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Sahityalochan-Hard Cover

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9789352211982
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‘साहित्यालोचन’ का प्रकाशन 1922 में हुआ था। हिन्दी भाषा के अध्ययन-अध्यापन और विकास के लिए बाबू श्यामसुन्दर दास ने जो प्रयास किए थे, उनमें इस पुस्तक का विशिष्ट स्थान है।

यह पुस्तक साहित्य और अन्यान्य कलाओं की मूल अवधारणाओं का निरूपण करते हुए, कला के भिन्न-भिन्न रूपों, और विशेष रूप से साहित्य की विभिन्न श्रेणियों के आस्वादन और तदनुरूप उनके विवेचन की आधारशिला रखनेवाली कृति है। ग़ौरतलब है कि बीसवीं सदी के आरम्भिक दशकों में जब हिन्दी की रचनात्मकता अपने शास्त्र की खोज ही कर रही थी, इस पुस्तक की मूल प्रस्थापनाओं में इस बात को रेखांकित करना उन्हें आवश्यक लगा था कि आलोचना-समीक्षा अथवा शास्त्र का काम साहित्य-रचना के लिए नियमों का निर्धारण नहीं है, बल्कि उसके साथ चलते हुए अपनी भी दृष्टि का विस्तार करना है। लेकिन आज भी आलोचना अक्सर इस भ्रम में भटक जाती है कि वह रचना को रास्ता दिखानेवाली कोई मशाल है।

इस पुस्तक को पढ़ते हुए हम जान पाते हैं कि हमारी भाषा का वह युग सत्य और तर्क को लेकर कितना सजग था और आज भी हमें उस दृष्टि की कितनी आवश्यकता है। कहने की ज़रूरत नहीं कि गत लगभग एक सदी से यह पुस्तक अपनी उपयोगिता को बरकरार रखे हुए है, और आज भी न सिर्फ़ छात्रों के लिए बल्कि हर उस व्यक्ति के लिए उपादेय है जो हिन्दी भाषा और साहित्य के प्रति गम्भीर है।

More Information
Language Hindi
Binding Hard Back
Translator Not Selected
Editor Not Selected
Publication Year 2017
Edition Year 2023, Ed. 2nd
Pages 256p
Price ₹650.00
Publisher Lokbharti Prakashan
Dimensions 22 X 14 X 1.5
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Shyam Sundar Das

Author: Shyam Sundar Das

श्यामसुंदर दास

जन्म : सन् 1875 ई.; काशी में।

शिक्षा : 1897 ई. में बी.ए. पास किया था।

सन् 1899 ई. में हिन्दू स्कूल में कुछ दिनों तक अध्यापक थे। उसके बाद लखनऊ के कालीचरण स्कूल में बहुत दिनों तक हेडमास्टर रहे। सन् 1921 ई. में काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के हिन्दी विभाग के अध्यक्ष पद पर नियुक्त हुए।

प्रारम्भ से ही हिन्दी के प्रति आपकी अनन्य निष्ठा थी। नागरीप्रचारिणी सभा की स्थापना
(16 जुलाई, 1893 ई.) आपने विद्यार्थी-काल में ही अपने डॉ. सहयोगियों रामनारायण मिश्र और ठाकुर शिवकुमार सिंह की सहायता से की थी। काशी हिन्दू विश्वविद्यालय में आने के पूर्व आपने हिन्दी-साहित्य की सर्वतोमुखी समृद्धि के लिए न्यायालयों में ‘हिन्दी-प्रवेश का आन्दोलन’ (1900 ई.); ‘हस्तलिखित ग्रन्थों की खोज’ (1899 ई.); ‘हिन्दी शब्द सागर' का सम्पादन (1907 ई.) आर्य भाषा पुस्तकालय की स्थापना (1903 ई.), ‘सरस्वती' पत्रिका का सम्पादन (1900 ई.) तथा शिक्षा-स्तर के अनुरूप पाठ्य-पुस्तकों का निर्माण-कार्य आरम्भ कर दिया था। आप आजीवन एक गति में साहित्य-सेवा में रत रहे।

प्रमुख कृतियाँ : ‘नागरी वर्णमाला’; ‘हिन्दी हस्तलिखित ग्रन्थों का वार्षिक खोज विवरण’; ‘हिन्दी हस्तलिखित ग्रन्थों की खोज का प्रथम त्रैवार्षिक विवरण’; ‘हिन्दी कोविद रत्नमाला' भाग 1, 2; ‘साहित्यालोचन'; ‘भाषा विज्ञान'; ‘हिन्दी भाषा का विकास'; ‘हस्तलिखित हिन्दी ग्रन्थों का संक्षिप्त विवरण'; ‘गद्य कुसुमावली'; ‘भारतेन्दु हरिश्चन्द्र'; ‘हिन्दी भाषा और साहित्य'; ‘गोस्वामी तुलसीदास’; ‘रूपक रहस्य'; ‘भाषा रहस्य’ भाग-1; ‘हिन्दी गद्य के निर्माता’ भाग 1, 2; ‘मेरी आत्म कहानी'।

निधन : सन् 1945 ई. में।

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