Vayam Rakshamah

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Vayam Rakshamah
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वयं रक्षाम: प्रागैतिहासिक अतीत की कृति है। इसके कथानक के मूलाधार राक्षसराज रावण तथा महापुरुष राम हैं।

‘‘इस उपन्यास में प्राग्वेदकालीन नर, नाग, देव, दैत्य-दानव, आर्य, अनार्य आदि विविध नृवंशों के जीवन के वे विस्मृत-पुरातन रेखाचित्र हैं, जिन्हें धर्म के रंगीन शीशे में देखकर सारे संसार ने अन्तरिक्ष का देवता मान लिया था। मैं इस उपन्यास में उन्हें नर-रूप में आपके समक्ष उपस्थित करने का साहस कर रहा हूँ। आज तक कभी मनुष्य की वाणी से न सुनी गयी बातें, मैं आपको सुनाने पर आमादा हूँ।...उपन्यास में मेरे अपने जीवन-भर के अध्ययन का सार है...’’

आचार्य चतुरसेन शास्त्री

More Information
Language Hindi
Format Paper Back
Publication Year 2021
Edition Year 2021, Ed. 1st
Pages 407p
Translator Translator Two
Editor Not Selected
Publisher Lokbharti Prakashan
Dimensions 21.5 X 14 X 2
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Acharya Chatursen Shastri

Author: Acharya Chatursen Shastri

आचार्य चतुरसेन शास्त्री

आचार्य चतुरसेन शास्त्री का जन्म 26 अगस्त, 1891 को उत्तर प्रदेश के बुलन्दशहर जिले के चांदोख गाँव में हुआ। उनकी प्रारम्भिक शिक्षा उनके गाँव के पास के ही एक स्कूल में हुई। जयपुर के संस्कृत कॉलेज से 1915 में उन्होंने आयुर्वेदाचार्य और शास्त्री की उपाधि प्राप्त की। 1917 में डीएवी कॉलेज, लाहौर में उनकी नियुक्ति प्रोफेसर के पद पर हुई। साहित्य के साथ-साथ इतिहास, राजनीति, धर्म, समाज, स्वास्थ्य-चिकित्सा आदि विषयों पर भी उन्होंने विपुल लेखन किया है।

उनकी प्रमुख कृतियाँ हैं—‘वैशाली की नगरवधू’, ‘सोमनाथ’, ‘वयं रक्षामः’, ‘सोना और खून’, ‘गोली’, ‘अपराजिता’, ‘पत्थर युग के दो बुत’, ‘रक्त की प्यास’, ‘हृदय की परख’, ‘बगुला के पंख’ (उपन्यास); ‘रजकण’, ‘अक्षत’, ‘मेरी प्रिय कहानियाँ’ (कहानी-संग्रह); ‘अन्तस्तल’, ‘मरी खाल की हाय’, ‘तरलाग्नि’ (निबन्ध-संग्रह); ‘राजसिंह’, ‘मेघनाथ’, ‘छत्रसाल’, ‘गांधारी’ (नाटक); ‘मेरी आत्मकहानी’ (आत्मकथा); ‘सत्याग्रह और असहयोग’, ‘गोलसभा’, ‘गांधी की आँधी’, ‘मौत के पंजे में जिन्दगी की कराह’ (राजनैतिक लेखन); ‘आरोग्यशास्त्र’, ‘सुगम चिकित्सा’ (चिकित्सा)।

निधन : 2 फ़रवरी, 1960

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