hard Cover

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9789352211500
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प्रस्तुत पुस्तक ‘आनन्‍दमठ’ में 1770 ई. से 1774 ई. तक के बंगाल का चित्र खींचा गया है।

यह उपन्यास या ऐतिहासिक उपन्यास से बढ़कर है। ऋषि बंकिम ने इसमें उस युग का सिर्फ़ फ़ोटो नहीं खींचा, बल्कि राष्ट्र-विप्लब के भँवर में फँसे कुछ ऐसे जीवन्‍त मनुष्यों के चित्र दिए हैं, जो आज भी हमें बड़े अपने लगते हैं। इनमें सामान्य स्त्री-पुरुष भी हैं और महापुरुष भी। वे आज भी हमें राष्ट्रोत्थान का मार्ग दिखाते हैं। यह मार्ग है संघर्ष का, अन्याय से लोहा लेने का।

गीता की जो टेक है—युध्यस्व-युद्ध करो, वही टेक है ‘आनन्‍दमठ’ की। ‘भगवतगीता’ और ‘आनन्‍दमठ’, इन दोनों में पलायनवाद नहीं है। इसलिए हमारे स्वतंत्रता-संग्राम के दौरान ‘गीता’ को जो महत्त्व मिला, उससे कम महत्त्व ‘आनन्‍दमठ’ को नहीं दिया गया। इसीलिए ‘आनन्‍दमठ’ के सन्‍तान-व्रतधारियों का गीत ‘वन्दे मातरम’ हमारा राष्ट्रगीत है।

More Information
Language Hindi
Binding Hard Back, Paper Back
Translator Not Selected
Editor Not Selected
Publication Year 2016
Edition Year 2023, Ed. 4th
Pages 152p
Price ₹495.00
Publisher Lokbharti Prakashan
Dimensions 22 X 14 X 1.5
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Bankimchandra Chattopadhyay

Author: Bankimchandra Chattopadhyay

बंकिमचन्द्र चट्टोपाध्याय

राष्ट्रीय गीत ‘वन्देमातरम्’ के रचयिता बंकिमचन्द्र चट्टोपाध्याय का जन्म 1838 को उत्तरी चौबीस परगना के कन्थलपाड़ा में एक समृद्ध बंगाली परिवार में हुआ था।

सन् 1857 में बी.ए. उतीर्ण करने के पश्चात् 1869 में क़ानून की डिग्री हासिल की। प्रेसिडेंसी कालेज से बी.ए. की उपाधि लेनेवाले ये पहले भारतीय थे। शिक्षा के उपरान्त डिप्टी मजिस्ट्रेट के पद पर आपकी नियुक्ति हो गई। कुछ समय तक बंगाल सरकार के सचिव-पद पर कार्यरत थे और ‘रायबहादुर’ तथा ‘सी.आई.ई.’ की उपाधि हासिल की। सन् 1891 में सरकारी नौकरी से रिटायर हुए।

आपकी पहचान बांग्ला कवि, उपन्यासकार और पत्रकार के रूप में है। प्रथम प्रकाशित रचना ‘राजमोहन’स वाइफ़’ थी। प्रथम प्रकाशित बांग्लाकृति 'दुर्गेशनन्दिनी' मार्च, 1865 में। अगली रचना 'कपालकुंडला' 1866 में प्रकाशित। ‘आनंदमठ’, ‘देवी चौधरानी’, ‘मृणालिनी’, ‘कृष्‍णकान्‍त का वसीयतनामा’ आपके प्रसिद्ध उपन्‍यास हैं। आपकी कविताएँ ‘ललिता’ और ‘मानस’ नामक संग्रह में प्रकाशित हुई। आपने धर्म, सामाजिक और समसामयिक मुद्दों पर आधारित अनेक निबन्ध भी लिखे।

सन् 1894 में निधन।

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