Woh Safar Tha Ki Mukam Tha

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Author: Maitreyi Pushpa
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Woh Safar Tha Ki Mukam Tha
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मैत्रेयी पुष्पा और राजेन्द्र यादव को लेकर आधुनिक होने का दम भरनेवाले आज के हिन्दी समाज ने जितनी बातें बनाईं, उतनी शायद ही किसी और के हिस्से में आई हों। लेकिन यह किताब उन बातों की सफ़ाई नहीं है। सफ़ाई को लेकर मैत्रेयी जी स्पष्ट हैं कि सफ़ाई वे दें जिनकी दाढ़ी में तिनके हों। यह किताब उन छोटी-छोटी लकीरों के बरक्स जो समकालीनों ने उनके सामीप्य को लेकर खींचीं, एक बड़ी लकीर है। एक बड़े रिश्ते का बड़ा ख़ाका।

आरम्भ में मैत्रेयी पुष्पा बस लेखक थीं और राजेन्द्र जी उनके सम्पादक, फिर अपने सम्पादकीय-लेखकीय कौशल के चलते ग्रामीण अनुभवों से सम्पन्न इस प्रौढ़-मन लेकिन नई लेखिका के कच्चे माल में उन्होंने इतनी सम्भावनाएँ देखीं कि वे उनके मार्गदर्शक, अध्यापक, प्रेरक, आलोचक—सब हो गए। और इस लेखिका में उन्होंने एक समर्थ लेखक के अलावा पाया एक सखा जो उन्हें न अपने साहित्यिक मित्रों में मिला था न प्रतिद्वन्द्वियों में। एक ऐसा सखा जिसके सामने वे अपने मन के अन्तरतम तक को खँगाल कर देख पाते। अपनी कल्पनाओं की पतंगें उड़ा पाते, डींगें हाँक सकते, अपनी प्रेम-कहानियों और लीलाओं का स्मृति रस ले पाते। पूछ पाते, अच्छा बताओ तो डाक्टरनी, उस सौन्दर्य की देवी युवती ने मुझमें ऐसा क्या देखा! यानी वह व्यक्ति हो पाते जो सार्वजनिक छवि में बिंधा कोई भी आदमी कहीं न कहीं, कभी न कभी होना चाहता है। यहाँ यह कहना भी अप्रासंगिक न होगा कि राजेन्द्र यादव निपट इकहरे व्यक्ति न थे, लेखक और सम्पादक के रूप में उन्हें समझना आसान है, व्यक्ति के रूप में उतना नहीं। ऐसे व्यक्ति को एक निष्कलुष और निराग्रही सखा की ज़रूरत और भी ज़्यादा होती है। मैत्रेयी जी का यह वाक्य जो शायद वे अक्सर राजेन्द्र जी को कहती थीं, मन को पुलक से भर देता है कि ‘राजेन्द्र जी, आप तो हमारी सहेली हैं!’

ये संस्मरण न भक्ति से निकले हैं, न श्रद्धा से, अपने पथ-प्रदर्शक वरिष्ठ लेखक के प्रति समुचित आदर के साथ ये उस व्यक्ति को अपनी स्मृतियों में जस का तस मूर्त करने की कोशिशें हैं जिसने जीवन के अन्त तक आते-आते हिन्दी में ही नहीं, पूरे भारतीय साहित्य-जगत में एक आइकॉन का दर्जा पा लिया था, जिसने अपने प्रयासों से दलित और स्त्री-विमर्श को हिन्दी का दैनिक विषय बना दिया, जिसकी तरफ़ हर उम्र की स्त्री जाने क्यों आकर्षित हो उठती थी और जिसे साहित्यिक दुनिया का खलनायक भी कहा गया, यौन-कुंठित भी, और साहित्यिक पत्रकारिता का आधुनिक मुक्तिदाता भी।

More Information
Language Hindi
Format Hard Back, Paper Back
Publication Year 2017
Edition Year 2017, Ed. 1st
Pages 160p
Translator Not Selected
Editor Not Selected
Publisher Rajkamal Prakashan
Dimensions 22.5 X 14.5 X 1.5
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Maitreyi Pushpa

Author: Maitreyi Pushpa

मैत्रेयी पुष्‍पा

 

जन्म : 30 नवम्बर, 1944; अलीगढ़ ज़ि‍ले के सिकुर्रा गाँव में।

आरम्भिक जीवन : ज़ि‍ला झाँसी के खिल्ली गाँव में।

शिक्षा : एम.ए. (हिन्दी साहित्य), बुन्देलखंड कॉलेज, झाँसी।

प्रमुख कृतियाँ : ‘चिन्हार’, ‘गोमा हँसती है’, ‘ललमनियाँ तथा अन्य कहानियाँ’, ‘पियरी का सपना’, ‘10 प्रतिनिधि कहानियाँ’, ‘समग्र कहानियाँ’ (कहानी-संग्रह); ‘बेतवा बहती रही’, ‘इदन्नमम’, ‘चाक’, ‘झूला नट’, ‘अल्मा कबूतरी’, ‘अगनपाखी’, ‘विजन’, ‘कही ईसुरी फाग’, ‘त्रिया हठ’, ‘गुनाह-बेगुनाह’, ‘फ़रिश्ते निकले’ (उपन्यास); ‘कस्तूरी कुंडल बसै’, ‘गुड़िया भीतर गुड़िया’ (आत्मकथा); ‘खुली खिड़कियाँ’, ‘सुनो मालिक सुनो’, ‘चर्चा हमारा’, ‘आवाज़’, ‘तब्दील निगाहें’ (स्त्री-विमर्श); ‘फ़ाइटर की डायरी’ (रिपोर्ताज)।

‘फ़ैसला’ कहानी पर टेलीफ़ि‍ल्म 'वसुमती की चिट्ठी’ और ‘इदन्नमम’ पर 'मंदा हर युग में’ धारावाहिक का प्रसारण।

प्रमुख सम्मान : ‘सार्क लिट्रेरी अवार्ड’, 'द हंगर प्रोजेक्ट’ (पंचायती राज) का ‘सरोजिनी नायडू पुरस्कार’, ‘मंगला प्रसाद पारितोषिक’, ‘प्रेमचन्द सम्मान’, हिन्दी अकादमी का ‘साहित्यकार सम्मान’, मध्य प्रदेश साहित्य परिषद का ‘वीरसिंह जूदेव पुरस्कार’, ‘कथाक्रम सम्मान’, ‘शाश्वती सम्मान’ एवं उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान का ‘महात्मा गांधी सम्मान’ आदि।

वर्तमान में हिन्दी अकादमी, दिल्ली में उपाध्यक्ष पद पर कार्यरत रहीं।

 

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