Patkatha Lekhan : Ek parichay

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Patkatha Lekhan : Ek parichay
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पटकथा-लेखन एक हुनर है। अंग्रेज़ी में पटकथा-लेखन के बारे में पचासों किताबें उपलब्ध हैं और विदेशों के, ख़ासकर अमेरिका के कई विश्वविद्यालयों में पटकथा-लेखन के बाक़ायदा पाठ्यक्रम चलते हैं। लेकिन भारत में इस दिशा में अभी तक कोई पहल नहीं हुई। हिन्दी में तो पटकथा-लेखन और सिनेमा से जुड़ी अन्य विधाओं के बारे में कोई अच्छी किताब छपी ही नहीं है। इसकी एक वजह यह भी है कि हिन्दी में सामान्यतः यह माना जाता रहा है कि लिखना चाहे किसी भी तरह का हो, उसे सिखाया नहीं जा सकता। कई बार तो लगता है कि शायद हम मानते हैं कि लिखना सीखना भी नहीं चाहिए। यह मान्यता भ्रामक है और इसी का नतीजा है कि हिन्दी वाले गीत-लेखन, रेडियो, रंगमंच, सिनेमा, टी.वी. और विज्ञापन आदि में ज़्यादा नहीं चल पाए।

लेकिन इधर फ़िल्म व टी.वी. के प्रसार और पटकथा-लेखन में रोज़गार की बढ़ती सम्भावनाओं को देखते हुए अनेक लोग पटकथा-लेखन में रुचि लेने लगे हैं, और पटकथा के शिल्प की आधारभूत जानकारी चाहते हैं। अफ़सोस कि हिन्दी में ऐसी जानकारी देनेवाली पुस्तक अब तक उपलब्ध ही नहीं थी।

‘पटकथा-लेखन : एक परिचय’ इसी दिशा में एक बड़ी शुरुआत है, न सिर्फ़ इसलिए कि इसके लेखक सिद्ध पटकथाकार मनोहर श्याम जोशी हैं, बल्कि इसलिए भी कि उन्होंने इस पुस्तक की एक-एक पंक्ति लिखते हुए उस पाठक को ध्यान में रखा है जो फ़िल्म और टी.वी. में होनेवाले लेखन का ‘क, ख, ग’ भी नहीं जानता। प्राथमिक स्तर की जानकारियों से शुरू करके यह पुस्तक हमें पटकथा-लेखन और फ़िल्म व टी.वी. की अनेक माध्यमगत विशेषताओं तक पहुँचाती है; और सो भी इतनी दिलचस्प और जीवन्त शैली में कि पुस्तक पढ़ने के बाद आप स्वतः ही पटकथा पर हाथ आज़माने की सोचने लगते हैं।

More Information
Language Hindi
Format Hard Back, Paper Back
Publication Year 2000
Edition Year 2022, Ed. 9th
Pages 183p
Translator Not Selected
Editor Not Selected
Publisher Rajkamal Prakashan
Dimensions 22 X 14 X 1
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Manohar Shyam Joshi

Author: Manohar Shyam Joshi

मनोहर श्याम जोशी 

जन्म : 9 अगस्त, 1933 को अजमेर में।

लखनऊ विश्वविद्यालय के विज्ञान स्नातक मनोहर श्याम जोशी ‘कल के वैज्ञानिक’ की उपाधि पाने के बावज़ूद रोज़ी-रोटी की ख़ातिर छात्र-जीवन से ही लेखक और पत्रकार बन गए। अमृतलाल नागर और अज्ञेय—इन दो आचार्यों का आशीर्वाद उन्हें प्राप्त हुआ। स्कूल मास्टरी, क्लर्की और बेरोज़गारी के अनुभव बटोरने के बाद 21 वर्ष की उम्र से वह पूरी तरह मसिजीवी बन गए।

प्रेस, रेडियो, टी.वी. वृत्तचित्र, फ़िल्म, विज्ञापन-सम्प्रेषण का ऐसा कोई माध्यम नहीं जिसके लिए उन्होंने सफलतापूर्वक लेखन-कार्य न किया हो। खेल-कूद से लेकर दर्शनशास्त्र तक ऐसा कोई विषय नहीं जिस पर उन्होंने क़लम न उठाई हो। आलसीपन और आत्मसंशय उन्हें रचनाएँ पूरी कर डालने और छपवाने से हमेशा रोकता रहा है। पहली कहानी तब छपी जब वह अठारह वर्ष के थे लेकिन पहली बड़ी साहित्यिक कृति तब प्रकाशित करवाई जब सैंतालीस वर्ष के होने को आए।

केन्द्रीय सूचना सेवा और टाइम्स ऑफ़ इंडिया समूह से होते हुए सन् ’67 में हिन्दुस्तान टाइम्स प्रकाशन में ‘साप्ताहिक हिन्दुस्तान के सम्पादक’ बने और वहीं एक अंग्रेज़ी साप्ताहिक का भी सम्पादन किया। टेलीविज़न धारावाहिक ‘हम लोग’ लिखने के लिए सन् ’84 में सम्पादक की कुर्सी छोड़ दी और तब से आजीवन स्वतंत्र लेखन करते रहे।

प्रकाशित प्रमुख कृतियाँ : ‘कुरु-कुरु स्वाहा’, ‘कसप’, ‘हरिया हरक्यूलीज की हैरानी’, ‘हमज़ाद’, ‘क्याप’, ‘ट-टा प्रोफ़ेसर’ (उपन्यास); ‘नेताजी कहिन’ (व्यंग्य); ‘बातों-बातों में’ (साक्षात्कार); ‘एक दुर्लभ व्यक्तित्व’, ‘कैसे क़िस्सागो’, ‘मन्दिर घाट की पैड़ियाँ’ (कहानी-संग्रह); ‘आज का समाज’ (निबन्ध); ‘पटकथा-लेखन : एक परिचय’ (सिनेमा)। टेलीविज़न धारावाहिक : ‘हम लोग’, ‘बुनियाद’, ‘मुंगेरीलाल के हसीन सपने’, ‘कक्काजी कहिन’, ‘हमराही’, ‘ज़मीन-आसमान’। फ़िल्म : ‘भ्रष्टाचार’, ‘अप्पू राजा’ और ‘निर्माणाधीन ज़मीन’।

सम्मान : उपन्यास ‘क्याप’ के लिए वर्ष 2005 के ‘साहित्य अकादेमी पुरस्कार’ सहित ‘शलाका सम्मान’ (1986-87); ‘शिखर सम्मान’ (अट्टहास, 1990); ‘चकल्लस पुरस्कार’ (1992); ‘व्यंग्यश्री सम्मान’ (2000) आदि।

निधन : 30 मार्च, 2006

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