Pratinidhi Kahaniyan : Chitra Mudgal

कुछ लेखक रचना के लिए सामग्री जुटाने में ही अपनी अधिकांश शक्ति व्यय कर देते हैं। उन्हें लगता होगा कि किसी परिघटना से ही महत्त्वपूर्ण या बड़ा जीवन- सत्य व्यक्त किया जा सकता है। चित्रा मुद्गल जीवन के छोटे-छोटे प्रसंगों को चुनती हैं, उनमें व्याप्त तनाव को परखती हैं, उन्हें सामाजिकता के व्यापक धरातल पर ला खड़ा करती हैं। यह एक तरह से अकथनीय को ज़ाहिर करने का हुनर है। उनके लिए परिवार सबसे बड़ा सच है। उनकी अधिकांश कहानियाँ विषम स्थितियों में भी रिश्तों को बचाए रखना चाहती हैं।
चित्रा मुद्गल की सबसे बड़ी शक्ति है, उनकी अनोखी क़िस्सागोई। जैसे कोई धीमी आँच वाले अलाव के पास बैठे श्रोताओं के भीतर कहानी की लौ तेज़ कर रहा हो। अमृतलाल नागर, भगवतीचरण वर्मा, कामतानाथ, विजयदान देथा की भाँति चित्रा जी ने क़िस्सागोई या कथन-रस को नया अर्थ दिया है। उनकी कहानियाँ किसी चौंकानेवाली युक्ति या प्रयोग-विह्वल प्रयत्न से प्रारम्भ नहीं होतीं। जीवन का एक क्षण पकड़कर ये कहानियाँ आगे चल पड़ती हैं। भाषा की तमाम भंगिमाओं, कहावतों, मुहावरों, क्षेत्रीय शब्दों और उच्चारण पद्धति का साथ पाकर इन कहानियों की आन्तरिकता विकसित होती है।
चित्रा मुद्गल की कहानियाँ प्रतिवाद के शिल्प में लिखी गई हैं। उनमें बदलते समय-समाज की आहटें हैं। जो कहानियाँ यथार्थ के किसी खुरदुरे हिस्से पर ख़त्म होती हैं, वे भी स्थितियों के प्रति आक्रोश जगाती हैं।
Language | Hindi |
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Format | Hard Back, Paper Back |
Publication Year | 2018 |
Edition Year | 2018, Ed. 1st |
Pages | 156p |
Translator | Not Selected |
Editor | Sushil Siddharth |
Publisher | Rajkamal Prakashan |
Dimensions | 19 X 12.5 X 1.5 |
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