Mohan Rakesh : Rang-Shilp Aur Pradarshan

Drama Studies Books
Author: Jaidev Taneja
As low as ₹760.00 Regular Price ₹950.00
You Save 20%
In stock
Only %1 left
SKU
Mohan Rakesh : Rang-Shilp Aur Pradarshan
- +

मोहन राकेश आधुनिक हिन्दी रंगकर्म की एक विशिष्ट, उत्प्रेरक और प्रखर प्रतिभा थे। उनके नाटकों के तिलिस्म को तोड़ने और उनके वास्तविक महत्त्व को जानने की कुंजी उनके सूक्ष्म, जटिल एवं सम्मोहक रंग-शिल्प में छिपी है। एकाध अपवाद को छोड़कर समकालीन हिन्दी/भारतीय रंगमंच का शायद ही कोई उल्लेखनीय निर्देशक या कलाकार होगा जिसने कभी राकेश का कोई छोटा-बड़ा नाटक न किया हो। इस पुस्तक में पहली बार नाटककार राकेश के रंग-शिल्प के गहन-गम्भीर विश्लेषण के साथ-साथ हिन्दी के अतिरिक्त मराठी, बांग्ला, कन्नड़, गुजराती, पंजाबी, असमिया, मणिपुरी और अंग्रेज़ी इत्यादि भाषाओं में अलग-अलग नाट्य-शैलियों, रंग-रूपों तथा मौलिक व्याख्याओं के साथ देश-विदेश में की गई उनके नाटकों की बहुसंख्य प्रभावशाली प्रस्तुतियों का तथ्यांकन और विवेचन भी किया गया है। राकेश के नाटकों और प्रदर्शनों ने आधुनिक हिन्दी रंगान्दोलन को विकसित एवं समृद्ध करने में ऐतिहासिक भूमिका का निर्वाह किया है। इस भूमिका के सन्दर्भ में ही यहाँ राकेश के महत्त्व और योगदान को रेखांकित करने का प्रयत्न हुआ है।

यह पुस्तक नाटक-रंगमंच समन्वित उस संश्लिष्ट रंग-समीक्षा दृष्टि की ओर इशारा करने की पहल करती है, जिसके बिना किसी भी नाटक का वास्तविक और सन्तुलित मूल्यांकन हो ही नहीं सकता। चिरजीवी नाटककार मोहन राकेश के रंग-शिल्प और प्रदर्शन के बहाने यह पुस्तक समकालीन हिन्दी/भारतीय रंगकर्म की उस गम्भीर, वैविध्यपूर्ण और व्यापक सर्जनात्मक छटपटाहट को भी उजागर करती है, जो किसी भी सार्थक रचना-कर्म की बुनियादी शर्त है।

रंगकर्मियों, शोधार्थियों, अध्यापकों एवं छात्रों के लिए समान रूप से उपयोगी और राकेश के रंग-परिवेश के जिज्ञासु पाठकों/इतिहासकारों के लिए एक दिलचस्प, प्रामाणिक तथा संग्रहणीय दस्तावेज़ी ग्रन्थ।

More Information
Language Hindi
Format Hard Back
Edition Year 2018, Ed. 3rd
Pages 388p
Translator Not Selected
Editor Not Selected
Publisher Radhakrishna Prakashan
Write Your Own Review
You're reviewing:Mohan Rakesh : Rang-Shilp Aur Pradarshan
Your Rating

Editorial Review

It is a long established fact that a reader will be distracted by the readable content of a page when looking at its layout. The point of using Lorem Ipsum is that it has a more-or-less normal distribution of letters, as opposed to using 'Content here

Jaidev Taneja

Author: Jaidev Taneja

डॉ. जयदेव तनेजा

जन्म : 15 मार्च, 1943 (ओकाड़ा / पाकिस्तान)।

शिक्षा : एम.लिट्., पीएच.डी. (दिल्ली विश्वविद्यालय)।

प्रकाशन : आधुनिक हिन्दी/भारतीय नाटक और रंगमंच सम्बन्धी पन्द्रह आलोचनात्मक पुस्तकें एवं बहुसंख्य नाट्य-लेख।

मोहन राकेश सम्बन्धी लेखन : ‘लहरों के राजहंस : विविध आयाम’, ‘मोहन राकेश : रंग-शिल्प और प्रदर्शन’।

सम्पादन : ‘पूर्वाभ्यास’ (मोहन राकेश), ‘नाट्य-विमर्श’ (मोहन राकेश), ‘बी.एम. शाह’, ‘मनोहर सिंह’, ‘ब.व. कारंत’, ‘पुनश्च’ (राकेश और अश्क दम्पति का पत्राचार), ‘एकत्र’ (मोहन राकेश की असंकलित रचनाएँ), ‘मोहन राकेश : रंग-शिल्प और प्रदर्शन’, ‘राकेश और परिवेश : पत्रों में’।

पुरस्कार : ‘श्रेष्ठ साहित्यिक कृति पुरस्कार’ (हिन्दी अकादमी), ‘विश्व रंगमंच दिवस सम्मान’ (दिल्ली नाट्य संघ), ‘परिषद् सम्मान’ (साहित्य कला परिषद्), ‘साहित्यकार सम्मान’ (हिन्दी अकादमी)। अंक (मुम्बई) तथा नटसम्राट (दिल्ली) द्वारा सम्मानित।

दिल्ली विश्वविद्यालय (आत्माराम सनातन धर्म कॉलेज) से रीडर पद से सेवानिवृत्त। अब स्वतंत्र-लेखन।

Read More
Books by this Author

Back to Top