Vakratund

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वक्रतुण्ड अर्थात गणपति श्री गणेश के अनेक रूप हैं—विघ्नहर्ता से लेकर विघ्नकर्ता तक। सत्व के प्रति सरस-सदय और तमस के प्रति कठिन-कठोर। उनके इस स्वभाव ने मनुष्यों के हृदय में श्री गणेश के लिए विशेष भक्ति उत्पन्न की है क्योंकि वे उन्हें एकदम अपने लगते हैं—करुणामय, उदार, सहज, समस्त आशा-आकांक्षाओं की पूर्ति करने वाले। ऐसा नहीं कि उन्हें क्रोध नहीं आता किन्तु उनका कोप भक्तों के लिए नहीं होता। उनके लिए तो वे अभय देने वाले हैं। मनुष्य तो मनुष्य, तमाम इतर जीवों के भी वे शरणदाता-त्राता हैं।

विघ्नों से भरे संसार में ऐसे कृपालु श्री गणेश की अगणित लीलाएँ हैं। इन्हीं लीलाओं से ‘वक्रतुण्ड’ में उनका आख्यान रचा गया है जो पाठकों को एक अलग ही आश्वस्ति और त्राण देता है कि यदि आप दूसरों के प्रति सात्विकता से भरे रहेंगे तो वक्रतुण्ड आपकी राह में आने वाली हरेक वक्रता को अनुकूलता में बदल देंगे।

एक अत्यन्त पठनीय पौराणिक उपन्यास।

More Information
Language Hindi
Format Paper Back
Publication Year 2024
Edition Year 2024, Ed. 1st
Pages 256p
Translator Not Selected
Editor Not Selected
Publisher Rajkamal Prakashan
Dimensions 22 X 14 X 1.5
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Mahendra Madhukar

Author: Mahendra Madhukar

महेंद्र मधुकर

महेंद्र मधुकर का जन्म 2 जनवरी, 1940 को सीतामढ़ी, बिहार में हुआ। उन्होंने हिन्दी एवं संस्कृत में एम.ए. किया। उन्हें पी-एच.डी.

एवं डी.लिट्. की उपाधि प्राप्त है। वे बिहार विश्वविद्यालय के हिन्दी विभाग में प्रोफेसर एवं अध्यक्ष तथा विश्वविद्यालय अनुदान आयोग के प्रोफेसर एमेरिटस रह चुके हैं। उनकी प्रकाशित कृतियाँ हैं—‘लोपामुद्रा’, ‘दमयन्ती और भी’, ‘बरहम बाबा की गाछी’, ‘कस्मै देवाय’, ‘त्र्यंबकम यजामहे’, ‘वसंतसेना’, ‘नटखेला उर्फ़ बन्ना गोसाईं’, ‘वक्रतुण्ड’, ‘मैत्रेयी’, ‘कैक्टस लेन’, ‘वासवदत्ता’ (उपन्यास); ‘आषाढ़ के बादल’, ‘अस्वीकृत इन्द्रधनुष’, ‘आगे दूर तक मरुथल है’, ‘हरे हैं शाल वन’, ‘मुझे पसन्द है पृथ्वी’, ‘अब दिखेगा सूर्य’, ‘तमालपत्र’, ‘शिप्रावात’, ‘प्रतिपदा’ (गीत-कविता); ‘महादेवी की काव्य-चेतना’, ‘उपमा अलंकार : उद्भव और विकास’, ‘काव्यभाषा के सिद्धान्त’, ‘मेघदूत आज भी’, ‘मेघदूत पर व्याख्यान’, ‘भारतीय काव्यशास्त्र’ (आलोचना); ‘माँगूँ सबसे बैर’, ‘बयान कलमबंद’ (व्यंग्य); ‘पराशक्ति श्रीसीता और अवतरण भूमि : सीतामही’, ‘सीता परिणयम्’, ‘संस्कृत महाकाव्य’, ‘नया आलोचक’, ‘अनासक्ति दर्शन’ (सम्पादन)।

उनके साहित्यिक अवदान के लिए उन्हें उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान के ‘महात्मा गांधी सम्मान’ सहित अनेक पुरस्कारों से सम्मानित किया गया है।

सम्पर्क : मंजुलप्रिया, पशुपति लेन, क्लब रोड, मिठनपुरा, मुज़फ़्फ़रपुर-842002 (बिहार)।

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