Shyam Swapn

Edition: 2001, Ed. 1st
Language: Hindi
Publisher: Rajkamal Prakashan
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Shyam Swapn

यह एक विचित्र संयोग ही कहा जाएगा कि जिस अंचल में रहकर बीसवीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध में गजानन माधव मुक्तिबोध जैसे आधुनिक चिन्तक-कवि ने अपने समय के खुरदुरे और अदम्य यथार्थ के लिए फंतासी की विधि का आविष्कार किया, उसी अंचल के ठाकुर जगमोहन सिंह ने उन्नीसवीं शताब्दी के अन्त के कुछ बरसों पहले एक पूरा उपन्यास ही फंतासी के रूप में लिखा। हिन्दी में यथार्थ के चित्रण की जो इकहरी परम्परा बाद में लगभग केन्द्रीय बन गई उसमें इस उत्तराधिकार का कोई बोध या स्मृति, दुर्भाग्य से, शेष नहीं है। उपन्यास की गल्पता को हिन्दी में इतनी जल्दी साध लिया गया था और उसे अपनी जातीय परम्परा के अनुकूल भी कर लिया गया था, यह जानना आज के स्मृतिवंचित दौर में रोमांचक है। इस अनोखे गद्य में मध्यकालीन कविता ‘स्वच्छन्द’ है : उस पर सचाई का व्यर्थ का बोझ नहीं है, बल्कि सपने की सहज प्रवाहमयता है। वह खिलता, स्पन्दित, कविसमयों में विन्यस्त ऐसा गद्य है कि विशेषत: आज तो सर्वथा अनन्य लगता है। ‘श्यामास्वप्‍न’ का पुनर्प्रकाशन सचमुच एक साहित्यिक घटना है। शायद इसका एक और साक्ष्य कि कैसे कई मायनों में उत्तर-आधुनिक हमारे यहाँ प्राक्-आधुनिक है।

—अशोक वाजपेयी

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Language Hindi
Binding Hard Back
Publication Year 2001
Edition Year 2001, Ed. 1st
Pages 115p
Translator Not Selected
Editor Not Selected
Publisher Rajkamal Prakashan
Dimensions 22 X 14 X 1
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Thakur Jagmohan Singh

Author: Thakur Jagmohan Singh

ठाकुर जगमोहन सिंह

ठाकुर जगमोहन सिंह का जन्म 1857 में, विजयराघवगढ़ (म.प्र.) में हुआ। पिता सरजूप्रसाद सिंह को ऐतिहासिक स्वतंत्रता-संग्राम में हिस्सा लेने के कारण कालेपानी की सज़ा हुई थी। कहा जाता है कि दंड भोगने के स्थान पर उन्होंने अपने प्राण अपने आप ले लिए।

ठाकुर जगमोहन सिंह की शिक्षा वाड् र्स इंस्टीट्यूशन, बनारस में हुई। वहाँ वे बारह वर्ष रहे। हिन्दी, संस्कृत और अंग्रेज़ी भाषा और साहित्य का अध्ययन किया। 1880 में उनकी नियुकित तहसीलदार के पद पर सेंट्रल प्राविन्स में हुई। इस पर वे धमतरी और शिवरीनारायण में रहे। देश भ्रमण किया।

भारतेन्दु हरिश्चन्द्र की सक्रियता से बनारस में बने रचनात्मक परिवेश का सम्पर्क जगमोहन सिंह के लिए निरन्तर प्रेरक रहा। भारतेन्दु के साथ जीवनव्यापी मैत्री से उन्होंने बहुत कुछ सीखा-पाया। मूलतः कवि ठाकुर जगमोहन सिंह की ‘श्यामालता’ (1885), ‘प्रेम संपत्तिलता’ (1885) तथा ‘श्यामासरोजनी’ (1887) जैसी काव्य-कृतियाँ प्रेम के उदग्र अनुभवों का उत्कट साक्ष्य हैं। प्रकृति के प्रति गहरा अनुराग उनके कृतित्व को एक अतिरिक्त महत्त्व भी देता है। आचार्य रामचन्द्र शुक्ल ने इसे रेखांकित करते हुए लिखा है—“बाबू हरिश्चन्द्र, पं. प्रतापनारायण मिश्र आदि कवियों और लेखकों की दृष्टि और हृदय की पहुँच मानव-क्षेत्र तक ही थी, प्रकृति से अपर क्षेत्रों तक नहीं। पर ठाकुर जगमोहन सिंह ने नरक्षेत्र के सौन्दर्य को प्रकृति के और क्षेत्रों के सौन्दर्य के मेल में देखा है। प्राचीन संस्कृत साहित्य के रुचि-संसार के साथ भारत भूमि की प्यारी रूप-रेखा को मन में बसानेवाले वे पहले हिन्दी लेखक थे।”

ठाकुर जगमोहन सिंह ने ‘मेघदूत’, ‘ऋतुसंहार’ तथा ‘देवयानी’ में महाभारत के आदि पर्व 73 से 85 सर्गों तक का अनुवाद किया है। बायरन की ‘प्रियजनर ऑफ़ शिलन’ का भी अनुवाद उन्होंने किया। उनकी अप्रकाशित डायरी में ‘हुक्के वाला’ नामक नाटक 1886 में लिखा 4 अंकों का एक प्रहसन भी प्राप्त होता है जिसका प्रकाशन ‘साक्षात्कार’ के जून-जुलाई, 1984 के अंक में हुआ है।

ठाकुर जगमोहन सिंह का निधन 4 मार्च, 1899 को सुहागपुर (म.प्र.) में हुआ।

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