Kattarata Jitegi Ya Udarata

Author: Prem Singh
Edition: 2004, Ed. 1st
Language: Hindi
Publisher: Rajkamal Prakashan
15% Off
Out of stock
SKU
Kattarata Jitegi Ya Udarata

यह पुस्तक भारतीय राजनीति और समाज को पिछले दो दशकों से मथनेवाली साम्प्रदायिकता की परिघटना को समझने और उसके मुक़ाबले की प्रेरणा और सम्यक् समझ विकसित करने के उद्देश्य से लिखी गई है। चार खंडों—वाजपेयी (अटल बिहारी), संघ सम्प्रदाय, जॉर्ज फर्नांडीज, गुराज—में विभक्त इस पुस्तक में साम्प्रदायिकता के चलते पैदा होनेवाली कट्टरता, संकीर्णता और फासीवादी प्रवृत्तियों और उन्हें अंजाम देने में भूमिका निभानेवाले नेताओं, संगठनों, शक्तियों आदि का घटनात्मक ब्यौरों सहित विवेचन किया गया है। इसमें मुख्यतः साम्प्रदायिकता के राष्ट्रीय जीवन के सामाजिक-सांस्कृतिक-शैक्षिक-अकादमिक आयामों पर पड़नेवाले दुष्प्रभावों/दुष्परिणामों की भी शिनाख़्त और आकलन किया गया है। साम्प्रदायिकता की विचारधारा भूमंडलीकरण की विचारधारा के साथ मिलकर देश की आर्थिक और राजनैतिक सम्प्रभुता पर गहरी चोट कर रही है। पुस्तक में दोनों के गठजोड़ का उद्घाटन करते हुए, उसके चलते दरपेश नवसाम्राज्यवादी ख़तरे के प्रति आगाह किया गया है।

पुस्तक की विषयवस्तु साम्प्रदायिकता और उससे होनेवाले बिगाड़ को चिन्हित करने तक सीमित नहीं है। इसमें धर्मनिरपेक्षता, उदारता, लोकतंत्र और समाजवाद की विचारधारा के पक्ष में लगातार जिरह की गई है। इस रूप में यह सरोकारधर्मी और हस्तक्षेपकारी लेखन का सशक्त उदाहरण है।

भाषा की स्पष्टता और शैली की रोचकता पुस्तक को सामान्य पाठकों के लिए पठनीय बनाती है।

More Information
Language Hindi
Binding Hard Back
Publication Year 2004
Edition Year 2004, Ed. 1st
Pages 248p
Translator Not Selected
Editor Not Selected
Publisher Rajkamal Prakashan
Dimensions 22 X 14 X 1.5
Write Your Own Review
You're reviewing:Kattarata Jitegi Ya Udarata
Your Rating

Author: Prem Singh

प्रेम सिंह

डॉ. प्रेम सिंह दिल्ली विश्वविद्यालय के हिन्दी विभाग में रीडर हैं। भारतीय उच्च अध्ययन संस्थान, शिमला में बतौर फ़ेलो तीन वर्ष (1991-94) हिन्दी और बांग्ला उपन्यास में क्रान्ति के विचार का अध्ययन किया है। अध्ययन का एक भाग ֹ‘क्रान्ति का विचार और हिन्दी उपन्यास’ शीर्षक से प्रकाशित है। इस पुस्तक पर हिन्दी अकादमी, दिल्ली का वर्ष 2000-2001 का ‘साहित्यिक कृति सम्मान’ मिल चुका है।

प्रमुख पुस्तकें हैं—‘अज्ञेय : चिन्तन और साहित्य’ (आलोचना); ‘कट्टरता जीतेगी या उदारता’, ‘उदारीकरण की तानाशाही’ (विमर्श); ‘अभिशप्त जियो’, ‘पीली धूप पीले फूल’ (कविता-संग्रह);  ‘काँपते दस्तावेज़’ (कहानी-संग्रह); ‘निर्मल वर्मा : सृजन और चिन्तन’, ‘रंग-प्रक्रिया के विविध आयाम’, ‘साने गुरुजी साहित्‍य संकलन’, ‘मधु लिमये : जीवन और राजनीति’ (सम्‍पादन)।

इनके अलावा ‘गुजरात के सबक’, ‘जानिए योग्य प्रधानमंत्री को’, ‘मिलिए हुकम के ग़ुलाम से’, ‘संविधान पर भारी साम्प्रदायिकता’ पुस्तिकाएँ प्रकाशित।

छात्र जीवन से ही समाजवादी आन्दोलन से जुड़े डॉ. प्रेम सिंह सोशलिस्ट पार्टी के महासचिव हैं।

Read More
Books by this Author
New Releases
Back to Top