Choori Bazar Mein Ladki

Author: Krishna Kumar
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Choori Bazar Mein Ladki
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यह पुस्तक लड़कियों के मानस पर डाली जानेवाली सामाजिक छाप की जाँच करती है। वैसे तो छोटी लड़की को बच्ची कहने का चलन है, पर उसके दैनंदिन जीवन की छानबीन ही यह बता सकती है कि लड़कियों के सन्दर्भ में 'बचपन' शब्द की व्यंजनाएँ क्या हैं।

कृष्ण कुमार ने इन व्यंजनाओं की टोह लेने के लिए दो परिधियाँ चुनी हैं। पहली परिधि है घर के सन्दर्भ में परिवार और बिरादरी द्वारा किए जानेवाले समाजीकरण की। इस परिधि की जाँच संस्कृति के उन कठोर और पैने औज़ारों पर केन्द्रित है जिनके इस्तेमाल से लड़की को समाज द्वारा स्वीकृत औरत के साँचे में ढाला जाता है। दूसरी परिधि है शिक्षा की जहाँ स्कूल और राज्य अपने सीमित दृष्टिकोण और संकोची इरादे के भीतर रहकर लड़की को एक शिक्षित नागरिक बनाते हैं।

लड़कियों का संघर्ष इन दो परिधियों के भीतर और इनके बीच बची जगहों पर बचपन भर जारी रहता है। यह पुस्तक इसी संघर्ष की वैचारिक चित्रमाला है। 

More Information
Language Hindi
Format Hard Back, Paper Back
Publication Year 2014
Edition Year 2023, Ed. 5th
Pages 148p
Translator Not Selected
Editor Not Selected
Publisher Rajkamal Prakashan
Dimensions 22.5 X 14.5 X 1.5
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Krishna Kumar

Author: Krishna Kumar

कृष्ण कुमार

जन्म : 1951; प्रयागराज।

दिल्ली विश्वविद्यालय में शिक्षा के प्रोफ़ेसर हैं और राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसन्धान एवं प्रशिक्षण परिषद् के निदेशक रह चुके हैं। उन्हें लन्दन विश्वविद्यालय के इंस्टीट्यूट ऑफ़ एज्यूकेशन ने डी.लिट्. की उपाधि प्रदान की है। 2011 में उन्हें 'पद्मश्री’ प्रदान की गई। शिक्षा सम्बन्धी लेखन के अलावा वह कहानियाँ, निबन्थ और संस्मरण भी लिखते हैं। उनकी अनेक पुस्तकें अंग्रेज़ी में हैं। कृष्ण कुमार बच्चों के लिए भी लिखते हैं।

कृष्ण कुमार की हिन्दी में प्रकाशित पुस्तकें

शिक्षा सम्बन्धी पुस्तकें : ‘राज, समाज और शिक्षा’; ‘शिक्षा और जान’; ’शैक्षिक जान और वर्चस्व; ‘बच्चों की भाषा और अध्यापक’; ‘दीवार का इस्तेमाल’; ‘मेरा देश तुम्हारा देश’।

कहानी और संस्मरण : ‘नीली आँखों वाले बगुले’, ‘अब्दुल पलीद का छुरा’, ‘त्रिकाल दर्शन’।

निबन्थ और समीक्षा : ‘विचार का डर’, ‘स्कूल की हिन्दी’, ‘शान्ति का समर’, ‘सपनों का पेड़’, ‘रघुवीर सहाय’ रीडर।

बाल साहित्य : ‘आज नहीं पढ़ूँगा’, ‘महके सारी गली-गली’ (स्व. निरंकार देव सेवक के साथ सम्पादित), ‘पूड़ियों की गठरी’।

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