नब्बे के दशक में जिन रचनाकारों ने अपनी विशिष्ट पहचान बनाई और जिन्हें पाठकों ने भी हाथों-हाथ लिया, मैत्रेयी पुष्पा का नाम उनमें प्रमुख है! आज वे हिन्दी साहित्य-परिदृश्य की एक महत्त्वपूर्ण उपस्थिति हैं। उन्होंने हिन्दी कथा-धारा को वापस गाँव की ओर मोड़ा और कई अविस्मरणीय चरित्र हमें दिए। इन चरित्रों ने शहरी-मध्यवर्ग को उस देश की याद दिलाई जो धीरे-धीरे शब्द की दुनिया से ग़ायब हो चला था। ‘इदन्नमम’ की मंदा, 'चाक' की सारंग, ‘अल्मा कबूतरी’ की अल्मा और ‘झूला नट’ की शीलो, ऐसे अनेक चरित्र हैं जिन्हें मैत्रेयी जी ने अपनी समर्थ दृश्यात्मक भाषा और गहरे जुड़ाव के साथ आकार दिया है।
यहाँ प्रस्तुत कहानियों में भाषागत बिम्बों और दृश्यों को सजीव कर देने की अपनी अद्भुत क्षमता के साथ वे जिस पाठ की रचना करती हैं, उसे पढ़ना कथा-रस के एक विलक्षण अनुभव से गुज़रना है। ‘ललमनियाँ’ की मौहरो, ‘रिजक’ कहानी की लल्लन, ‘पगला गई है भागवती!’ की भागो या ‘सिस्टर’ की डोरोथी, ये सब स्त्रियाँ अपने परिस्थितिगत गहरे करुणा भाव के साथ पाठक के मन में गहरे उतर जाती हैं, और यह चीज़ लेखिका की भाषा-सामर्थ्य और गहरे चरित्र-बोध को सिद्ध करती है।
Language | Hindi |
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Binding | Paper Back |
Publication Year | 2002 |
Edition Year | 2015, Ed. 3rd |
Pages | 139p |
Translator | Not Selected |
Editor | Not Selected |
Publisher | Rajkamal Prakashan |
Dimensions | 21 X 14 X 0.7 |