Rani Roopmati Ki Aatmakatha-Paper Back

ISBN: 9789389577822
Edition: 2020, 1st Ed.
Language: Hindi
Publisher: Rajkamal Prakashan
Special Price ₹225.00 Regular Price ₹250.00
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9789389577822
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‘रानी रूपमती की आत्मकथा’ उपन्यास इतिहास और कल्पना का अच्छा मिश्रण है। वैसे तो यह उपन्यास रूपमती और बाज़ बहादुर की प्रेम-कथा है, लेकिन इस कथा में उस दौर की दुरभिसन्धियाँ भी हैं। रानी रूपमती कौन थी, इस बारे में इतिहास मौन है, किन्तु उपन्यास में उसे राव यदुवीर सिंह, जिनके पुरखे कभी माँडवगढ़ के राजा थे, की बेटी के रूप में दर्शाया गया है। उपन्यास के अनुसार रानी रूपमती की माँ रुक्मिणी एक क्षत्राणी थीं, जिन्हें उनकी माँ के साथ मुस्लिम आक्रान्‍ताओं ने उठा लिया था। उनके चंगुल से वे निकल भागीं। एक वेश्यालय में शरण ली, जहाँ उनकी शादी राव यदुवीर से हुई।

उसके बाद की कथा इतिहास की आड़-तिरछी गलियों, सत्ता के गलियारों और युद्ध के पेंचदार प्रसंगों से होते हुए रानी रूपमती के ज़हर खाने तक जाती है।

यह कथा उस समय की राजनीति के साथ-साथ तत्कालीन समाज का भी चित्रण करती है। धर्म और धर्मनिरपेक्षता जैसे सवाल तो अपनी जगह हैं ही, उपन्यास की शैली भी रोचक है। यह स्वप्न-दर्शन और वर्णन की शैली में बुनी गई एक ऐसी कथा है जिसे ख़ुद रानी रूपमती लेखक को स्वप्न में सुनाती है।

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Language Hindi
Binding Hard Back, Paper Back
Publication Year 2020
Edition Year 2020, 1st Ed.
Pages 240p
Price ₹250.00
Translator Not Selected
Editor Not Selected
Publisher Rajkamal Prakashan
Dimensions 21.5 X 14 X 1.5
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Priyadarshi Thakur 'Khayal'

Author: Priyadarshi Thakur 'Khayal'

प्रियदर्शी ठाकुर 'ख़याल’

जन्म : 1946, मोतीहारी; मूल निवासी—सिंहवाड़ा, दरभंगा (बिहार)।

पटना विश्वविद्यालय तथा दिल्ली विश्वविद्यालय से इतिहास में क्रमश: स्नातक तथा उत्तर-स्नातक।

तीन वर्ष दिल्ली विश्वविद्यालय के भगत सिंह कॉलेज में इतिहास का अध्यापन; 1970 में भारतीय प्रशासनिक सेवा में चुने गए जिसके बाद 36 वर्षों तक राजस्थान सरकार एवं भारत सरकार में कार्यरत रहे तथा 2006 में भारत सरकार में भारी उद्योग व लोक उद्यम मंत्रालय के सचिव-पद से सेवानिवृत्त हुए। सन् 2006-2008 के दौरान यूरोप के लुब्लियाना नगर में स्थित 'इंटरनेशनल सेंटर फ़ॉर प्रोमोशन ऑफ़ एंटरप्राइजेज’ के महानिदेशक रहे।

सरकारी मुलाजि़म रहते हुए भी ‘ख़याल’ आजीवन साहित्य साधना से जुड़े रहे। इनकी कविताओं, नज़्मों और ग़ज़लों के सात संकलन प्रकाशित हैं : ‘टूटा हुआ पुल’, ‘रात गए’, ‘धूप तितली फूल’, ‘यह ज़बान भी अपनी है’, ‘इन्‍तख़ाब’, ‘पता ही नहीं चलता’ तथा ‘यादों के गलियारे में’।

क्लासिकी चीनी कविता के अग्रणी हस्ताक्षर बाइ जूई की दो सौ कविताओं के इनके हिन्दी अनुवाद ‘तुम! हाँ, बिलकुल तुम’ तथा ‘बाँस की कहानियाँ’ नामक संकलनों में 1990 के दशक में प्रकाशित हुए और बहुचर्चित रहे। बाद के वर्षों में 'ख़याल’ ने कई गद्य पुस्तकों का अनुवाद भी किया जिनमें तुर्की के नोबेल-विजेता ओरहान पामुक के उपन्यास ‘स्नो’ का हिन्दी अनुवाद विशेष उल्लेखनीय है।

'ख़याल’ उर्दू के जाने-माने वेबसाइट 'रेख़्ता ऑर्ग’ में सम्मिलित शायर हैं और इनकी ग़ज़लें जगजीत सिंह, उस्ताद अहमद हुसैन-मोहम्मद हुसैन, डॉ. सुमन यादव आदि गा चुके हैं।

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