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Vidyapati Padavali-Hard Cover

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यह ‘विद्यापति पदावली’ इसलिए महत्त्वपूर्ण है कि इसका संग्रह बेनीपुरी जी ने किया है। हिन्दी के प्रसिद्ध ललित निबन्धकार बेनीपुरी कवि, कहानीकार ही नहीं ग़रीबों, पीड़ितों और शोषितों के लिए आजीवन संघर्षरत रहे। ऐसे लेखक के द्वारा विद्यापति की पदावली का सम्पादन प्रतीकात्मक अर्थ रखता है।

पुस्तक के प्रारम्भ में बेनीपुरी जी द्वारा लिखी गई भूमिका केवल विश्लेषण और सूचना की दृष्टि से नहीं, बल्कि नई अर्थ-मीमांसा की दृष्टि से नई है। इससे विद्यापति को हम पहले से कुछ अधिक जानने लगते हैं।

विद्यापति की यह पदावली शब्दों के अर्थ की दृष्टि से भी महत्त्वपूर्ण है। बेनीपुरी जी शब्द पारखी थे। उन्होंने इस पदावली में शब्दों के सांकेतिक अर्थ को भी स्पष्ट करने का प्रयास किया है जो अन्यत्र दुर्लभ है। विद्यापति के पदों को गाते हुए चैतन्य महाप्रभु समाधिस्थ हो जाते थे। आनन्द कुमार स्वामी को पदावली काव्य-कला की दृष्टि से बहुत प्रिय थी। उन्होंने लिखा भी है। उस पदावली का यह प्रस्तुतीकरण अत्यन्त उपयोगी है। बेनीपुरी जी विद्यापति को ‘हिन्दी का जयदेव’ और ‘मैथिल कोकिल’ कहते थे। उनकी वाणी का बेनीपुरी द्वारा भावित यह संस्करण लोगों को अवश्य रुचेगा। भूमिका में बेनीपुरी ने अपनी चिर-परिचित शैली में पदों की भाषा और कविता माधुरी का जो वर्णन किया है, वह तो अन्यत्र दुर्लभ है ही।

‘राजा की गगनचुम्बी अट्टालिका’ से लेकर ग़रीबों की टूटी हुई फूस की झोंपड़ी तक में विद्यापति के पदों का जो सम्मान है; भूतनाथ के मन्दिर और कोहबर घर में पदों की जो प्रतिष्ठा है, उसको ध्यान में रखते हुए ही यह पुस्तक बेनीपुरी जी ने सम्पादित की है। इससे विद्यापति और उनकी पदावली की नई अर्थवत्ता और चमक उजागर होती है। पाठ्यक्रम की दृष्टि से यह सर्वोत्तम है।

More Information
Language Hindi
Binding Hard Back
Translator Not Selected
Editor Not Selected
Publication Year 2018
Edition Year 2024, Ed. 12th
Pages 160P
Price ₹595.00
Publisher Lokbharti Prakashan
Dimensions 22 X 14.2 X 1.3
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Ramvriksh Benipuri

Author: Ramvriksh Benipuri

रामवृक्ष बेनीपुरी

जन्म : 23 दिसम्बर, 1899, बेनीपुर, मुज़फ़्फ़रपुर (बिहार)। साधारण किसान परिवार। बचपन में ही माता-पिता का निधन। मैट्रिक की पढ़ाई के लिए मुज़फ़्फ़रपुर गए। उन्हीं दिनों 1920 के असहयोग आन्दोलन में स्कूली शिक्षा छोड़ दी। साहित्य सम्मेलन से विशारद। स्वाधीनता सेनानी के रूप में लगभग नौ साल जेल में रहे। कांग्रेस सोशलिस्ट पार्टी के उम्मीदवार के रूप में बिहार विधानसभा के लिए चुने गए। दिसम्बर 1959 में पक्षाघात। लम्बी बीमारी। अन्ततः 6 सितम्बर, 1968 को निधन।

सम्पादित पत्र : ‘तरुण भारत’, ‘किसान मित्र’, ‘गोलमाल’, ‘बालक’, ‘युवक’, ‘क़ैदी’, ‘लोक-संग्रह’, ‘कर्मवीर’, ‘योगी’, ‘जनता’, ‘तूफ़ान’, ‘हिमालय’, ‘जनवाणी’, ‘चुन्नू-मुन्नू’ तथा ‘नई धारा’।

प्रमुख कृतियाँ : कहानी-संग्रह—‘चिता के फूल’। शब्दचित्र-संग्रह : ‘लाल तारा’, ‘माटी की मूरतें’, ‘गेहूँ और गुलाब’। उपन्यास—‘पतितों के देश में’, ‘क़ैदी की पत्नी’। ललित-निबन्ध—‘सतरंगा इन्द्रधनुष’। स्मृति-चित्र—‘गांधीनामा’। कविता-संग्रह—‘नया आदमी’। नाटक—‘अम्बपाली’, ‘सीता की माँ’, ‘संघमित्रा’, ‘अमर ज्योति’, ‘तथागत’, ‘सिंहल विजय’, ‘शकुंतला’, ‘रामराज्य’, ‘नेत्रदान’, ‘गाँव का देवता’, ‘नया ‘समाज’ और ‘विजेता’। निबन्ध—‘हवा पर’, ‘नई नारी’, ‘वंदे वाणी विनायकौ’, ‘अत्र तत्र’। आत्मकथात्मक संस्मरण—‘मुझे याद है’, ‘ज़ंजीरें और दीवारें’, ‘कुछ मैं कुछ वे’। यात्रा साहित्य—‘पैरों में पंख बाँधकर’, ‘उड़ते चलो उड़ते चलो’। जीवनी—‘शिवाजी’, ‘विद्यापति’, ‘लंगट सिंह’, ‘गुरु गोविंद सिंह’, ‘रोज लग्ज़ेम्बर्ग’, ‘जयप्रकाश’, ‘कार्ल मार्क्स’। राजनीति—‘लाल चीन’, ‘लाल रूस’, ‘रूसी क्रान्ति’।

इसके अलावा बाल-साहित्य की दर्जनों पुस्तकें तथा ‘विद्यापति पदावली’ और ‘बिहारी सतसई’ की टीका।

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