वरिष्ठ नाट्य-समीक्षक जयदेव तनेजा की इस नई पुस्तक ‘आधुनिक भारतीय नाट्य-विमर्श’ में ऐसे नाटककारों और नाटकों की समीक्षा की गई है जो पिछले लगभग सौ वर्षों से अपनी सार्थकता एवं प्रासंगिकता बनाए हुए हैं। यही नहीं, संस्कृत नाट्य-काल से लेकर इक्कीसवीं सदी के प्रथम दशक में उभरे/उभर रहे उन युवा नाटककारों की चर्चा भी इस पुस्तक में है, जिन्हें समीक्षक ने भावी भारतीय नाट्य-कर्म की समृद्ध सम्भावना के रूप में पहचाना है।
नाटककार और निर्देशक परस्पर पूरक और समानधर्मा सृजनकर्मी हैं। यहाँ उन भारतीय नाटककारों की चर्चा-समीक्षा की गई है, जिनका आधुनिक नाट्य-परिदृश्य को बनाने में कमोबेश महत्त्वपूर्ण योगदान रहा है। दीर्घजीवी अथवा लगभग कालजयी उन श्रेष्ठ नाट्यालेखों को समीक्षा के लिए चुना गया है, जो अपनी बहुमंचीयता से अपनी महत्ता, प्रासंगिकता और बहुअर्थगर्भी सार्थकता सिद्ध कर चुके हैं और जिनकी सम्भावनाएँ अभी चुकी नहीं हैं।
यह पुस्तक पुरानी नाट्य-कृतियों को साहित्य-रंगमंच सम्पृक्त नई दृष्टि से विश्लेषित एवं पुनर्मूल्यांकित करती है और अपेक्षाकृत नई कृतियों की समृद्ध सम्भावनाओं के उद्घाटन द्वारा भावी नाट्य-परिदृश्य का संकेत भी देती है। आलोचक का उद्देश्य मूल आलेख की आत्मा की रक्षा करते हुए यहाँ बहुसंख्य महत्त्वपूर्ण भारतीय रचनाकारों एवं उनके उपलिब्धपूर्ण कुछ चुने हुए नाटकों की सामर्थ्य और सीमाओं को रेखांकित करने का प्रयास करना है। संस्कृत, लोक, पारसी और प्रसाद के नाटकों के आधुनिक रंग-प्रयोगों की चर्चा तथा उनकी समकालीनता की जाँच-परख इस पुस्तक का एक नया आयाम है। आशा करनी चाहिए कि लेखक की पूर्ववर्ती पुस्तकों की तरह यह भी अपनी उपयोगिता सिद्ध करेगी और सभी वर्गों के प्रबुद्ध पाठक खुले दिल से इसका स्वागत करेंगे।
Language | Hindi |
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Binding | Hard Back |
Translator | Not Selected |
Editor | Not Selected |
Publication Year | 2010 |
Edition Year | 2024, Ed. 4th |
Pages | 312p |
Publisher | Radhakrishna Prakashan |
Dimensions | 22 X 14.5 X 2 |