Use Laut Aana Chahiye

Author: Sudeep Banerji
Edition: 2010, Ed. 1st
Language: Hindi
Publisher: Radhakrishna Prakashan
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Use Laut Aana Chahiye

मुझे अपनी कविताओं के प्रति मोह बिलकुल नहीं है, ऐसा कहना ग़लत होगा। मैं शायद ज़रूरत से ज़्यादा सतर्क और सजग अपनी कविताओं के बारे में हूँ—इसलिए उनसे डरता रहता हूँ। फिर भी यदि कविता लिखता हूँ तो लगता है, ऐसी बातें तो मैं कह चुका हूँ, दूसरे शब्दों से उन्हीं बातों को सहलाना भी मेरे चुक जाने की ही निशानी है। ऐसा नहीं कि मेरे पास विचार या जीवनानुभवों का टोटा पड़ गया है—अभी भी किसी विचार, किसी घटना, छोटी-बड़ी बात से परेशान हो उठता हूँ, कभी-कभी महीनों तक जूझता रहता हूँ। पर उनसे निकलने के लिए कविता मेरे लिए अब आसान रास्ता नहीं रह गई है।

मैं सोचता हूँ कि लेखन में कोई इसलिए आता है कि उसे अपने दिए हुए संसार में बने रहना नाकाफ़ी लगता है। उसके आस-पास जो लोग हैं, सिर्फ़ उनसे रूबरू होकर उसका काम नहीं चलता। वह ऐसे लोगों से बातचीत करना चाहता है जिन्हें वह जानता भी नहीं है, जो दूसरे नगरों में रहते हैं, जो शायद मर चुके हैं या अभी पैदा भी नहीं हुए हैं। वह अपने आस-पास की सांसारिकताओं में ही मशगूल हो जाता है, या दीगर दिलचस्पियों में खप जाता है तो उसकी मानसिकता में दूर, मनचाहे से, अज्ञात से रिश्ते जोड़ने की सामर्थ्य नहीं बची रहती। जितने मनोरथ मैंने उठा रखे हैं, वे ही अब मुझसे नहीं सधते—क्या किया जाए?

देश में और समाज में तमाम तरह की उत्तेजनाएँ हैं। करोड़ों लोग अपनी ज़िन्दगी के थोड़े-बहुत सार्थक को भी बचा रख पाने के लिए दारुण संघर्ष में लगे हुए हैं। काफ़ी लोग बदलाव के लिए बेचैन हो रहे हैं। यह देश और दुनिया ऐसी बने रहने के लिए अभिशप्त नहीं है। तमाम लोग लगे हैं, इसे बदलने के लिए। इस बात से कुछ फ़र्क़ नहीं पड़ता कि एक कवि चुक गया है या उसका वक़्त आ गया है। हो सकता है कि ठीक अज़ाँ सुनने पर वह भी अपना क़फ़न फाड़कर बाहर निकल ही आए। अपनी छोटी-सी भूमिका निभाने में शायद वह और कोताही न करे। मूक बोलने लगे और पंगु गिरि को लाँघने लगे, ऐसा नामुमकिन नहीं है।

— सुदीप बॅनर्जी

More Information
Language Hindi
Binding Hard Back
Publication Year 2010
Edition Year 2010, Ed. 1st
Pages 112p
Translator Not Selected
Editor Not Selected
Publisher Radhakrishna Prakashan
Dimensions 22 X 14 X 1.5
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Author: Sudeep Banerji

सुदीप बनर्जी

सुदीप बनर्जी का जन्म 16 अक्तूबर, 1946 को इन्दौर (मध्य प्रदेश) में हुआ। शिक्षा उज्जैन में, जहाँ से अंग्रेज़ी साहित्य में एम.ए. (1967) तथा विधि स्नातक परीक्षा (1968) उत्तीर्ण की। दो वर्षों तक अंग्रेज़़ी साहित्य के प्राध्यापक रहने के बाद 1969 से 71 तक भारतीय पुलिस सेवा में कार्य। 1971 से भारतीय प्रशासनिक सेवा में प्रदेश व केन्द्र में विभिन्न पदों पर कार्य करने के उपरान्त तत्कालीन मध्य प्रदेश के आदिवासी क्षेत्र बस्तर में संभागायुक्त रहे। विभिन्न पदों पर रहते हुए मानव संसाधन विकास मंत्रालय में शिक्षा सचिव के पद से अवकाश ग्रहण किया। छात्र जीवन से ही कविता, नाटक और अभिनय में सक्रिय दिलचस्पी रही। पहली कविता 1965 में ‘माध्यम’ में प्रकाशित। प्रायः सभी प्रमुख पत्रिकाओं में कविताओं का प्रकाशन। कुछ वर्षों के लिए मध्य प्रदेश शासन साहित्य परिषद् के सचिव और ‘साक्षात्कार’ पत्रिका के सम्पादक भी रहे।

प्रकाशित कृतियाँ : ‘शब-गश्त’ (1980), ‘ज़ख़्मों के कई नाम’ (1992) तथा ‘इतने गुमान’ (1997)। कविता-संग्रह। कविताओं का एक चयन ‘प्रतिनिधि कविताएँ’ शीर्षक से प्रकाशित। अब यह ताज़ा कविता-संग्रह। नाटक—‘किशनलाल’ (1981) में प्रकाशित, मंचित और चर्चित।

दो नाटक और कुछ कहानियाँ अप्रकाशित। एक उपन्यास अधूरा।

लम्बी बीमारी के बाद 10 फरवरी, 2009 को निधन।

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