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Udarikaran Ki Tanashahi-Paper Back

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9788126714902
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यह पुस्तक उदारीकरण-भूमंडलीकरण की परिघटना पर केन्द्रित है। इसमें उदारीकरण के नाम से प्रचारित नई आर्थिक नीतियों के देश की अर्थव्यवस्था और राजनीति पर पड़नेवाले प्रभावों का विश्लेषण किया गया है। पुस्तक की मुख्य स्थापना है : वैश्विक आर्थिक संस्थाओं—विश्व बैंक, अन्तरराष्ट्रीय मुद्राकोष, विश्व व्यापार संगठन—और बहुराष्ट्रीय कम्पनियों के ‘डिक्टेट’ पर लादी जा रही आर्थिक ग़ुलामी का नतीजा राजनैतिक ग़ुलामी में निकलने लगा है।

इसके साथ यह भी दर्शाया गया है कि आर्थिक और राजनैतिक के साथ सांस्कृतिक और शैक्षिक क्षेत्रों पर भी उदारीकरण की तानाशाही चल रही है। इसके लिए अकेले राजनैतिक नेतृत्व को ज़िम्मेदार न मानकर, भूमंडलीकरण के समर्थक बुद्धिजीवियों और विदेशी धन लेकर एनजीओ चलानेवाले लोगों को भी ज़िम्मेदार माना गया है।

पुस्तक में भूमंडलीकरण को नवसाम्राज्यवाद का अग्रदूत मानते हुए साम्राज्यवादी सभ्यता के बरक्स वैकल्पिक सभ्यता के निर्माण की ज़रूरत पर बल दिया गया है।

पुस्तक में सारी बहस देश और दुनिया की वंचित आबादी की ज़मीन से की गई है। इस रूप में यह सरोकारधर्मी और हस्तक्षेपकारी लेखन का सशक्त उदाहरण है।

भाषा की स्पष्टता और शैली की रोचकता पुस्तक को सामान्य पाठकों के लिए पठनीय बनाती है।

More Information
Language Hindi
Binding Hard Back, Paper Back
Translator Not Selected
Editor Not Selected
Publication Year 2008
Edition Year 2008, Ed. 1st
Pages 150p
Price ₹250.00
Publisher Rajkamal Prakashan
Dimensions 21.5 X 14 X 1
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Author: Prem Singh

प्रेम सिंह

डॉ. प्रेम सिंह दिल्ली विश्वविद्यालय के हिन्दी विभाग में रीडर हैं। भारतीय उच्च अध्ययन संस्थान, शिमला में बतौर फ़ेलो तीन वर्ष (1991-94) हिन्दी और बांग्ला उपन्यास में क्रान्ति के विचार का अध्ययन किया है। अध्ययन का एक भाग ֹ‘क्रान्ति का विचार और हिन्दी उपन्यास’ शीर्षक से प्रकाशित है। इस पुस्तक पर हिन्दी अकादमी, दिल्ली का वर्ष 2000-2001 का ‘साहित्यिक कृति सम्मान’ मिल चुका है।

प्रमुख पुस्तकें हैं—‘अज्ञेय : चिन्तन और साहित्य’ (आलोचना); ‘कट्टरता जीतेगी या उदारता’, ‘उदारीकरण की तानाशाही’ (विमर्श); ‘अभिशप्त जियो’, ‘पीली धूप पीले फूल’ (कविता-संग्रह);  ‘काँपते दस्तावेज़’ (कहानी-संग्रह); ‘निर्मल वर्मा : सृजन और चिन्तन’, ‘रंग-प्रक्रिया के विविध आयाम’, ‘साने गुरुजी साहित्‍य संकलन’, ‘मधु लिमये : जीवन और राजनीति’ (सम्‍पादन)।

इनके अलावा ‘गुजरात के सबक’, ‘जानिए योग्य प्रधानमंत्री को’, ‘मिलिए हुकम के ग़ुलाम से’, ‘संविधान पर भारी साम्प्रदायिकता’ पुस्तिकाएँ प्रकाशित।

छात्र जीवन से ही समाजवादी आन्दोलन से जुड़े डॉ. प्रेम सिंह सोशलिस्ट पार्टी के महासचिव हैं।

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