भारत और पाकिस्तान के सम्बन्धों में भावनाओं, विचारों और सन्देहों का एक बड़ा-सा जंजाल आज़ादी के समय से फैला हुआ है, जो समय–समय पर टकराव की स्थिति पैदा कर देता है। इस पुस्तक में इस जंजाल की छानबीन गहरे धीरज और इस आशा के साथ की गई है कि दोनों देश अपनी–अपनी राष्ट्रीय अस्मिताओं को बनाए रखते हुए शान्ति के एक नए दक्षिण एशियाई सन्दर्भ की रचना कर सकते हैं।
महात्मा गांधी की हत्या से लेकर कश्मीर–समस्या और विश्व स्तर पर उभरे अस्मिताओं के संघर्ष तक अनेक विषयों की पड़ताल करते हुए लेखक ने कई महत्त्वपूर्ण प्रश्नों पर विचार किया है : राष्ट्रपिता की हत्या क्यों हुई? विभाजन के इतिहास को अनुभूति के स्तर पर आज किस तरह देखा जाए? गांधी और जिन्ना की विरासतें आज तक हमें किस तरह प्रभावित करती रही हैं? आदि प्रश्नों की मदद से यह पुस्तक हमें विचारोत्तेजक समाधि की अवस्था में ले जाती है।
इसे पढ़ते हुए हम शान्ति की सम्भावना को लेकर एक नई तरह का तर्क रचने की प्रेरणा पाते हैं जिसका आधार बीते हुए कल की रूमानी यादों में न हो। दक्षिण एशिया में सामूहिक शान्ति के पक्ष में सहमति बनाने के सिलसिले में यह पुस्तक बच्चों और युवाओं की शिक्षा के अलावा मीडिया की भूमिका पर भी रोशनी डालती है।
Language | Hindi |
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Binding | Hard Back, Paper Back |
Translator | Latika Gupta |
Editor | Not Selected |
Publication Year | 2008 |
Edition Year | 2008, Ed. 1st |
Pages | 156p |
Publisher | Rajkamal Prakashan |
Dimensions | 21.5 X 14 X 1 |