Rajyapal

Translator: Bhalchandra Jayshetti
Edition: 2012, Ed. 1st
Language: Hindi
Publisher: Radhakrishna Prakashan
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Rajyapal

कन्नड़ देश की भाषा और संस्कृति के इतिहास में कल्याणी चालुक्य राजाओं का शासनकाल अनेक दृष्टियों से महत्त्व का तथा प्रभावशाली रहा है। चालुक्य राजाओं में पेर्माडी जगदेकमल्ल के पश्चात् जिन तैलप (शतम्) ने सिंहासन का आरोहण किया वे विलासी, आलसी, राजनीति के क्षेत्र में एकदम अनुभवहीन थे। उनकी इन दुर्बलताओं के फलस्वरूप उनके सामन्त तथा दंडनायक कलचूरी वंशीय बिज्जल के हाथ में राज्य का सूत्र चला गया।

राज्यापहरण की इस घटना के बाद बारहवीं सदी में एक अभूतपूर्व साहित्यिक-धार्मिक क्रान्ति का प्रादुर्भाव हुआ। इस क्रान्ति के कारण बिज्जल का राज्यकाल इतिहास में अपना एक पदचिह्न छोड़ गया है। इस क्रान्ति के कर्णधार थे बिज्जल के मंत्रिपरिषद् के सदस्य भक्ति-भंडारी बसवेश।

इस कालावधि में जो घटनाएँ हुईं, वे ही इस ‘राज्यपाल’ उपन्यास की कथा-वस्तु हैं। उपन्यास की पीठिका के रूप में तत्कालीन सामाजिक, राजनीतिक परिस्थितियों का समसामयिक साहित्य, शिला-लेख आदि की सहायता से चित्रित करने का प्रयत्न किया गया है।

सिद्धहस्त लेखक बी. पुट्टस्वामय्या ने प्रांजल भाषा में एक युग को साकार कर दिया है। भालचन्द्र जयशेट्टी का सतर्क अनुवाद उपन्यास को मूल आस्वाद से अभिन्न रखने में समर्थ सिद्ध हुआ है।

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Language Hindi
Binding Hard Back
Publication Year 2012
Edition Year 2012, Ed. 1st
Pages 212P
Translator Bhalchandra Jayshetti
Editor Not Selected
Publisher Radhakrishna Prakashan
Dimensions 22 X 14.5 X 1.5
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Author: B. Puttaswamayya

बी. पुट्टस्वामय्या

जन्म : 24 मई, 1897            

बी. पुट्टस्वामय्या कन्नड़ के विख्यात नाटककार, पत्रकार, उपन्यासकार, शोधकर्ता, इतिहासवेत्ता, संगीत एवं कला के उपासक थे। उनके द्वारा रचित ‘कुरुक्षेत्र’ और ‘दशावतार’ नाटकों के व्यवसायी नाटक मंडलियों द्वारा लगभग ढाई दशक तक लगातार मंचन होते रहे। उन्होंने बीस से भी अधिक नाटक लिखे। कुछ कारणों से उनका मन नाटकों से उचट गया और उपन्यास लेखन की ओर मुड़ गए। इतिहास की समस्याओं को सुलझाने में जिज्ञासा होने के कारण ऐतिहासिक उपन्यासों की रचना में लगे रहे।

कर्नाटक में 12वीं सदी में एक बहुआयामी आन्दोलन छिड़ा था। बसवेश्वर उस आन्दोलन के कर्णधार थे। उसी आन्दोलन को विषयवस्तु बनाकर पुट्टस्वामय्या ने सिलसिलेवार छह उपन्यासों की रचना की—

 ‘उदय-रवि’, ‘राज्यपाल’, ‘कल्याणेश्वर’, ‘नागबन्ध’, ‘अधूरा सपना’ और ‘क्रान्ति-कल्याण’। ‘क्रान्ति-कल्याण’ को 1965 में ‘साहित्य अकादेमी पुरस्कार’ से सम्मानित किया गया।

निधन : 25 जनवरी, 1984

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