शताब्दियों की पराधीनता के बाद भारत के क्षितिज पर स्वतंत्रता का जो सूर्य चमका, वह अप्रतिम था। इस सूर्य की लालिमा में उन असंख्य देशभक्तों का लहू भी शामिल था, जिन्होंने अपना सर्वस्व क्रान्ति की बलिवेदी पर न्योछावर कर दिया। इन देशभक्तों में रामप्रसाद बिस्मिल का नाम अग्रगण्य है। संगठनकर्ता, शायर और क्रान्तिकारी के रूप में बिस्मिल का योगदान अतुलनीय है। ‘काकोरी केस’ में बिस्मिल को दोषी पाकर फ़िरंगियों ने उन्हें फाँसी पर चढ़ा दिया था। इस प्रकरण का दस्तावेज़ी विवरण प्रस्तुत पुस्तक को ख़ास बनाता है।
शहीद महावीर सिंह साहस व समर्पण की प्रतिमूर्ति थे। तत्कालीन अनेक क्रान्तिकारियों से उनके हार्दिक सम्बन्ध थे। इनका बलिदान ऐसी गाथा है, जिसे कोई भी देशभक्त नागरिक गर्व से बार-बार पढ़ना चाहेगा। पुस्तक पढ़ते समय रामप्रसाद बिस्मिल की ये पंक्तियाँ मन में गूँजती रहती हैं—
‘सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है
देखना है ज़ोर कितना बाज़़ू-ए-क़ातिल में है।
एक महत्त्वपूर्ण और संग्रहणीय पुस्तक।
Language | Hindi |
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Binding | Hard Back, Paper Back |
Translator | Ramesh Kumar |
Editor | Not Selected |
Publication Year | 2013 |
Edition Year | 2024, Ed. 2nd |
Pages | 287p |
Publisher | Rajkamal Prakashan |
Dimensions | 22 X 14 X 2 |