Samkalin Hindi Kavita

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प्रस्तुत पुस्तक में समकालीन हिन्दी कविता के उन्नीस महत्त्वपूर्ण और अतिविशिष्ट कवियों के काव्य का विश्लेषण-मूल्यांकन हुआ है। कहना न होगा कि ये कवि परस्पर भिन्न रुचियों के हैं; तथा इनकी काव्य-संवेदनाएँ और काव्य-चिन्ताएँ एक दूसरे से अलग हैं। समकालीन हिन्दी कविता के प्रवृत्तिगत अध्ययन से उसकी एक विकास परम्परा का तो पता चलता है पर अधिकांशत: शीर्षकों-उपशीर्षकों के अन्तर्गत कवियों का वर्ग निर्धारण मात्र होकर रह जाता है। जबकि अलग-अलग कवियों की कविताओं के अध्ययन में उन कवियों के अपने संस्कारों, उनकी भिन्न जीवन दृष्टियों, उनकी काव्य विषयक धारणाओं तथा समकालीन वास्तविकता के विविध पहलुओं की जानकारी होती है। कविता का अध्ययन एक जटिल व्यापार है। साहित्य की अन्य विधाओं में सबसे जटिल नई कविता का अध्ययन तो और भी कठिन है। आज की पत्र-पत्रिकाओं में लिखी जा रही आलोचना रचना केन्द्रित नहीं लगती। व्यक्तिगत-दलगत गुटबन्दियों में फँसकर यह उखाड़-पछाड़ और तीव्र होता जा रहा है। प्रस्तुत पुस्तक की दृष्टि सन्तुलित और वस्तुपरक है। आलोचक ने कवियों के शब्द प्रयोगों का बारीक़ी से विश्लेषण करते हुए उनकी काव्य-चिन्ताओं का उद्‌घाटन किया है। हिन्दी के प्रसिद्ध कवि और नए साहित्य के सहृदय समीक्षक डॉ. विश्वनाथप्रसाद तिवारी ने इस पुस्तक में सहअनुभूति के साथ कवियों की कविताओं के समानान्तर यात्रा करते हुए आधुनिक हिन्दी कविता के निकट अध्ययन (क्लोज रीडिंग) की कोशिश की है। यह पुस्तक निश्चय ही कविता के अध्येताओं के लिए अत्यन्त उपयोगी सिद्ध होगी।

More Information
Language Hindi
Format Hard Back
Publication Year 1982
Edition Year 2023, Ed. 5th
Pages 243p
Translator Not Selected
Editor Not Selected
Publisher Lokbharti Prakashan
Dimensions 22 X 14.5 X 2
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Vishwanath Prasad Tiwari

Author: Vishwanath Prasad Tiwari

विश्वनाथप्रसाद तिवारी

 

डॉ. विश्वनाथ प्रसाद तिवारी का जन्‍म 20 जून, 1940 को भेड़िहारी, देवरिया, उत्‍तर प्रदेश में हुआ। वे गोरखपुर विश्वविद्यालय के हिन्दी विभाग के अध्यक्ष-पद से वर्ष 2001 में सेवानिवृत्त हुए।

वे गोरखपुर से प्रकाशित होनेवाली साहित्यिक त्रैमासिक पत्रिका ‘दस्तावेज़’ के सम्पादक हैं। यह पत्रिका रचना और आलोचना की विशिष्ट पत्रिका है जो 1978 से नियमित रूप से प्रकाशित हो रही है। डॉ. तिवारी ‘साहित्य अकादेमी’ के 2013 से 2017 तक की अवधि के लिए अध्यक्ष रहे।

उन्होंने गाँव की धूल-भरी पगडंडी से इंग्लैंड, मारीशस, रूस, नेपाल, अमरीका, नीदरलैंड, जर्मनी, फ़्रांस, लक्जमबर्ग, बेल्जियम, चीन और थाईलैंड की ज़मीन नापी है।

उनका रचनाकर्म देश और भाषा की सीमा तोड़ता है। उड़िया में कविताओं के दो संकलन प्रकाशित हुए। हजारी प्रसाद द्विवेदी पर लिखी आलोचना पुस्तक का गुजराती और मराठी भाषा में अनुवाद हुआ। इसके अलावा रूसी, नेपाली, अंग्रेज़ी, मलयालम, पंजाबी, मराठी, बांग्ला, गुजराती, तेलगू, कन्नड़ व उर्दू में भी उनकी रचनाओं का अनुवाद हुआ है। उनके शोध व आलोचना, कविता-संग्रह, यात्रा-संस्मरण, लेखकों से जुड़े संस्‍मरण, साक्षात्कार आदि की दो दर्जन से ज्‍़यादा पुस्‍तकें प्रकाशित हैं। उन्होंने हिन्दी के कवियों, आलोचकों पर केन्द्रित कई पुस्तकों का सम्पादन किया है।

वे ‘व्यास सम्मान’, ‘सरस्‍वती सम्‍मान’, ‘मूर्तिदेवी पुरस्‍कार’, ‘साहित्य भूषण सम्मान’, ‘पुश्किन सम्मान’ सहित कई सम्‍मानों से नवाजे जा चुके हैं।

 

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