‘राग दरबारी’ के प्रख्यात रचनाकार श्रीलाल शुक्ल का यह उपन्यास इस धारणा का खंडन करता है कि अपराध-कथाएँ साहित्यिक नहीं हो सकतीं।
दुर्गादास नाम के व्यक्ति को एक हत्या के जुर्म में उम्रक़ैद हो गई है और इसी बिन्दु से शुरू होता है यह दिलचस्प उपन्यास। इसमें जिस बहुरंगी संसार की रचना हुई है, वहाँ वास्तविक संसार जैसा ही उलझाव है और धर्म, प्रेम तथा अपराध जैसी तर्कातीत वृत्तियों में बँधी हुई ज़िन्दगी इस उलझाव से निरन्तर जूझती रहती है। इसकी सबसे बड़ी समस्या वह हत्या नहीं, जो हो चुकी बल्कि उसके बाद मानवीय सम्बन्धों की हत्या के प्रयास और उन सम्बन्धों के बचाव का द्वंद्व है। वास्तव में अपराध-कथा जैसे प्रवाह वाली यह कथाकृति एक वृहत्तर जीवन की कथा है जो पाठक को सहज अवरोह के साथ अन्ततः मानवीय नियति की गहराइयों में उतार देती है। कहने की आवश्यकता नहीं कि हिन्दी कथा-साहित्य में इस उपन्यास का एक अलग स्थान है।
Language | Hindi |
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Binding | Hard Back |
Publication Year | 1973 |
Edition Year | 2023, Ed. 6th |
Pages | 209p |
Translator | Not Selected |
Editor | Not Selected |
Publisher | Rajkamal Prakashan |
Dimensions | 18 X 12.5 X 1.5 |