Shamsher Bahadur Singh Ki Aalochana-Drishti-Hard Back

Author: Nirbhay Kumar
ISBN: 9789388211413
Edition: 2019, 1st Ed.
Language: Hindi
Publisher: Lokbharti Prakashan
Special Price ₹590.75 Regular Price ₹695.00
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9789388211413
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शमशेर एक बड़े कवि के साथ-साथ एक आलोचक भी हैं। एक कवि-आलोचक। इस बात का साक्ष्य उनकी पहली आलोचनात्मक कृति ' दोआब' है। उन्होंने भारतीय साहित्य की परम्परा के महान रचनाकारों और साथ ही अपने समकालीन रचनाकारों और उनकी रचनाओं पर दिलचस्पी के साथ आलोचनात्मक चिन्‍तन किया है। शमशेर ने ऐसे रचनाकारों पर उस समय आलोचनाएँ लिखी हैं जब हिन्दी आलोचना में उन पर बात करना मुनासिब नहीं समझा जाता था; क्योंकि हिन्दी आलोचना बहुधा पूर्वाग्रहों और दायित्वहीनता का शिकार होती रही है।

शमशेर की आलोचना-दृष्टि का सबसे सबल पक्ष उसकी प्रगतिशीलता एवं भारतीयता है। आज का परिवेश इतिहासबोध, सदियों से चली आ रही सामाजिक संरचना और मौजूदा व्यवस्था में जीवनानुकूल परिवर्तन की बात करता है। इसके लिए संघर्ष की आवश्यकता होती है। शमशेर को जिस किसी रचना और रचनाकार में यह संघर्ष दिखता है; वह उन्हें अपील करता है।

उनकी मनोभूमि और रचनात्मक चिन्ताओं को जानने-समझने के लिए उनकी कविताओं से अधिक उनकी आलोचनाओं पर भरोसा किया जा सकता है। शमशेर ने अपनी आलोचनाओं में भारतीय संस्कृति पर भी चिन्तन किया है। वे अपनी आलोचना के लिए भारतीय भाषाओं की ऐसी रचनाओं का चुनाव करते हैं जो भारतीय संस्कृति के 'सामासिक स्वरूप' को सामने लाती हैं।

परम्परा का मूल्यांकन शमशेर की आलोचना-दृष्टि की आधारभूमि है, तो समकालीन रचनाशीलता का मूल्यांकन उनकी तटस्थता और सजगता का प्रमाण। अपने समय के प्रति जागरूक रचनाकार ही साहित्य, समाज और मनुष्य को अपनी 'मनुष्यता खोने के डर' से उबारकर इन सबको 'मनुष्यता की उच्च भूमि' पर खड़ा कर सकता है। शमशेर इस ओर क़दम बढ़ाते नज़र आते हैं।

शमशेर निर्मम आलोचक नहीं हैं। निराला, ग़ालिब, सुभद्रा कुमारी चौहान, नागार्जुन, केदार, त्रिलोचन आदि न जाने कितने रचनाकारों पर लिखी आलोचना उनके सन्तुलित और स्वस्थ दृष्टिकोण की परिचायक है। नागार्जुन को 'मुँहफट कवि', त्रिलोचन को 'साहित्य का हनुमान' आदि कह देना शमशेर की बेबाक आत्मीयता का ही प्रमाण है। शमशेर के बारे में अब तक 'अनकही' अनेक बातों को कहने की कोशिश के साथ यह पुस्तक 'पब्लिक स्फ़ियर' में प्रस्तुत है।

More Information
Language Hindi
Binding Hard Back
Publication Year 2019
Edition Year 2019, 1st Ed.
Pages 270p
Price ₹695.00
Translator Not Selected
Editor Not Selected
Publisher Lokbharti Prakashan
Dimensions 22.5 X 14 X 2.5
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Nirbhay Kumar

Author: Nirbhay Kumar

निर्भय कुमार

निर्भय कुमार का जन्य 15 जुलाई, 1988 को ग्राम—पतिलार, ज़िला—पश्चिमी चम्पारण, बिहार में हुआ। आपने यूजीसी जे.आर.एफ़. की परीक्षा उत्‍तीर्ण करने के साथ 'शमशेर बहादुर सिह की आलोचना-दृष्टि' विषय पर जामिया मिल्लिया इस्लामिया, दिल्ली से एम.फिल. की उपाधि प्राप्त की और वर्तमान में 'हिन्दी कथा साहित्य में सैक्युअलिटी की अवधारणा (1990 के बाद)'  विषय पर दिल्ली विश्वविद्यालय, दिल्ली से पीएच.डी. कर रहे हैं। आपके विभिन्न विषयों पर लेख, कविताएँ आदि हिन्दी भाषा के शीर्षस्थ पत्र-पत्रिकाओं में छपते रहे हैं। साहित्य अकादेमी की पत्रिका 'समकालीन भारतीय साहित्य' में प्रकाशित आपका 'जब अपना ही घर पहचानना पड़े' शीर्षक रिपोर्ताज बेहद चर्चित है। वर्तमान में आप हिन्दी विभाग, रामजस कॉलेज, दिल्ली विश्वविद्यालय, दिल्ली में सहायक प्रोफ़ेसर के रूप में कार्यरत हैं।

 

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