Thakur Jagmohan Singh Samagra

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Thakur Jagmohan Singh Samagra
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आचार्य रामचन्द्र शुक्ल ने ठाकुर जगमोहन सिंह के साहित्य के वैशिष्ट्य को लक्ष्य करते हुए उचित ही लिखा था कि भारतेन्दु और अन्य कवियों-लेखकों की ‘दृष्टि और हृदय की पहुँच मानव-क्षेत्र तक ही थी,’ लेकिन ‘ठाकुर जगमोहन सिंह ने नरक्षेत्र के सौन्दर्य को प्रकृति के और क्षेत्रों के सौन्दर्य के मेल में देखा है।’

ठाकुर जगमोहन सिंह की रचनाओं के इस संकलन से गुज़रते हुए यह अनुभव किया जा सकता है कि उन्नीसवीं सदी के पुनर्जागरण का मानवतावाद कोरे यथार्थवादी मुहावरे में ही आकार नहीं ले रहा था, बल्कि किंचित् रोमैंटिक स्वर में भी ध्वनित हो रहा था। भारतीय आधुनिकता का यह भी एक उल्लेखनीय पहलू है, जिसकी अनदेखी नहीं की जानी चाहिए। महत्त्वपूर्ण यह भी है कि रोमैंटिक स्वर सिर्फ़ काव्य तक सीमित न रहकर ठाकुर जगमोहन सिंह की ‘श्यामास्वप्न’ जैसी गद्य-कृति से भी प्रकट हो रहा था। दरअसल उनकी संवेदनात्मक बनावट में रोमैंटिक भावबोध की मौजूदगी ऐसी अतिक्रामक है कि उनका गद्य भी, उपन्यास के कलेवर में गठित होने की जद्दोजहद के बावजूद, ख़ास काव्यात्मक मालूम पड़ता है। सच पूछा जाए तो वे हिन्दी में काव्यात्मक गद्य और रोमांसवाद के प्रणेता हैं।

ठाकुर जगमोहन सिंह की रचनात्मक संवेदना में प्रकृति के साथ ही प्रेम की उपस्थिति का केन्द्र स्थानीय है। यह प्रेम और उदग्र ऐन्द्रिकता, जिसकी अभिव्यक्ति रीतिकाव्य में रूढ़िवादी तरीक़े से मिलती है, ठाकुर जगमोहन सिंह के यहाँ अकुंठ और उन्मुक्त सहजता में उन्मोचित है। यहाँ रीति-चेतना का समाहार और प्रकृति-चेतना का समारम्भ घटित होता है। इस तरह ठाकुर जगमोहन सिंह का साहित्य भारतेन्दु-युगीन सृजनशीलता के अनखुले आयामों की ओर इंगित करता है।

रमेश अनुपम ने बहुत जतन और परिश्रम से ठाकुर जगमोहन सिंह की लगभग गुम हो चुकी रचनाओं को सहेज-सकेलकर यह संचयन तैयार किया है। निस्सन्देह, इसके प्रकाशन से हिन्दी में आधुनिक साहित्य के आरम्भिक दौर को जानने-समझने में अध्येताओं को मदद मिलेगी। साथ ही इससे अपनी परम्परा की पहचान अपेक्षाकृत समावेशी और अनेकाग्र रूप में स्थापित करने की दृष्टि विकसित हो सकेगी।

—जय प्रकाश

More Information
Language Hindi
Format Hard Back
Publication Year 2014
Edition Year 2014, Ed. 1st
Pages 416p
Translator Translator One
Editor Ramesh Anupam
Publisher Rajkamal Prakashan
Dimensions 22 X 14.5 X 2.5
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Author: Thakur Jagmohan Singh

ठाकुर जगमोहन सिंह

ठाकुर जगमोहन सिंह का जन्म 1857 में, विजयराघवगढ़ (म.प्र.) में हुआ। पिता सरजूप्रसाद सिंह को ऐतिहासिक स्वतंत्रता-संग्राम में हिस्सा लेने के कारण कालेपानी की सज़ा हुई थी। कहा जाता है कि दंड भोगने के स्थान पर उन्होंने अपने प्राण अपने आप ले लिए।

ठाकुर जगमोहन सिंह की शिक्षा वाड् र्स इंस्टीट्यूशन, बनारस में हुई। वहाँ वे बारह वर्ष रहे। हिन्दी, संस्कृत और अंग्रेज़ी भाषा और साहित्य का अध्ययन किया। 1880 में उनकी नियुकित तहसीलदार के पद पर सेंट्रल प्राविन्स में हुई। इस पर वे धमतरी और शिवरीनारायण में रहे। देश भ्रमण किया।

भारतेन्दु हरिश्चन्द्र की सक्रियता से बनारस में बने रचनात्मक परिवेश का सम्पर्क जगमोहन सिंह के लिए निरन्तर प्रेरक रहा। भारतेन्दु के साथ जीवनव्यापी मैत्री से उन्होंने बहुत कुछ सीखा-पाया। मूलतः कवि ठाकुर जगमोहन सिंह की ‘श्यामालता’ (1885), ‘प्रेम संपत्तिलता’ (1885) तथा ‘श्यामासरोजनी’ (1887) जैसी काव्य-कृतियाँ प्रेम के उदग्र अनुभवों का उत्कट साक्ष्य हैं। प्रकृति के प्रति गहरा अनुराग उनके कृतित्व को एक अतिरिक्त महत्त्व भी देता है। आचार्य रामचन्द्र शुक्ल ने इसे रेखांकित करते हुए लिखा है—“बाबू हरिश्चन्द्र, पं. प्रतापनारायण मिश्र आदि कवियों और लेखकों की दृष्टि और हृदय की पहुँच मानव-क्षेत्र तक ही थी, प्रकृति से अपर क्षेत्रों तक नहीं। पर ठाकुर जगमोहन सिंह ने नरक्षेत्र के सौन्दर्य को प्रकृति के और क्षेत्रों के सौन्दर्य के मेल में देखा है। प्राचीन संस्कृत साहित्य के रुचि-संसार के साथ भारत भूमि की प्यारी रूप-रेखा को मन में बसानेवाले वे पहले हिन्दी लेखक थे।”

ठाकुर जगमोहन सिंह ने ‘मेघदूत’, ‘ऋतुसंहार’ तथा ‘देवयानी’ में महाभारत के आदि पर्व 73 से 85 सर्गों तक का अनुवाद किया है। बायरन की ‘प्रियजनर ऑफ़ शिलन’ का भी अनुवाद उन्होंने किया। उनकी अप्रकाशित डायरी में ‘हुक्के वाला’ नामक नाटक 1886 में लिखा 4 अंकों का एक प्रहसन भी प्राप्त होता है जिसका प्रकाशन ‘साक्षात्कार’ के जून-जुलाई, 1984 के अंक में हुआ है।

ठाकुर जगमोहन सिंह का निधन 4 मार्च, 1899 को सुहागपुर (म.प्र.) में हुआ।

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