वर्तमान भारत हमारे समय का दर्पण है। समसामयिक भारत की ज्वलन्त समस्याओं पर प्रखर एवं निर्भीक प्रतिक्रियाओं का यह दस्तावेज़ हिन्दी की विशिष्ट उपलब्धि है। वर्तमान भारत के निबन्ध वर्णनात्मक नहीं, विश्लेषणात्मक हैं। प्रत्येक निबन्ध विचाराधीन विषय के कार्य-कारण में गहरे उतरता है, इतिहास को खँगालता है और अनागत के आयामों को अनावृत्त करता है। इसीलिए यह ग्रन्थ पत्रकारिता का पाथेय तो है ही, इसमें दर्शन, राजनीतिशास्त्र और इतिहास का भी प्रांजल परिपाक हुआ है।

इस ग्रन्थ के निबन्ध हिन्दी में मौलिक चिन्तन और उसकी सशक्त अभिव्यक्ति के नए प्रतिमान क़ायम करते हैं। भारत के भवितव्य से वेलेंटाइन डे तक, सोनिया गांधी के ग़ुस्से से फूलन के बहाने तक, परमाणु विस्फोट से तहलका तक, धर्म की मोमबत्ती से भगवाकरण तक और कश्मीर से ट्रिनिडाड तक फैले विषयों की विविधता इन निबन्धों को मौलिक विचारों के इन्द्रधनुष में ढाल देती है। मौलिक विचार ही नहीं, मौलिक विचार-भाषा के लिए भी हिन्दी जगत इन निबन्धों का स्वागत करेगा।

हिन्दी को कविता, कहानी और उपन्यास के दायरे से ऊपर उठाकर शुद्ध विचार और विश्लेषण का माध्यम बनानेवालों में वेदप्रताप वैदिक का नाम अग्रणी है। समसामयिक इतिहास पर लिखना इतिहास का निर्माण करना ही है, ख़ास तौर से तब जबकि लिखे हुए को सर्वोच्च नीति-निर्माताओं से लेकर जनसाधारण तक लाखों लोग एक साथ पढ़ते हों। इतिहास की लकीरें क़लम की नोक से गहरी खिंचती हैं या तलवार की नोक से, यह कहना कठिन है लेकिन इन निबन्धों में क़लम तलवार की तरह चली है, इसमें ज़रा भी शक नहीं है। मूर्धन्य पत्रकार और शीर्ष चिन्तक डॉ. वैदिक की क़लम से निसृत ये निबन्ध चिन्तनशील पत्रकारों, विद्वानों, राजनीतिज्ञों और प्रबुद्ध पाठकों के लिए सद्यः सन्दर्भ की भाँति उपयोगी सिद्ध होंगे।

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Language Hindi
Format Hard Back
Edition Year 2002
Pages 231p
Translator Not Selected
Editor Not Selected
Publisher Rajkamal Prakashan
Dimensions 22 X 14 X 2
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Vedpratap Vaidik

Author: Vedpratap Vaidik

वेदप्रताप वैदिक

हिन्‍दी जगत में कौन ऐसा है जो वेदप्रताप वैदिक को नहीं जानता। पत्रकारिता, राजनीतिक चिन्‍तन, अन्‍तरराष्ट्रीय राजनीति, हिन्‍दी के लिए अपूर्व संघर्ष, विश्व यायावरी, प्रभावशाली वक्तृत्व, संगठन-कौशल आदि अनेक क्षेत्रों में एक साथ मूर्धन्यता प्रदर्शित करनेवाले अद्वितीय व्यक्तित्व के धनी डॉ. वैदिक का जन्म 30 दिसम्‍बर, 1944 को इन्‍दौर में हुआ। वे सदा प्रथम श्रेणी के छात्र रहे। उन्होंने जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के स्कूल ऑफ़  इंटरनेशनल स्टडीज़ से अन्‍तरराष्ट्रीय राजनीति में पीएच.डी. की उपाधि प्राप्त की। वे भारत के ऐसे पहले विद्वान हैं जिन्होंने अपना शोध-ग्रन्‍थ हिन्दी में लिखा। उनका निष्कासन हुआ। वह राष्ट्रीय मुद्दा बना। 1965-67 में संसद हिल गई।

डॉ. राममनोहर लोहिया, मधु लिमये, आचार्य कृपलानी, इंदिरा गांधी, गुरु गोलवलकर, दीनदयाल उपाध्याय, अटल बिहारी वाजपेयी, चंद्रशेखर, हिरेन मुखर्जी, हेम बरुआ, भागवत झा आजाद, किशन पटनायक, रामधारी सिंह ‘दिनकर’, धर्मवीर भारती, डॉ. हरिवंशराय बच्चन जैसे लोगों ने वैदिक जी का डटकर समर्थन किया। सभी दलों के समर्थन से वैदिक जी ने विजय प्राप्त की, नया इतिहास रचा। पहली बार उच्च शोध के लिए भारतीय भाषाओं के द्वार खुले।

10 वर्ष की अल्पायु में लेखन और वक्तृत्व के क्षेत्र में चमकनेवाले वैदिक जी ने अपनी पहली जेलयात्रा सिर्फ़ 13 वर्ष की आयु में की थी। हिन्‍दी सत्याग्रही के तौर पर वे 1957 में पटियाला जेल में रहे। बाद में छात्र नेता और हिन्दी आन्‍दोलनकारी के तौर पर कई जेल यात्राएँ।

अनेक राष्ट्रीय और अन्‍तरराष्ट्रीय सम्मेलनों का आयोजन। राष्ट्रीय राजनीति और भारतीय विदेश नीति के क्षेत्र में सक्रिय भूमिका। कई विदेशी और भारतीय प्रधानमंत्रियों के व्यक्तिगत मित्र और अनौपचारिक सलाहकार। लगभग 80 देशों की यात्राएँ। 1999 में संयुक्त राष्ट्र संघ में भारत का प्रतिनिधित्व।

पिछले 55 वर्षों में हज़ारों लेख और भाषण। ‘नवभारत टाइम्स’ और ‘पीटीआई-भाषा’ के लम्‍बे समय तक सम्‍पादक रहे। कई भारतीय और विदेशी विश्वविद्यालयों में अध्यापन। रूसी, फ़ारसी, संस्कृत आदि भाषाओं का ज्ञान। लगभग दर्जन-भर पुस्तकें प्रकाशित तथा कई राष्ट्रीय-अन्‍तरराष्ट्रीय सम्मानों से सम्‍मानित।

डॉ. वैदिक की गणना उन राष्ट्रीय अग्रदूतों में होती है, जिन्होंने हिन्‍दी को मौलिक चिन्‍तन की भाषा बनाया और राष्ट्रभाषा को उसका उचित स्थान दिलवाने के लिए सतत संघर्ष और त्याग किया।

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