मोहन राकेश आधुनिक हिन्दी रंगकर्म की एक विशिष्ट, उत्प्रेरक और प्रखर प्रतिभा थे। उनके नाटकों के तिलिस्म को तोड़ने और उनके वास्तविक महत्त्व को जानने की कुंजी उनके सूक्ष्म, जटिल एवं सम्मोहक रंग-शिल्प में छिपी है। एकाध अपवाद को छोड़कर समकालीन हिन्दी/भारतीय रंगमंच का शायद ही कोई उल्लेखनीय निर्देशक या कलाकार होगा जिसने कभी राकेश का कोई छोटा-बड़ा नाटक न किया हो। इस पुस्तक में पहली बार नाटककार राकेश के रंग-शिल्प के गहन-गम्भीर विश्लेषण के साथ-साथ हिन्दी के अतिरिक्त मराठी, बांग्ला, कन्नड़, गुजराती, पंजाबी, असमिया, मणिपुरी और अंग्रेज़ी इत्यादि भाषाओं में अलग-अलग नाट्य-शैलियों, रंग-रूपों तथा मौलिक व्याख्याओं के साथ देश-विदेश में की गई उनके नाटकों की बहुसंख्य प्रभावशाली प्रस्तुतियों का तथ्यांकन और विवेचन भी किया गया है। राकेश के नाटकों और प्रदर्शनों ने आधुनिक हिन्दी रंगान्दोलन को विकसित एवं समृद्ध करने में ऐतिहासिक भूमिका का निर्वाह किया है। इस भूमिका के सन्दर्भ में ही यहाँ राकेश के महत्त्व और योगदान को रेखांकित करने का प्रयत्न हुआ है।
यह पुस्तक नाटक-रंगमंच समन्वित उस संश्लिष्ट रंग-समीक्षा दृष्टि की ओर इशारा करने की पहल करती है, जिसके बिना किसी भी नाटक का वास्तविक और सन्तुलित मूल्यांकन हो ही नहीं सकता। चिरजीवी नाटककार मोहन राकेश के रंग-शिल्प और प्रदर्शन के बहाने यह पुस्तक समकालीन हिन्दी/भारतीय रंगकर्म की उस गम्भीर, वैविध्यपूर्ण और व्यापक सर्जनात्मक छटपटाहट को भी उजागर करती है, जो किसी भी सार्थक रचना-कर्म की बुनियादी शर्त है।
रंगकर्मियों, शोधार्थियों, अध्यापकों एवं छात्रों के लिए समान रूप से उपयोगी और राकेश के रंग-परिवेश के जिज्ञासु पाठकों/इतिहासकारों के लिए एक दिलचस्प, प्रामाणिक तथा संग्रहणीय दस्तावेज़ी ग्रन्थ।
Language | Hindi |
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Binding | Hard Back |
Edition Year | 2018, Ed. 3rd |
Pages | 388p |
Translator | Not Selected |
Editor | Not Selected |
Publisher | Radhakrishna Prakashan |