कुछ कविताएँ नदियों में बहते-बहते अपना गीत नापती हैं। कुछ पर्वतों से पिघलकर, टहनियों पर झूल, बारिशों में धुल, सपाट काग़ज़ पर बिछ जाती हैं।
कुछ सूरज से या चाँद से, या आकाश और धरती के बीच जो भी पनपे, उससे शब्द उधार माँग लाती हैं।
कुछ ये कविताएँ भी हैं, जो एक अलग ही धरा पर उगी, सिंची और अर्पण हो गईं।
बिट्टु की कविताएँ बहुत भीतर की भभकती लौ से जन्मी, एक सुरीली लहर में तैरकर, उनकी आँखों से टपक जाती हैं।
उनके दिन कई रंगों से सने हैं। कहीं वे समाज-सेवा का रंग भरती हैं, तो कहीं रिश्तों के जालों में उलझे लोगों को काउंसल करती हैं। बहुतों की मित्र हैं, प्रेरणा हैं, चाह हैं। इन्हीं से भरे दिनों और उनके बीच के पहरों से बटोरी भावनाओं को घर ले जाती हैं। और फिर, किस शब्द को कैसे बुनना है, किसको छानना है, बीनना, सिलना, लेपना, पोतना और कुरेदना है, ये बिट्टु ख़ूब जानती हैं।
इसलिए उनकी कविताएँ कराहती हुई चाह से उठकर, खौलते पानी में सिंचकर, आँसू भी बहाती हैं, उसे पोंछती भी हैं, सपने भी सँजोती हैं, और फिर दोनों हाथों से अर्पण हो, सतहों से उठ, विशालता में लीन भी हो जाती हैं।
जब प्रेम लेन-देन से उठकर प्रार्थना बन जाए तो उनकी कविताएँ झूमती भी हैं, अर्पण में खो भी जाती हैं।
बिट्टु के शब्द किसी भी भावना में बिखरें और जुड़ें, उनका गीत लय में ही बहता है। हमेशा।
उन्हीं की तरह।
यह संग्रह इसी गीत की ध्वनि है।
Language | Hindi |
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Binding | Hard Back |
Translator | Not Selected |
Editor | Not Selected |
Publication Year | 2009 |
Edition Year | 2019, Ed. 3rd |
Pages | 104p |
Publisher | Rajkamal Prakashan |
Dimensions | 19 X 18.5 X 1 |