Facebook Pixel

Vikalphin Nahin Hai Duniya-Paper Back

Special Price ₹359.10 Regular Price ₹399.00
10% Off
In stock
SKU
9788126701919
- +
Share:
Codicon

‘विकल्पहीन नहीं है दुनिया’ किशन पटनायक के राजनैतिक चिन्तन का पहला प्रतिनिधि संकलन है। इस पुस्तक के अधिकांश निबन्ध पिछले दो दशकों में लिखे गए हैं जब देश और दुनिया के बदलते चेहरे को समझने में स्थापित विचार की अक्षमता ज़ाहिर हो गई है। स्थापित राजनैतिक विचारधाराएँ जड़ तथा अप्रासंगिक होती जा रही हैं और बुद्धिजीवी आज की दुनिया के सवालों से पलायन कर रहे हैं। बढ़ती विषमता और नैतिक पतन के सवालों को उठाने की इच्छा, सामर्थ्य और भाषा तक ख़त्म होती जा रही है। विचार के इस संकट के दौर में यह पुस्तक एक नया युगधर्म ढूँढ़ने की कोशिश करती है।

इस नए युगधर्म को यहाँ कोई नाम नहीं दिया गया है। यह किंचित् अनगढ़ देशीय चिन्तन गांधी और समाजवादी विचार परम्परा के साथ–साथ जनान्दोलनों के अनुभव से प्रेरणा ग्रहण करता है, लेकिन किसी इष्ट देवता या वैचारिक बाइबिल का सहारा नहीं लेता है। समता और नैतिकता की कसौटियों का पुनरुद्धार करने के इस प्रयास की परिधि में एक ओर आधुनिक सभ्यता के संकट, विज्ञान और टेक्नोलॉजी के चरित्र और नैतिकता के स्रोत जैसे अमूर्त सवाल शामिल हैं। दूसरी ओर यह चिन्ता अपने मूर्त रूप में सोमालिया के अकाल से कालाहांडी की भुखमरी तक फैली है, नाइजीरिया में सारो वीवा की हत्या और मणीबेली की डूब को एक सूत्र में पिरोती है, शूद्र राजनीति की सम्भावनाओं और धर्मनिरपेक्षता के भविष्य के रिश्ते की शिनाख़्त करती है।

इस पुस्तक के ‘प्रवक्ता’ किशन पटनायक राजनीति में वैचारिक स्पष्टता, चारित्रिक शुद्धता और बुद्धि तथा मन के बीच मेल के लिए जाने जाते हैं। अकादमिक पांडित्य के बोझ और राजनैतिक वाक् युद्ध के गाली–गलौज से अलग हटकर यह पुस्तक वैचारिक बारीकी और राजनैतिक प्रतिबद्धता को गूँथने की एक नई शैली प्रदान करती है।

More Information
Language Hindi
Binding Hard Back, Paper Back
Translator Not Selected
Editor Not Selected
Publication Year 2000
Edition Year 2022, Ed. 4th
Pages 284p
Price ₹399.00
Publisher Rajkamal Prakashan
Dimensions 22 X 14 X 2
Write Your Own Review
You're reviewing:Vikalphin Nahin Hai Duniya-Paper Back
Your Rating
Kishan Patnayak

Author: Kishan Patnayak

किशन पटनायक

जन्म : 30 जुलाई, 1930

दशकों से सार्वजनिक जीवन में सक्रिय किशन पटनायक युवावस्था से ही समाजवादी आन्दोलन के पूर्णकालिक कार्यकर्ता बन गए थे। वे समाजवादी युवजन सभा के राष्ट्रीय अध्यक्ष रहे और केवल 32 वर्ष की आयु में 1962 में सम्बलपुर से लोकसभा के सदस्य चुने गए। समाजवादी आन्दोलन के दिग्भ्रमित और अवसरवादी होने पर 1969 में दल से अलग हुए, 1972 में लोहिया विचार मंच की स्थापना से जुड़े और बिहार आन्दोलन में सक्रिय भूमिका निभाई। इमरजेंसी में और उससे पहले सात–आठ बार जेल में बन्दी रहे। मुख्यधारा की राजनीति का एक सार्थक विकल्प बनाने के प्रयास में 1980 में समता संगठन, 1990 में जनान्दोलन समन्वय समिति, 1995 में समाजवादी जन परिषद और 1997 में जनान्दोलनों के राष्ट्रीय समन्वय की स्थापना से जुड़े।
राजनीति के अलावा साहित्य और दर्शन में दिलचस्पी रखनेवाले किशन पटनायक ने ओड़िया, हिन्दी और अंग्रेज़ी में अपना लेखन किया है। साठ के दशक में डॉ. राममनोहर लोहिया के साथ अंग्रेज़ी पत्रिका ‘मैनकाइंड’ के सम्पादक-मंडल में काम किया और उनकी मृत्यु के बाद जब तक ‘मैनकाइंड’ का प्रकाशन होता रहा, उसके सम्पादक रहे। इस दौरान प्रसिद्ध हिन्दी पत्रिका ‘कल्पना’ में राजनैतिक–सामाजिक विषयों और साहित्य पर लेखन के साथ–साथ एक लम्बी कविता भी प्रकाशित हुई। उनके लेख ‘मैनकाइंड’, ‘जन’, ‘धर्मयुग’, ‘रविवार’, ‘सेमिनार’ और अन्य अख़बारों तथा पत्रिकाओं में छपते रहे। सन् 1977 से लगातार निकल रही मासिक हिन्दी पत्रिका ‘सामयिक वार्ता’ के मृत्युपर्यन्त प्रधान सम्पादक रहे।
प्रकाशित पुस्तकें : ‘विकल्पहीन नहीं है दुनिया : सभ्यता, समाज और बुद्धिजीवी की स्थिति पर कुछ विचार’, ‘भारतीय राजनीति पर एक दृष्टि : गतिरोध, सम्भावना और चुनौतियाँ’, ‘किसान आन्दोलन : दशा और दिशा’, ‘लोक शिक्षण’, ‘भारत शूद्रों का होगा’।

निधन : 27 सितम्बर, 2004

Read More
Books by this Author
New Releases
Back to Top