Siri Gita Jee Cho Mahema

Author: Ramsingh Thakur
You Save 15%
Out of stock
Only %1 left
SKU
Siri Gita Jee Cho Mahema

सिरी गिता जी चो महेमा के ए किताप भितरे भाइगमानी सिरी ठाकुर साहेब इतरो सुँदर साँगलासोत की एके पढ़तो लोग एक हार पढ़ुक मुरयाला बल्ले हुन मन के किताप के छाँडुक नीं भायदे। मोके बिस्वास आसे की एके सब झन खुबे मन करदे आउर आपलो सँगे-सँगे आपलो घर-गाँव चो लोग मन के बले पढ़तो काजे साँगदे-बलदे। एचो सँगे-सँगे जे लोग पढ़ुक नीं सकोत नाहले नीं जानोत, असन मन के पढ़ुन भाती साँगतो बले पढ़लो-गुनलो लोग चो धरम आय। तेबेय ए किताप भितरे साँगलो गियान चो गोठ गुलाय बाटे बिगरेदे। फुल चो सुँदर बास असन गुलाय माहकेदे।

—हरिहर वैष्णव

More Information
Language Hindi
Format Hard Back
Publication Year 2014
Edition Year 2014, Ed. 1st
Pages 119p
Translator Not Selected
Editor Not Selected
Publisher Lokbharti Prakashan
Dimensions 22 X 14.5 X 1.5
Write Your Own Review
You're reviewing:Siri Gita Jee Cho Mahema
Your Rating

Author: Ramsingh Thakur

रामसिंह ठाकुर

जन्म : 03 जुलाई, 1932, जगदलपुर (बस्तर-छत्तीसगढ़)।

शिक्षा : मैट्रिक

बहुमुखी प्रतिभा के धनी किन्तु मूलत: चित्रकार एवं छायाकार। कवि, लेखक एवं हल्बी के व्याकरणाचार्य पिता स्व. पूरनसिंह ठाकुर के सान्निध्य में साहित्य-सृजन की ओर प्रवृत्त। हल्बी में साहित्य-सृजन को प्राथमिकता। हल्बी साहित्य की सभी विधाओं में लेखन। विशेषत: गीत-रचना में सिद्धहस्त। बस्तर की आदिवासी एवं लोक-संस्कृति पर हल्बी में प्रचुर लेखन-प्रकाशन। हल्बी-व्याकरण के रचयिता, जिसका प्रकाशन किस्तों में जगदलपुर (बस्तर-छत्तीसगढ़) से प्रकाशित होनेवाले समाचार-पत्र ‘दंडकारण्य समाचार’ में हुआ। गोस्वामी तुलसीदास कृत ‘श्रीरामचरितमानस’ का हल्बी अनुवाद (रामचरितमानस चतुश्शताब्दी समारोह समिति, भोपाल से प्रकाशित)। इसकी संगीतमय प्रस्तुति आकाशवाणी के जगदलपुर केन्द्र से वर्षों तक होती रही। अनेक आंचलिक एवं प्रान्तीय सम्मानों से विभूषित।

Read More
Books by this Author
Back to Top