Samkaleen Hindi Kavita

Literary Criticism
Author: A. Arvindakshan
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Samkaleen Hindi Kavita

जो कुछ लिखा जा रहा है, वह सब समकालीन नहीं है। समकालीनता एक जीवन-दृष्टि है जहाँ कविता अपने समय का आकलन करती है—तर्क और संवेदना की सम्मिलित भूमि पर। यह एक प्रकार से मुठभेड़ है, सर्जनात्मक धरातल पर, जहाँ वस्तुओं के प्रचलित नाम, अर्थ बदल जाते हैं। जीवन को एक नया विन्यास मिलता है कविता में। और यह सब होता है, एक नए मुहावरे में, जिसकी पहचान का कार्य सरल नहीं होता। जिसे मुक्तिबोध ने अभिव्यक्ति के ख़तरे उठाना कहा है। कठिनाई यह भी कि जीवन, यथार्थ और उसे व्यंजित करनेवाले कवि हमारे इतने पास होते हैं कि सही विवेचन का प्रयत्न भी कई कठिनाइयाँ उपस्थित करता है।

अरविंदाक्षन ने समकालीन हिन्दी कविता को सत्ता-मीमांसा का विवेचन करते हुए, एक प्रकार से इस चुनौती को स्वीकार किया है कि समकालीनता की पहचान आसान नहीं, इससे बचना चाहिए। वास्तविकता यह है कि अपने समय से आँख मिलाए बिना न रचना सम्भव है, न आलोचना। निराला को समकालीनता के पूर्वाभास रूप में देखते हुए यह पुस्तक नागार्जुन, मुक्तिबोध से लेकर बिलकुल नए कवि एकान्त श्रीवास्तव तक आती है और लगभग सभी कवियों की समकालीनता को उजागर करती है। नारी के प्रति नई कवि-दृष्टि और कवयित्रियों की अकुलाहट को भी यहाँ स्थान मिला है, सम्भवतः पहली बार। समकालीनता को देखने-समझने का ईमानदार प्रयत्न।

—डॉ. प्रेमशंकर

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Language Hindi
Format Hard Back
Publication Year 1998
Edition Year 2018, Ed. 3rd
Pages 133p
Translator Not Selected
Editor Not Selected
Publisher Radhakrishna Prakashan
Dimensions 22 X 14.5 X 1.5
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Editorial Review

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A. Arvindakshan

Author: A. Arvindakshan

ए. अरविंदाक्षन

प्रमुख कृतियाँ : ‘बाँस का टुकड़ा’, ‘घोड़ा’, ‘आसपास’, ‘सपने सच होते हैं’, ‘राग लीलावती’, ‘असंख्य ध्वनियों के बीच’, ‘भरा-पूरा घर’, ‘पतझड़ का इतिहास’, ‘राम की यात्रा’, ‘जंगल नज़दीक आ रहा है’ (कविता-संग्रह); ‘महादेवी वर्मा के रेखाचित्र’, ‘अज्ञेय की उपन्यास-यात्रा’, ‘आधारशिला’, ‘समकालीन हिन्दी कविता’, ‘कविता का थल और काल’, ‘कविता सबसे सुन्दर सपना है’, ‘रचना के विकल्प’, ‘साहित्य’, ‘संस्कृति और भारतीयता’, ‘समकालीन कविता की भारतीयता’, ‘प्रेमचन्द : भारतीय कथाकार’, ‘कविता की संस्कृति’, ‘शब्द की यात्रा’ (आलोचना); ‘आधुनिक मलयालम कविता’, ‘आकलन’, ‘कमपेरेटिव इंडियन लिटरेचर’, ‘कथाशिल्पी गिरिराज किशोर’, ‘कवितयुटे पुतिय मुखम’, ‘बहुरंगी कविताएँ’, ‘कविता का यथार्थ’, ‘निराला : एक पुनर्मूल्यांकन’, ‘प्रेमचन्द के आयाम’, ‘महादेवी वर्मा’, ‘नागार्जुन’, ‘कविता अज्ञेय’, ‘हमारे समय में मुक्तिबोध’, ‘साइंस कम्युनिकेशन’, ‘कविता आज’, आलोचना और संस्कृति’, ‘बुनियादी तालीम’, ‘विवेकतिन्टे’, ‘सौन्दर्यम्’, ‘एम.के. सानुविन्टे क्रिटिकल’ (सम्पादन); ‘भारत पर्यटनम’, ‘एवम् इन्द्रजीत्’, ‘कोमल गांधार’, ‘प्रेम एक एलबम’, ‘कोच्ची के दरख़्त’, ‘अक्षर’, ‘सर्वेश्वरदयाल सक्सेनयुटे कवितकल’, ‘अमेरिका : एक अद् भुत दुनिया’, ‘मलयालम की स्त्री-कविता’, ‘एकीलुम चिलतु वकियाकुम’, ‘आधुनिक हिन्दी कविता’, ‘असमिया कथकल’, ‘नाटक जारी है’ आदि (अनुवाद)।

सम्मान : बीस से अधिक राष्ट्रीय एवं अन्तरराष्ट्रीय पुरस्कार; साहित्य सम्मलेन, प्रयाग का सर्वोच्च सम्मान ‘साहित्य वाचस्पति’ से विभूषित। महात्मा गांधी अं.हिं.वि.वि., वर्धा के प्रति-उपकुलपति रहे हैं।

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