Seemayen Tootati Hain

दुर्गादास को एक हत्या के जुर्म में जनमक़ैद हो गई है। उसके बाद ही मानवीय सम्बन्धों की हत्या के प्रयास और उन सम्बन्धों की सर्वोपरिता की यह कथा शुरू होती है। इसमें जिस बहुरंगी संसार की रचना हुई है, वहाँ वास्तविक संसार जैसा ही उलझाव है। उसकी विशृंखलता में एक ओर कोई तारानाथ पारम्परिक विश्वासों के सहारे व्यवस्था खोजने की कोशिश करता है और उस प्रक्रिया में अपने को खड़ा करने की ताक़त पाता है, दूसरी ओर कोई विमल किसी भी स्थिति के लिए अपने को पहले से तैयार न पाकर सिर्फ़ कुछ होने की प्रतीक्षा करता रहता है। और धर्म, प्रेम और अपराध-जैसी तर्कातीत वृत्तियों में बँधी हुई ज़िन्दगी इस अव्यवस्थित उलझाव से निरन्तर जूझती रहती है। अपराध-कथा के-से प्रवाहवाली यह रचना वास्तव में वृहत्तर जीवन की कथा है जो पाठक को सहज अवरोह के साथ अन्त तक लाते-लाते उसे मानवीय नियति की अप्रत्याशित गहराइयों में उतार देती है।
सुविख्यात उपन्यास ‘राग दरबारी’ की रचना के पाँच साल बाद प्रकाशित होनेवाला श्रीलाल शुक्ल का यह उपन्यास उनकी अन्य कृतियों से सर्वथा भिन्न है और उनकी सर्जनात्मक प्रतिभा के कई ऐसे आन्तरिक स्रोतों का परिचय देता है जिनका उपयोग हिन्दी कथा-साहित्य में प्रायः विरल है।
Language | Hindi |
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Format | Hard Back |
Publication Year | 1973 |
Edition Year | 2004, Ed. 3rd |
Pages | 209p |
Translator | Not Selected |
Editor | Not Selected |
Publisher | Rajkamal Prakashan |
Dimensions | 18 X 12.5 X 1.5 |
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