Aachaarya Badarinath Verma-Hard Back

Special Price ₹170.00 Regular Price ₹200.00
15% Off
Out of stock
SKU
9788126720651
Share:

आचार्य बदरीनाथ वर्मा ऐसे महापुरुष थे, जो अपनी आख़िरी साँस तक राष्ट्र और राष्ट्रभाषा का सौभाग्य सँवारने के लिए सतत समुद्यत और सचेष्ट रहे। गांधी-युग के हिन्दी-सेवी देशभक्तों में बदरी बाबू का स्थान बहुत ऊँचा है। उनका निरहंकार व्यक्तित्व, उनकी सदाशयता, सहृदयता, सादगी और सर्व-हित-कामना सचमुच मनुष्य-जाति के लिए गौरव का विषय है। राष्ट्रीय एकता की उद्बोधिका राष्ट्रभाषा हिन्दी की जो आकार-कल्पना की गई है, बदरी बाबू मनसा-वाचा-कर्मणा उसके मूर्त रूप थे। गांधीवाद के अनन्य आग्रही बदरी बाबू हिन्दी के लिए ही जिए और हिन्दी के लिए ही मरे। वे गहन सात्त्विकता के साधु-पुरुष थे। विकट व्यस्तताओं में भी वे तुलसी के 'रामचरितमानस' और वेदव्यास की 'गीता' के पारायण तथा भक्ति-संगीत के श्रवण का समय निकाल ही लेते थे। संस्कृत, हिन्दी, बांग्ला, उर्दू और अंग्रेज़ी के गम्भीर ज्ञाता बदरी बाबू को सम्पूर्ण 'गीता' कंठस्थ थी।

निस्सन्‍देह, जो कोई भी बदरी बाबू के जीवन-वृत्त का अनुशीलन करेगा, उसे उसमें सरलता, स्वच्छता, सच्चरित्रता, साहस और परम सत्ता के प्रति प्रपन्नता के उदात्त उदहारण उपलब्ध होंगे। जब महापुरुषों की बातें आती हैं, तब हमारा चित्त उनके उन जीवनादर्शों की ओर हठात् उन्मुख हो उठता है, जो मनुष्य के यथार्थ उत्थान के आधारभूत उपादान हैं। उनके वे गुण सामने आ जाते हैं जिनके मनन से लोक-जीवन सार्थक और समुन्नत होने को कटिबद्ध होता है। उनके उन सत्कर्मों के दर्शन होते हैं जो हमारे भीतर साहस, स्वस्थता, शान्ति, प्रकाश, प्राण तथा शक्ति का संचार करते है। 

More Information
Language Hindi
Binding Hard Back
Publication Year 2011
Edition Year 2011, Ed. 1st
Pages 155
Price ₹200.00
Translator Not Selected
Editor Not Selected
Publisher Rajkamal Prakashan
Dimensions 22 X 14 X 1.5
Write Your Own Review
You're reviewing:Aachaarya Badarinath Verma-Hard Back
Your Rating
Kunal Kumar

Author: Kunal Kumar

कुणाल कुमार

शिक्षा : एम.ए., पीएच.डी. (पटना विश्वविद्यालय)।

प्रकाशित कृतियाँ : कविता, समीक्षा एवं बाल साहित्य की सोलह पुस्तकें।

सम्मान : बिहार सरकार द्वारा नवलेखन के लिए प्रथम पुरस्कार।

मंत्रिमंडल सचिवालय (राजभाषा) विभाग, बिहार सरकार की पत्रिका ‘राजभाषा’ के सम्पादक रहे।

 

 

Read More
Books by this Author
New Releases
Back to Top