Prabhash Parv-Paper Back

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9788126720965
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‘प्रभाष पर्व' पुस्तक प्रभाष जोशी पर अब तक लिखे गए महत्त्वपूर्ण लेखों का प्रतिनिधि संग्रह है। इसमें उनके समकालीन और बाद की पीढ़ी के पत्रकारों, लेखकों तथा नागरिक अधिकारों के लिए संघर्ष करनेवाले लोगों ने उनका मूल्यांकन किया है। उनको लेकर संस्मरण लिखे हैं।

इन लेखों में अपने समय और समाज के साथ प्रभाष जोशी की रचनात्मक रिश्ता विस्तार से परिभाषित हुआ है। समकालीन राजनैतिक और सामाजिक समस्याओं को लेकर उनके विचार और सक्रियता को नए सिरे से समझने की कोशिश की गई है। इसलिए यह पुस्तक प्रभाष जोशी की ज़िन्दगी के साथ ही उनके समय का भी दस्तावेज़ है। पुस्तक के अध्याय हैं : ‘धर्मक्षेत्र कुरुक्षेत्रֺ’, ‘पत्रकारिता की नई ज़मीन’, ‘जनसत्ता की दुनिया’, ‘क़रीब से प्रभाष जोशी’ तथा ‘प्रभाष जोशी घर में’। इन्हीं के तहत विभिन्न कोणों से प्रभाष जी की भीतरी-बाहरी दुनिया को बारीकी से समझने की कोशिश की गई है।

पुस्तक के अन्त में प्रभाष जी के कुछ व्याख्यान भी दिए गए हैं जो सुव्यवस्थित ढंग से कहीं प्रकाशित नहीं हुए थे। ‘नई दुनिया’ में 50 साल पहले प्रकाशित उनकी दो कविताएँ और कहानियाँ भी दी गई हैं। इन कहानियों में प्रभाष जोशी के श्रेष्ठ कथाकार व्यक्तित्व के दर्शन होते हैं। पत्रकरिता की व्यस्तताओं के बीच वे ज़्यादा कहानियाँ लिख नहीं पाए। उनकी कविताओं में नैराश्य के साथ जीवन संकल्प है। गीतात्मकता की अनुगूँज है।

यह पुस्तक पत्रकार प्रभाष जोशी की समाज-सम्बन्ध, मानवीय और संवेदनात्मक दुनिया में प्रवेश का पारपत्र है।

More Information
Language Hindi
Binding Hard Back, Paper Back
Publication Year 2011
Edition Year 2011, Ed 1st
Pages 470p
Price ₹250.00
Translator Not Selected
Editor Not Selected
Publisher Rajkamal Prakashan
Dimensions 21 X 13.5 X 1
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Prabhash Joshi

Author: Prabhash Joshi

प्रभाष जोशी

प्रभाष जोशी 15 जुलाई, 1937 को मध्य प्रदेश में सिहोर ज़िले के आष्टा गाँव में पैदा हुए। शिक्षा इन्‍दौर के महाराजा शिवाजी राव मिडिल स्कूल और हाईस्कूल में हुई। होल्कर कॉलेज, गुजराती कॉलेज और क्रिश्चियन कॉलेज में पहले गणित और विज्ञान पढ़े। देवास के सुनवानी महाकाल में ग्राम-सेवा और अध्यापन किया। पत्रकारिता को समाज परिवर्तन का माध्यम मानकर सन् 60 में ‘नई दुनिया’ में काम शुरू किया। राजेन्द्र माथुर, शरद जोशी और राहुल बारपुते के साथ काम किया। यहीं विनोबा की पहली नगर-यात्रा की रिपोर्टिंग की। 1966 में शरद जोशी के साथ भोपाल से दैनिक ‘मध्य प्रदेश’ निकाला। 1968 में दिल्ली आकर राष्ट्रीय गांधी समिति में प्रकाशन की ज़िम्मेदारी ली। 1972 में चम्बल और बुंदेलखंड के डाकुओं के समर्पण के लिए जयप्रकाश नारायण के साथ काम किया। अहिंसा के इस प्रयोग पर अनुपम मिश्र और श्रवण कुमार गर्ग के साथ पुस्तक लिखी—‘चम्बल की बन्दूकें : गांधी के चरणों में’। 1974 में ‘प्रजानीति’ (साप्ताहिक) और ‘आसपास’ निकाली जो इमरजेंसी में बन्द हो गई। जनवरी 1978 से अप्रैल 81 तक चंडीगढ़ में ‘इंडियन एक्सप्रेस’ का सम्पादन किया। फिर ‘इंडियन एक्सप्रेस’ (दिल्ली संस्करण) के दो साल तक सम्पादक रहे। सन् 1983 में प्रभाष जोशी के सम्पादन में ‘जनसत्ता’ का प्रकाशन हुआ।

प्रभाष जी प्रमुख कृतियाँ हैं—‘मसि कागद’, ‘हिन्दू होने का धर्म’, ‘आगे अन्‍धी गली है’, ‘धन्‍न नरबदा मइया हो’, ‘जब तोप मुकाबिल हो’, ‘जीने के बहाने’, ‘खेल सिर्फ़ खेल नहीं है’, ‘लुटियन के टीले का भूगोल’, ‘21वीं सदी : पहला दशक’, ‘प्रभाष-पर्व’, ‘कहने को बहुत कुछ था’।

निधन : 5 नवम्बर, 2009 को दिल्ली में।

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