Trymbakam Yajamahe

As low as ₹590.75 Regular Price ₹695.00
You Save 15%
In stock
Only %1 left
SKU
Trymbakam Yajamahe
- +

शिव-चेतना का अनुभव एक अद्वैत अनुभव है। यह विरोधों में सामंजस्य की प्रवृत्ति है। यों कहें कि विरुद्ध को अनुकूल बनाने की दृष्टि है। हम जानते हैं कि मृत्यु एक बड़ी सच्चाई है पर फिर भी हम अमरत्व की कामना करते हैं। हम तो अमर नहीं हो सकते पर हमारा कर्म हमें अमर कर सकता है।

परमात्मा के त्रिगुण रूपों में भगवान शिव परम अनुरक्त और परम विरक्त देवता हैं। इसलिए ये महादेव हैं, क्योंकि महान वही हो सकता है जो सभी स्थितियों में महान लगे। जो नीचे से ऊपर तक, बाहर से भीतर तक एक समान हो। शिव का 'कैलास' शिखर मन का प्रतीक है।

महादेव शिव के लिए 'त्रयम्बकं यजामहे' कहकर उनका पूजन और सम्मान किया गया है। समस्त दिशाएँ उनके वस्त्र हैं, सजल मेघ उनके जटाजूट हैं, आकाश उनका दृप्त भाल, विद्युत् उनका तीसरा नेत्र और पृथ्वी उनकी रंगशाला है, जिसमें निरन्तर अणुओं का नृत्य (dancing atoms) चलता रहता है। शिव ज्ञान के, औषधि के, नृत्य और नाद के, जीवन और मृत्यु के, अमृत और विष के विलक्षण समन्वय हैं। शिव के बाएँ आधे भाग में पार्वती सुशोभित हैं, माथे पर आधा चन्द्रमा चमक रहा है। वे शिव के साथ मिलकर पूर्णत्व प्राप्त करते हैं। शिव स्वीकृति के देवता हैं। उनके लिए सभी ग्राह्य हैं। वहाँ निषेध के लिए अवकाश नहीं। उनके भक्त ताल-बेताल नाचें या गाएँ, मुँह से बम-बम का स्वर निकालें, गाल बजाएँ, उनके दरबार में सब जायज़ है।

शिव-केन्द्रित इस उपन्यास के शिव भूत-प्रेत जैसे दिव्यांग जीवों के शरणदाता और पोषक हैं। वे बहुमुखी, बहुआयामी हैं, गायक, वादक, नर्तक, स्वयंभू, जीव और जन्तुओं के उद्धारक, महावीर, महादेव, अर्द्धनारीश्वर और लोकोपकारक हैं। उनका रोदन-रस ही रुद्राक्ष है। उनकी पार्वती स्त्री-शक्ति और पर्यावरण संरक्षा की प्रतिनिधि हैं। इस इकार रूपा शक्ति के अभाव में शिव भी शव रूप हो जाते हैं। उन पर केन्द्रित यह पौराणिक महाकाव्यात्मक उपन्यास, हमें आशा है, संसार को देखने की हमारी दृ‌ष्टि को विस्‍तृत करेगा।

More Information
Language Hindi
Format Hard Back
Publication Year 2020
Edition Year 2022, Ed. 3rd
Pages 239p
Translator Not Selected
Editor Not Selected
Publisher Rajkamal Prakashan
Dimensions 22.5 X 14.5 X 2
Write Your Own Review
You're reviewing:Trymbakam Yajamahe
Your Rating
Mahendra Madhukar

Author: Mahendra Madhukar

महेंद्र मधुकर

महेंद्र मधुकर का जन्म 2 जनवरी, 1940 को सीतामढ़ी, बिहार में हुआ। उन्होंने हिन्दी एवं संस्कृत में एम.ए. किया। उन्हें पी-एच.डी.

एवं डी.लिट्. की उपाधि प्राप्त है। वे बिहार विश्वविद्यालय के हिन्दी विभाग में प्रोफेसर एवं अध्यक्ष तथा विश्वविद्यालय अनुदान आयोग के प्रोफेसर एमेरिटस रह चुके हैं। उनकी प्रकाशित कृतियाँ हैं—‘लोपामुद्रा’, ‘दमयन्ती और भी’, ‘बरहम बाबा की गाछी’, ‘कस्मै देवाय’, ‘त्र्यंबकम यजामहे’, ‘वसंतसेना’, ‘नटखेला उर्फ़ बन्ना गोसाईं’, ‘वक्रतुण्ड’, ‘मैत्रेयी’, ‘कैक्टस लेन’, ‘वासवदत्ता’ (उपन्यास); ‘आषाढ़ के बादल’, ‘अस्वीकृत इन्द्रधनुष’, ‘आगे दूर तक मरुथल है’, ‘हरे हैं शाल वन’, ‘मुझे पसन्द है पृथ्वी’, ‘अब दिखेगा सूर्य’, ‘तमालपत्र’, ‘शिप्रावात’, ‘प्रतिपदा’ (गीत-कविता); ‘महादेवी की काव्य-चेतना’, ‘उपमा अलंकार : उद्भव और विकास’, ‘काव्यभाषा के सिद्धान्त’, ‘मेघदूत आज भी’, ‘मेघदूत पर व्याख्यान’, ‘भारतीय काव्यशास्त्र’ (आलोचना); ‘माँगूँ सबसे बैर’, ‘बयान कलमबंद’ (व्यंग्य); ‘पराशक्ति श्रीसीता और अवतरण भूमि : सीतामही’, ‘सीता परिणयम्’, ‘संस्कृत महाकाव्य’, ‘नया आलोचक’, ‘अनासक्ति दर्शन’ (सम्पादन)।

उनके साहित्यिक अवदान के लिए उन्हें उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान के ‘महात्मा गांधी सम्मान’ सहित अनेक पुरस्कारों से सम्मानित किया गया है।

सम्पर्क : मंजुलप्रिया, पशुपति लेन, क्लब रोड, मिठनपुरा, मुज़फ़्फ़रपुर-842002 (बिहार)।

Read More
Books by this Author
Back to Top