किशन पटनायक का समाज-चिन्तन एक कर्मठ और विचारशील भारतीय का चिन्तन है। उनके यहाँ विचार और कर्म के बीच असाधारण सन्तुलन है। उनके चिन्तन में अपने लम्बे सार्वजनिक और जमीनी अनुभव की छाप और आस्वाद है पर कहीं भी उसका बोझ या दिखावा नहीं। वह सच्ची प्रश्नाकुलता से जन्मा है और वे उसे साफ-सुथरे ढंग से सम्प्रेषित कर पाते हैं। यह चिन्तक हमारी समझ बढ़ाता, हमारी चिन्ताओं को एकाग्र करता और हमें अपनी स्थिति पर फिर से सोचने के लिए प्रेरित करता है। ऐसा इन दिनों कम ही पुस्तकें और लोग कर पाते हैं।
—अशोक वाजपेयी
गांधी और लोहिया के बाद शायद किशन पटनायक ही आजाद भारत के ऐसे राजनेता हैं जिन्होंने बौद्धिक समुदाय के ‘कठोर हृदय’ और गतानुगतिक नकलची दिमाग पर लगातार दस्तक दी है। किशन पटनायक की कल्पना का बुद्धिजीवी वह (स्त्री-पुरुष) होगा जो अपने विषय में पारंगत हो, अपनी विद्या को निजी स्वार्थ साधन की वस्तु न समझता हो, अपने निजी और पारिवारिक और वर्ण, जाति, वर्ग-हितों से परे जाकर समूचे समाज (और मानव-जाति) के हित में अपने हुनर लगाने को तैयार हो, और सबसे अधिक, किसी भी तरह की ढाँचागत सोच से उबरकर नया कुछ सोचने, बनाने, करने के लिए तैयार हो।
—गिरधर राठी
किशन पटनायक के लेखन में हम बौद्धिक साहस का एक दैनिक संस्करण देख पाते हैं। सरलता और धैर्य, दोनों के पैमानों पर चौंकानेवाला यह साहस हमें अपनी-अपनी जिन्दगी जीते हुए सामुदायिक बनाता है और समाज की बुनावट में रहते हुए उसे उधेड़ने व फिर से बुनने की प्रेरणा देता है। किशन पटनायक को पढ़ने से मिलनेवाली प्रेरणा लगभग हमेशा हमारी अपनी हिम्मत की पहुँच के भीतर होती है; इसीलिए वह आश्वस्त करती है—कई और प्रेरणाओं की तरह थकाती या ऊँचाई से चिढ़ाती नहीं।
—कृष्ण कुमार
Language | Hindi |
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Binding | Hard Back, Paper Back |
Publication Year | 2000 |
Edition Year | 2015, Ed. 3rd |
Pages | 284p |
Translator | Not Selected |
Editor | Not Selected |
Publisher | Rajkamal Prakashan |
Dimensions | 22 X 14.2 X 2 |