Vikalphin Nahin Hai Duniya

Author: Kishan Patnayak
Edition: 2015, Ed. 3rd
Language: Hindi
Publisher: Rajkamal Prakashan
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Vikalphin Nahin Hai Duniya

किशन पटनायक का समाज-चिन्तन एक कर्मठ और विचारशील भारतीय का चिन्तन है। उनके यहाँ विचार और कर्म के बीच असाधारण सन्तुलन है। उनके चिन्तन में अपने लम्बे सार्वजनिक और जमीनी अनुभव की छाप और आस्वाद है पर कहीं भी उसका बोझ या दिखावा नहीं। वह सच्ची प्रश्नाकुलता से जन्मा है और वे उसे साफ-सुथरे ढंग से सम्प्रेषित कर पाते हैं। यह चिन्तक हमारी समझ बढ़ाता, हमारी चिन्ताओं को एकाग्र करता और हमें अपनी स्थिति पर फिर से सोचने के लिए प्रेरित करता है। ऐसा इन दिनों कम ही पुस्तकें और लोग कर पाते हैं।

—अशोक वाजपेयी

गांधी और लोहिया के बाद शायद किशन पटनायक ही आजाद भारत के ऐसे राजनेता हैं जिन्होंने बौद्धिक समुदाय के ‘कठोर हृदय’ और गतानुगतिक नकलची दिमाग पर लगातार दस्तक दी है। किशन पटनायक की कल्पना का बुद्धिजीवी वह (स्त्री-पुरुष) होगा जो अपने विषय में पारंगत हो, अपनी विद्या को निजी स्वार्थ साधन की वस्तु न समझता हो, अपने निजी और पारिवारिक और वर्ण, जाति, वर्ग-हितों से परे जाकर समूचे समाज (और मानव-जाति) के हित में अपने हुनर लगाने को तैयार हो, और सबसे अधिक, किसी भी तरह की ढाँचागत सोच से उबरकर नया कुछ सोचने, बनाने, करने के लिए तैयार हो।

—गिरधर राठी

किशन पटनायक के लेखन में हम बौद्धिक साहस का एक दैनिक संस्करण देख पाते हैं। सरलता और धैर्य, दोनों के पैमानों पर चौंकानेवाला यह साहस हमें अपनी-अपनी जिन्दगी जीते हुए सामुदायिक बनाता है और समाज की बुनावट में रहते हुए उसे उधेड़ने व फिर से बुनने की प्रेरणा देता है। किशन पटनायक को पढ़ने से मिलनेवाली प्रेरणा लगभग हमेशा हमारी अपनी हिम्मत की पहुँच के भीतर होती है; इसीलिए वह आश्वस्त करती है—कई और प्रेरणाओं की तरह थकाती या ऊँचाई से चिढ़ाती नहीं।

—कृष्ण कुमार

More Information
Language Hindi
Binding Hard Back, Paper Back
Publication Year 2000
Edition Year 2015, Ed. 3rd
Pages 284p
Translator Not Selected
Editor Not Selected
Publisher Rajkamal Prakashan
Dimensions 22 X 14.2 X 2
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Kishan Patnayak

Author: Kishan Patnayak

किशन पटनायक

जन्म : 30 जुलाई, 1930

दशकों से सार्वजनिक जीवन में सक्रिय किशन पटनायक युवावस्था से ही समाजवादी आन्दोलन के पूर्णकालिक कार्यकर्ता बन गए थे। वे समाजवादी युवजन सभा के राष्ट्रीय अध्यक्ष रहे और केवल 32 वर्ष की आयु में 1962 में सम्बलपुर से लोकसभा के सदस्य चुने गए। समाजवादी आन्दोलन के दिग्भ्रमित और अवसरवादी होने पर 1969 में दल से अलग हुए, 1972 में लोहिया विचार मंच की स्थापना से जुड़े और बिहार आन्दोलन में सक्रिय भूमिका निभाई। इमरजेंसी में और उससे पहले सात–आठ बार जेल में बन्दी रहे। मुख्यधारा की राजनीति का एक सार्थक विकल्प बनाने के प्रयास में 1980 में समता संगठन, 1990 में जनान्दोलन समन्वय समिति, 1995 में समाजवादी जन परिषद और 1997 में जनान्दोलनों के राष्ट्रीय समन्वय की स्थापना से जुड़े।
राजनीति के अलावा साहित्य और दर्शन में दिलचस्पी रखनेवाले किशन पटनायक ने ओड़िया, हिन्दी और अंग्रेज़ी में अपना लेखन किया है। साठ के दशक में डॉ. राममनोहर लोहिया के साथ अंग्रेज़ी पत्रिका ‘मैनकाइंड’ के सम्पादक-मंडल में काम किया और उनकी मृत्यु के बाद जब तक ‘मैनकाइंड’ का प्रकाशन होता रहा, उसके सम्पादक रहे। इस दौरान प्रसिद्ध हिन्दी पत्रिका ‘कल्पना’ में राजनैतिक–सामाजिक विषयों और साहित्य पर लेखन के साथ–साथ एक लम्बी कविता भी प्रकाशित हुई। उनके लेख ‘मैनकाइंड’, ‘जन’, ‘धर्मयुग’, ‘रविवार’, ‘सेमिनार’ और अन्य अख़बारों तथा पत्रिकाओं में छपते रहे। सन् 1977 से लगातार निकल रही मासिक हिन्दी पत्रिका ‘सामयिक वार्ता’ के मृत्युपर्यन्त प्रधान सम्पादक रहे।
प्रकाशित पुस्तकें : ‘विकल्पहीन नहीं है दुनिया : सभ्यता, समाज और बुद्धिजीवी की स्थिति पर कुछ विचार’, ‘भारतीय राजनीति पर एक दृष्टि : गतिरोध, सम्भावना और चुनौतियाँ’, ‘किसान आन्दोलन : दशा और दिशा’, ‘लोक शिक्षण’, ‘भारत शूद्रों का होगा’।

निधन : 27 सितम्बर, 2004

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